इंदौर, राजेश ज्वेल। यूपी-बिहार के बाहुबली और मुंबई के गैंगस्टर पर तो कई फिल्में बन चुकी है। मगर इंदौर में बड़े भैया की पहचान भले ही बाहुबली के रूप में रही हो, मगर उन्होंने भाजपा को संघर्ष के दिनों में अपने ही बलबुते पर खड़ा किया। वे इंदौर के पहले और आखरी बाहुबली भले ही रहे हों, मगर 70 और 80 के दशक में जनसंघ और फिर भाजपा का झंडा दबंगता से थामे रहे और कांग्रेसियों को कड़ी चुनौती दी, तब कांग्रेसी भी सर्वशक्तिमान हुआ करते थे। बड़े भैया खुद भले ही चुनाव नहीं जीत सके हों, मगर बेटे सहित कईयों को सांसद और विधायक बना दिया, जिनमें सुमित्रा ताई से लेकर फूलचंद वर्मा, प्यारेलाल खंडेलवाल, प्रकाश सोनकर, सत्यनारायण जटिया, लक्ष्मीनारायण पांडे से लेकर कई दिग्गज शामिल रहे हैं।
पं. विष्णुप्रसाद जी शुक्ला का कल लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया, जिन्हें पूरा इंदौर तो क्या, प्रदेश और सभी छोटे-बड़े नेता, रसूखदार बड़े भैया के नाम से ही जानते रहे। शुरुआती दौर में सांवेर जनपद अध्यक्ष के लिए उन्होंने चुनाव लड़ा और जीता भी हालांकि बाद में विधायक का चुनाव वे अवश्य नहीं जीत पाए। मगर सांवेर से प्रकाश सोनकर सहित कईयों को टिकट दिलवाकर उनके प्रचार-प्रसार की बागडोर संभाली। जिस जमाने में भाजपा का कोई नामलेवा भी नहीं था, यहां तक कि आज जो विधानसभा 2 भाजपा का अभेद गढ़ है, वहां भी श्रमिक नेताओं और कांग्रेस का ही बोलबाला था, वहां से भी चुनाव लडक़र उन्होंने सुरेश सेठ को कड़ी टक्कर दी और मामूली 1000-1200 वोट से ही चुनाव हारे, उसमें भी तत्कालीन आईजी सुरजीत सिंह का योगदान ज्यादा था, जिन्होंने मतदान समाप्ति से पहले दो नम्बर क्षेत्र में ना सिर्फ मोर्चा संभाला, बल्कि भारी-भरकम पुलिस बल लगाकर बड़े भैया को चुनाव नहीं जीतने दिया।
पिछले कई सालों से बड़े भैया सक्रिय राजनीति से भले ही बाहर हो गए, मगर बाणगंगा स्थित उनके घर से ही क्षेत्र, सांवेर सहित अन्य जगह की राजनीति चलती रही। इसी बीच ब्राह्मण समाज के लिए भी उन्होंने बड़ी भूमिका अदा की और सभी वर्गों को एकजुट किया। जब उनके बेटे संजय शुक्ला ने विधानसभा 1 से चुनाव लड़ा, तब भाजपा के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार सुदर्शन गुप्ता ने उनके खिलाफ अप्रिय टिप्पणी भी की उन्हें गैंगस्टर तक कहा। हालांकि इसको लेकर भी भाजपा में बवाल मचा और फिर गुप्ता ने भी माफी मांगी। रुतबा हालांकि बड़े भैया का ताउम्र जारी रहा और उनका नाम ही इस बात का घोतक रहा कि किसी बड़े बाहुबली का ही जिक्र हो रहा है।
शहर में दौडऩे वाली कई गाडिय़ों पर बाणेश्वरी लिखा नाम भी उनकी धाक का सबूत है। राजमाता सिंधिया से लेकर स्व. राजेन्द्र धारकर, कुशाभाऊ ठाकरे से लेकर भाजपा के तब के कद्दावर नेताओं से बड़े भैया के आत्मीय संबंध रहे और कांग्रेसियों के साथ संघर्ष में हर मोर्चे पर वे डटे रहे। सांवेर से श्री सोनकर को चुनाव जीताया तो मंदसौर जाकर लक्ष्मीनारायण पांडे, उज्जैन में जटिया जी, राजमाता के लिए गुना, प्यारेलालजी खंडेलवाल के लिए राजगढ़ भी गए और दिग्विजय सिंह को चुनाव हरवाया। शाजापुर से फूलचंद वर्मा को सांसद बनाया, तो इंदौर की आठ बार की सांसद रही ताई को भी शुरुआती दौर में भरपूर मदद की। बड़े भैया की खुरासान पठान से जो टूट दोस्ती रही उसकी भी शहर में मिसाल दी जाती है। इंदौर और खासकर बाणगंगा की यादों में बड़े भैया सदैव बसे रहेंगे।
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