भोपाल। सुप्रीम कोर्ट ने गोदामों में कई टन अनाज सड़ जाने के मसले को बेहद गंभीरता से लेते हुए तल्ख टिप्पणी की थी। जिसमें साफ किया गया था कि यदि शासन-प्रशासन के स्तर पर अन्नदाता की मेहनत को सहेजने का शऊर नदारद है, तो बेहतर यही होगा कि सडऩे की स्थिति में पहुंचने से पूर्व उपज को गरीबों में बांट दिया जाए। इसके बावजूद साल-दर-साल गुजरते गए और कभी गोदामों में रखा कई टन चावल तो कभी गेहूं और कभी सब्जियां सडऩे की खबरें प्रकाश में आती रहती हैं। शिकायत सामने आने पर कभी ईओडब्ल्यू को जांच सौंपकर कत्र्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है, तो कभी मामला विधानसभा या संसद में उठता है। हो-हल्ला मचता है और अंत में फाइल बंद। उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका के जरिये सहेजने का शऊर न होने से किसानों की उपज बर्बाद होने का मुद्दा पूरी संवेदनशीलता व गंभीरता के साथ रेखांकित किया गया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय यादव की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के बाद जनहित याचिका में तकनीकी सुधार के सिलसिले में मोहलत प्रदान कर दी। इसी के साथ अगली सुनवाई चार जनवरी को नियत कर दी गई। जनहित याचिका में केंद्र व राज्य शासन, मंत्रालय उपभोक्ता मामले, एफसीआई, प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति को पक्षकार बनाया गया है। जनहित याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी कृषक गुलाब सिंह ने दलील दी कि शासकीय स्तर पर कृषि उपज मंडी सहित किसानों की उपज सहेजने के लिए जिन गोदामों आदि का प्रावधान किया गया है, वहां उपज सुरक्षित नहीं रह पाती। इस वजह से प्रतिवर्ष कई टन उपज सड़ जाती है। इस तरह सड़ी हुई उपज इंसान तो क्या मवेशियों तक का पेट भरने के काम नहीं आती।
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