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    ग्वालियर की पहली हार ने बढ़ाई भाजपा की चिंता

  • July 22, 2022

    • दिग्गजों के गढ़ में भाजपा की महापौर प्रत्याशी की हार से दिल्ली दरबार भी अचंभित

    भोपाल। नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद भाजपा में सबसे अधिक चर्चा ग्वालियर महापौर की हार की हो रही है। ग्वालियर में महापौर की कुर्सी कांग्रेस ने भाजपा से छीन रही है। यहां से कांग्रेस की शोभा सिकरवार ने भाजपा की सुमन शर्मा को हराया है। कांग्रेस यहां 57 साल बाद जीती। सुमन को केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का समर्थक माना जाता है। साथ ही यह क्षेत्र भाजपा के दिग्गज नेताओं का गढ़ है। दिग्गजों के गढ़ में भाजपा की महापौर प्रत्याशी की हार से दिल्ली दरबार भी अचंभित है।
    भाजपा की चिंता की वजह यह है की ग्वालियर में कांग्रेस की जीत का असर अंचल में पड़ेगा। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी मेहनत करना पड़ेगी। प्रदेश में एक मात्र सीट ग्वालियर थी, जहां उम्मीदवार के चयन को लेकर पार्टी के अंदर के झगड़े जनता में आए। उम्मीदवार चयन को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ स्थानीय नेताओं की लंबी बैठक हुई थी, लेकिन निष्कर्ष नहीं निकल पाया था। उसके बाद दिल्ली दरबार ने सुमन शर्मा के नाम को हरी झंडी दी थी।

    ग्वालियर और जबलपुर की हार बड़ा झटका
    प्रदेश में पहले चरण के नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को ग्वालियर, छिंदवाड़ा, जबलपुर और सिंगरौली महापौर गंवानी पड़ी है। ग्वालियर और जबलपुर की हार को भाजपा आसानी से नहीं पचा पाएगी। क्योंकि इस हार से भाजपा को अगले चुनाव होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अलर्ट जारी कर दिया है। पूरे प्रदेश में नगरीय निकाय के परिणामों के बीच सभी की नजरें ग्वालियर पर थीं। क्योंकि मामला मोदी सरकार के कद्दावर मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के गृहनगर का था। भाजपा जीत के लिए बिल्कुल आश्वस्त थी क्योंकि 57 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि नगर सरकार के मुखिया का चुनाव कांग्रेस जीती हो। लेकिन जो कभी नहीं हुआ इसीलिए ऐसा फिर नहीं हो सकता यही सोच गच्चा देती है। 57 साल बाद भाजपा हारी है यह सही है लेकिन क्या सच में कांग्रेस जीती है? क्योंकि सिकरवार दंपती खांटी कांग्रेसी नहीं हैं। उन्होंने दो साल पहले तक भाजपा पार्षद रहते हुए ही अपने वार्डों में जनाधार बनाया। लोगों के न सिर्फ काम कराए बल्कि उनकी खुलकर मदद भी की।


    ग्वालियर की हार पर सबसे ज्यादा माथा-पच्ची
    भाजपा में ग्वालियर की हार पर सबसे ज्यादा माथा-पच्ची हो रही है। क्योंकि इस सीट पर भाजपा के सबसे ज्यादा नेताओं ने ताकत झोंकी थी। इस हार को ग्वालियर में भाजपा की अंदरूनी कलह से जोड़कर भी देखा जा रहा है। साथ ही भाजपा में ही यह भी कहा जाने लगा है कि ग्वालियर-चंबल में अभी तक जो कांग्रेस में होता आ रहा था, वह अब भाजपा में होने लगा है। ग्वालियर में महापौर प्रत्याशी के चयन से लेकर मतदान तक नेताओं के बीच खींचतान चलती आ रही थी। अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने के लिए पहले तो दोनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेन्द्र सिंह तोमर के बीच टकराव की स्थिति बनी थी। यही वजह रही कि महापौर टिकट मामला दिल्ली तक पहुंच गया था। अंत में नरेन्द्र सिंह तोमर खुद की विरोधी रही सुमन शर्मा को महापौर प्रत्याशी बनवाने में सफल रहे। टिकट की घोषणा के बाद से तोमर ने ग्वालियर में ही डेरा डाल लिया था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने सभाएं और रोड शो किए। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी ग्वालियर में रोड शो एवं सभाएं की थी। इसके बावजूद भी भाजपा महापौर प्रत्याशी को चुनाव नहीं जिता पाई है। चुनाव परिणाम के साथ ही ग्वालियर में महापौर प्रत्याशी की हार का ठीकरा केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के सिर फोडऩा शुरू कर दिया है। साथ ही भाजपा की अंदरूनी कलह भी खुलकर सामने आ रही है। ग्वालियर में भाजपा का एक खेमा हार के लिए दूसरे खेमे को जिम्मेदार ठहरा रहा है। हालांकि इस मामले में अभी तक केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेन्द्र सिंह तोमर को कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं आई है।

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