बुरहानपुर: महाराष्ट्र की सीमाओं से सटा दक्षिण का द्वार कहा जाने वाला बुरहानपुर शहर (Burhanpur City) वैसे तो मुगलकालीन धरोहरों के प्रसिद्ध है. असिरगड़ का अजेय किला हो या मुगलकालीन इमारतों के अलावा मोहब्बत की मिसाल कहे जाने वाली मुमताज बेगम (Mumtaz Begum) की कब्रगाह जिले को इतिहास में स्थान हासिल कराती हैं. इन सब से हटकर बुरहानपुर की मुगलकालीन विरासत (Mughal legacy of Burhanpur) मे मिठास घोलती है यहां की प्रसिद्ध मावा जलेबी, जो देशभर में मशहुर है.
बुरहानपुर मे मावा जलेबी का चलन लगभग 35 साल पहले प्रारंभ हुआ था, जब यहां के एक स्थानीय निवासी ने इसे बनाना प्रारंभ किया. पहले कुछ समय तक ये शहर और फिर कुछ समय तक जिले की सीमाओं में सीमित रही. धीरे-धीरे यहां की मावा जलेबी सीमाओं को तोड़कर देश विदेश में लोगों को अपने स्वाद का दिवाना बना दिया. मावा जलेबी को अन्य जलेबियों की तरह ही बनाया जाता है.
बस इसमें थोड़ा सा आंतर होता है. बुरहानपुर में बनने वाले खास जलेबी बनाने के लिए मैदे को मावा या खोया के साथ मिलाया जाता है. इसके बाद इसे अरारोट (रूट स्टॉक से निकाला गया स्टार्च) के साथ मिलाया जाता है. इसके बाद गर्म तेल में डीप फ्राई कर चासनी में डाल दिया जाता है. कुछ समय बाद इसे छान लिया जाता है. अब सामने आती है गहरे भूरे रंग की मोटी बुरहानपुर की जलेबी है, जो कई लोगों को अपने स्वाद का दिवाना बनाए हुए हैं.
बुरहानपुर की मावा जलेबी ने देश की आथिर्क राजधानी कहे जाने वाली मुंबई को अपना दिवाना बना दिया है. इसके साथ ही दिल्ली खाने के लिए फेमस चांदनी चौक में भी इसकी कई दुकानें मौजूद हैं. वहीं हैदराबाद में भी चार मिनार के पास बुरहानपुर जलेबी के नाम से एक दुकान है, जिसमें लोगों की भीड़ लगी रहती है. खास बात ये कि ये दुकान बुरहानपुर से हैदराबाद गए व्यवसायी द्वारा ही संचालित की जाती है. जीआई टैग देने की दिशा में दो नए पकवानों के नाम सामने आए हैं. अगर गंभीरता से प्रयास किए जाएं, तो इंदौर के पोहे और बुरहानपुर की मावा (खोवा) जलेबी की जगह उन पारंपरिक पकवानों की सूची में पक्की हो सकती है, जिन्हें भौगोलिक पहचान (जीआई टैग) का वैश्विक तमगा हासिल है. ऐसा हो जाने से शहर का नाम वैश्विक पटल पर आएगा. इसके साथ ही रोजगार के कई साधन खुलेंगे.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved