– प्रो. यशवीर त्यागी
भारतीय सांख्यिकी के जनक प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस की 29 जून को जयंती है। उनकी जयंती को 2007 से ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस ’के रूप में मना जा रहा है। इस वर्ष इस दिवस की थीम है ‘ सतत विकास हेतु डेटा ‘। उल्लेखनीय है कि 2015-30 के मध्य सतत विकास के 17 लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना है । समय – समय पर इन लक्ष्यों की प्राप्ति और समीक्षा की प्रक्रिया में वृहद रूप में आंकड़ों का संग्रहण, समूहन और विश्लेषण हेतु सांख्यिकी की विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है। इस संदर्भ में सांख्यिकी की प्रासंगिकता बहुत अधिक है। देश में सांख्यिकी के पठन -पाठन, अनुसंधान और शोध संस्थाओं की स्थापना में प्रो. महालनोबिस का अभूतपूर्व योगदान है। महालनोबिस ने 1931 में कलकत्ता में ‘भारतीय सांख्यिकी संस्थान ‘ की स्थापना की थी। आजादी के बाद शीर्ष सांख्यिकी संगठनों- केन्द्रीय सांख्यिकी ऑफिस और राष्ट्रीय नमूना ऑफिस के गठन में भी प्रो. महालानोबिस का अहम योगदान रहा । अब दोनों का विलय करके राष्ट्रीय सांख्यिकी ऑफिस ( एनएसओ) का गठन किया गयाहै। प्रो. पीसी महालनोबिस को सही मायने में ‘भारतीय सांख्यिकी का जनक ’ कहा जाता है ।
महालानोबिस का जन्म 1893 में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता में पूरी की। 1912 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से भौतिकी में स्नातककी उपाधि प्राप्त की। बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भौतिकी और गणित का उच्च अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए। भारत वापस आने पर महालनोबिस भौतिकी विभाग, प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता में नियुक्त हुए और कालांतर में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष पद को सुशोभित किया। सांख्यिकीय के क्षेत्र में महालनोबिस का पहला प्रयास मानवमिति (एन्थ्रोपोमेट्री) में था। उन्होंने कलकत्ता के एंग्लो इंडियन लोगों से संबंधित मानवशास्त्रीय आंकड़ों का विश्लेषण किया। मौसम विज्ञान और बाढ़ नियंत्रण की समस्याओं का भी अध्ययन किया। एक व्यावहारिक सांख्यिकीविद के रूप में महालनोबिस ने समस्याओं के समाधान खोजने में हमेशा नवाचार और व्यवस्थित पद्धति को अपनाया।
प्रो. महालानोबिस का लखनऊ विश्विद्यालय से भी संपर्क और संबंध रहा । तत्कालीन अर्थशास्त्र विभाग के अंतरगत मानवशास्त्र के प्राध्यापक प्रो. डीएन मजूमदार के साथ उन्होंने अनेक शोध पत्र प्रकाशित किए ।अर्थशास्त्र विभाग में एक समय संचालित सांख्यिकी प्रयोगशाला की स्थापना के पीछे उन्हीं की प्रेरणा थी। प्रो. महालनोबिस ने सांख्यिकी के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया है, लेकिन इस क्षेत्र में उनके तीन कार्यों को पथ प्रदर्शक माना जाता है। पहला मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण पर उनके काम से संबंधित है। यह समग्रों की तुलना और समूहन हेतु एक बहुचरीय दूरी माप की प्राविधि के आविष्कार से सम्बंधित है। इस माप को ‘ डी वर्ग’ द्वारा निरूपित किया जाता है। इसे अब ‘महालनोबिस दूरी’ कहा जाता है।
महालनोबिस का दूसरा महत्वपूर्ण योगदान बड़े पैमाने पर नमूना सर्वेक्षण करने के क्षेत्र में है। उन्होंने बंगाल में जूट की फसल के क्षेत्र और उपज के आकलन के लिए नमूना सर्वेक्षण पर अपना काम शुरू किया। अपने ऐसे कई अध्ययनों के दौरान उन्होंने सर्वेक्षण के नमूने के क्षेत्र में कई अभिनव प्रयोग किए, जिसमें नमूना डिजाइन का इष्टतम चुनाव भी शामिल था। पायलट सर्वेक्षण के उनके विचार को अनुक्रमिक नमूने का प्रारम्भिक रूप माना जाता है। महालनोबिस का सांख्यिकी के क्षेत्र में तीसरा महत्वपूर्ण योगदान ‘फ्रैक्टाइल ग्राफिकल एनालिसिस’ का तरीका है। इसका उपयोग लोगों के विभिन्न समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की तुलना के लिए किया जा सकता है ।
प्रो. महालनोबिस की भारतीय नियोजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है । उनका नियोजन मॉडल एक बहु प्रचलित मॉडल है और यह भारत की द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) का आधार था। उनके मॉडल के दो प्रकार हैं। पहला-दो सेक्टर मॉडल और दूसरा- चार सेक्टर मॉडल। औद्योगीकरण को बढ़ावा देने की रणनीति उनके ही मॉडल का परिणाम है। इस रणनीति में भारी उद्योगों को बढ़ावा देने और पूंजीगतवस्तु क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया। उन्होंने अपने मॉडल से गणितीय रूप से साबित किया कि यह रणनीति, जिसे कभी-कभी ‘भारी निवेश रणनीति’ कहा जाता है, से अर्थव्यवस्था की दीर्घकालीन संवृद्धि दर में वृद्धि होगी। इस रणनीति में सार्वजनिक क्षेत्र को भी प्रमुख भूमिका दी गई। कतिपय कारणों से इस रणनीति के परिणाम भले ही शानदार न रहे हों, लेकिन इसने निश्चित रूप से भारत में एक विविधतापूर्ण औद्योगिक संरचना की नींव रखी और कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को प्राप्त करने में काफी हद तक मदद की।
राष्ट्रीय आय की गणना पद्धिति का प्रादुर्भाव और विकास का श्रेय भी महालनोबिस को है। इसके लिए 1949 में उनकी अध्यक्षता में ‘ राष्ट्रीय आय समीति’ का गठन किया गया था। प्रो. महालनोबिस अपने शानदार करियर के दौरान कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पदों पर रहे हैं। वह 1947 से 1951 तक सांख्यिकीय नमूनाकरण पर संयुक्त राष्ट्र उप आयोग के अध्यक्ष रहे। वह लंदन की रॉयल सोसाइटी के फेलो , अमेरिकन सांख्यिकीय एसोसिएशन के फेलो और अंतरराष्ट्रीय सांख्यिकीय संस्थान के मानद अध्यक्ष थे। वह 1955-1967 के दौरान भारत के योजना आयोग के सदस्य रहे। उन्होंने 1972 में अपनी मृत्यु तक, भारत सरकार के मानद सांख्यिकीय सलाहकार का पद भी संभाला। 1968 में महलनोबिस को राष्ट्र और विज्ञान की सेवा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया।
वर्तमान समय में ‘बिग डेटा एनालिटिक्स ’अनुसंधान का अग्रणीय क्षेत्र है और ‘डेटा अर्थव्यवस्था का नया तेल’ है। डेटा भी तेल के सदृश्य मूल्यवान है। डेटा की अर्थव्यवस्था में उपयोगिता को देखते हुए भारत में अनेक डेटा सेंटर बनाये गए हैं। उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्यों में नये डेटा सेंटरों की स्थापना की जा रही है। महालनोबिस के कार्यों और अभिनव दृष्टिकोण की वर्तमान में सार्थक प्रासंगिकता है। औद्योगीकरण को प्राथमिकता दिया जाना और एक सशक्त, आत्मनिर्भर भारत का महालनोबिस का विजन सही साबित हुआ क्योंकि अब नीति निर्माताओं ने ‘मेक इन इंडिया ’ कार्यक्रम शुरू करके विनिर्माण पर नए सिरे से जोर दिया है । हाल ही में मोदी सरकार का ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ भी इसी क्रम में एक नया कदम है । ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस ‘ देश के सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक क्षेत्र में सांख्यिकी की भूमिका को रेखांकित करने और लोगों में इसके प्रति जागरुकता फैलाने का महत्वपूर्ण अवसर है । महालनोबिस का महान व्यक्तित्व और विभिन्न क्षेत्रों में उनका योगदान सदैव युवाओं का पथ प्रशस्त कर प्रेरणा देता रहेगा।
( लेखक, लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं। )
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