इंदौर। एक महिला को ना केवल फर्जी गर्भवती बताया बल्कि उसकी डिलेवरी भी फर्जी तरीके से होना बता दिया। लगभग बीस साल पहले अनूठे तरीके से की गई इस धोखाधड़ी मामले में दोषी ठहराई गई आरोपी महिला डॉक्टर मनीषा गुप्ता पति दिनेश निवासी पवन नगर, पालदा नाका की क्रिमिनल अपील भी खारिज हो गई है। अपर सत्र न्यायाधीश विनोद कुमार शर्मा के कोर्ट ने उक्त महिला डॉक्टर को सजा भुगतने के लिए तीन दिन में विचरण न्यायालय में सरेंडर होने के निर्देश दिए हैं।
विचारण न्यायालय ने गत अप्रैल माह में उसे आईपीसी की धारा 420 में दोषी पाते हुए दो वर्ष के सश्रम कारावास और दस हजार रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई थी। इस फेसले के खिलाफ आरोपी डॉक्टर ने उक्त अपील दायर की थी। शासन की ओर से अपर लोक अभियोजक योगेश जायसवाल पैरवी की।
यह था मामला
अभियोजन कहानी के मुताबिक प्रजापत नगर निवासी मुकेश विश्वकर्मा अपनी पत्नी कविता को लेकर स्कीम नंबर 71 के डी सेक्टर में स्थित निजी हॉस्पिटल में आरोपी डाक्टर मनीषा के पास ले गया था। आरोप था कि गर्भवती होने के लिए मई 2004 से आरोपी डाक्टर ने उसका इलाज शुरू किया। जुलाई 2004 में उसके पेट में बच्चा होने की बात बताई और दवाइयां देती रही। महिला के पेट में दर्द बढऩे पर उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया और 24 अगस्त 2005 की देर रात उसे डिलेवरी होना बताकर कहा कि तुम्हे लडक़ी हुई है।
वह तो घुटने चलने लगी
आरोपी डॉक्टर इसके दूसरे दिन एक बच्ची गोद में लेकर फरियादी के पास आई और बोली कि यह आपकी बेटी है। इसके थोड़ी देर बाद ही जब बच्ची ना केवल करवट लेने लगी, बल्कि घुटने चलने लगी तो यह देख परिवार वालो को शक हुआ और उन्होंने डॉक्टर से सवाल किए तो उसने संतोषजनक जवाब नहीं दिए और बोली कि कविता को 14 महीने का गर्भ था, इसलिए बड़ी बच्ची पैदा हुई। परिजनों ने हंगामा शुरू कर दिया तो आरोपी डाक्टर वहां से चली गई। बाद में फरियादी को अन्नपूर्णा मंदिर के पास बुलाकर उसने स्वीकारा कि उसकी पत्नी कविता को कोई डिलेवरी नहीं हुई। यह बच्ची उसने एक बाल अनाथ आश्रम से खुद को नि:संतान बताकर गोद ली है, इसे तुम रख लो। फरियादी ने इससे इंकार कर चंदन नगर थाने पर रिपोर्ट की जिसमे उक्त धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ था। करीब बीस साल चले केस के बाद कोर्ट ने उक्त सजा सुनाई थी।
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