– डॉ. रीना रवि मालपानी
यदि हम रामायण में रामदूत भक्त शिरोमणि हनुमान के चरित्र की सबसे अनुकरणीय विशेषता पर ध्यान केन्द्रित करें तो हम पाएंगे की हनुमान कभी नाम के पीछे नहीं दौड़े। सबकुछ ईश्वर यानी प्रभु श्रीराम को समर्पित करते गए। जब प्रभु श्रीराम ने उनसे मनोवांछित पद की मांग करने को कहा तो उन्होंने प्रभु को उत्तर दिया कि राघव मुझे तो केवल आपके यह दो पद (पैर) चाहिए। मेरी आसक्ति तो केवल आपकी सेवा में है। जब हम अत्यधिक नाम के पीछे दौड़ते हैं तो यश और अपयश दोनों में से कुछ भी मिलने की संभावना रहती है। कभी-कभी यहीं नाम हममें अभिमान का भाव भी जागृत कर देता है। हनुमानजी तो अपनी पहचान भी श्रीराम का दूत और सेवक के रूप में बताते हैं। अपने आप को छोटा बताकर वे अहं को हमेशा दूर रखते हैं। हनुमानजी इस सत्य को भी जानते हैं कि पद, नाम, माया यह सब व्यक्ति में अनायास ही विकार उत्पन्न कर देते हैं।
कहते है प्रभु श्रीराम तक पहुंचने का मार्ग हनुमानजी से होकर जाता है और यदि आपने हनुमानजी की आराधना की तो प्रभु श्रीराम की कृपा स्वतः ही हो जाएगी। सुग्रीव में अनेकों बुराई थी पर उसकी मित्रता हनुमानजी से थी, इसलिए कहा भी गया है हमेशा अच्छी संगति या अच्छे मित्र बनाइये। यह आपकी उन्नति का द्वार खोल देते हैं। सुग्रीव की हनुमानजी से मित्रता ने उन्हें श्रीराम का कृपापात्र बना दिया और उनके समस्त दुख दूर हो गए। विभीषण की भेंट भी पहले रामदूत से हुई और वे भी रघुनंदन के प्रिय हो गए। अतः हनुमान जी की उपासना स्वतः ही श्रीराम के आशीर्वाद की ओर ले जाती है।
हनुमानजी की एक और अनूठी विशेषता है कि वे समय के अनुरूप निर्णय को प्राथमिकता देते हैं। जब सुरसा राक्षसी ने हनुमानजी के मार्ग में व्यवधान उत्पन्न किया तो प्रभु ने बिना प्रतिस्पर्धा और अत्यधिक कौशल दिखाए बिना केवल श्रीराम के कार्य को पूर्ण करने के लिए त्वरित निर्णय लिया। वे अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर हुए। हनुमानजी का यह गुण भी हमें आत्मसात करना चाहिए। जब माता सीता व्याकुल होकर बोलीं कि श्रीराम उन्हें भूल गए तबभी हनुमानजी ने सच्चे दूत की भांति माता को विश्वास दिलाया और सकारात्मक सोच उत्पन्न की। शक्ति संपन्न होते हुए भी लंका को श्रीराम दूत ने अपना छोटा सा परिचय दिया। सब कुछ संभव करने वाले हनुमानजी स्वयं को श्रीराम का तुच्छ सेवक मानते हैं और हमेशा अपने प्रभु की लीला का ही गुणगान करते हैं। हनुमानजी कर्म को प्रधानता देते हैं और बस राम काज में तल्लीन रहते हैं। वे तो किसी भी प्रकार का श्रेय और यश नहीं चाहते। सबकुछ प्रभु श्रीराम को समर्पित कर देते हैं। ऐसे श्रीराम दूत की महिमा का कोई व्याख्यान नहीं है। यदि हम मनुष्ययोनि में उनके कुछ गुणों का भी अनुकरण कर सकें तो हमें सफल जीवन के अनेक सूत्र मिल जाएंगे।
(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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