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    इंदौर मास्टर प्लान का तैयार पड़ा प्रारूप अब जल्द हो सकता है जारी टीडीआर, पार्किंग पॉलिसी सहित लंबित प्रस्तावों पर भी अमल संभव

  • December 15, 2023

    • नवागत मुख्यमंत्री ने प्रमुख सचिव से की नगरीय निकायों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा, आज शाम कानून व्यवस्था पर पुलिस महकमे की भी लगेगी क्लास

    इंदौर। विधानसभा चुनाव के चलते इंदौर का तैयार पड़ा मास्टर प्लान का प्रारूप शासन ने जारी नहीं किया, ताकि जमीनी घोटालों के आरोप ना लग सकें। दरअसल भोपाल के प्रारूप प्रकाशन के बाद इसी तरह का हल्ला मचा और उज्जैन के मास्टर प्लान को प्रकाशित करने के बाद उसमें संशोधन के आदेश भी नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्रालय को जारी करना पड़े। इंदौर चूंकि जमीनी जादूगरों का सबसे बड़ा गढ़ है, इसलिए मास्टर प्लान अटक गया। मगर अब उसका प्रारूप जल्द प्रकाशित कर दावे-आपत्तियों की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। कल नवागत मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रमुख सचिव से नगरीय निकायों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें मास्टर प्लान सहित टीडीआर, टीओडी, पार्किंग पॉलिसी सहित अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल रहे।

    इंदौर का मास्टर प्लान हमेशा से विवादित रहा है, जिसके चलते कभी भी समय पर जारी नहीं हो सका। वर्तमान में जो प्लान लागू है, वह भी 31 दिसम्बर 2021 को ही समाप्त हो चुका है, जिसे पूरे 2 साल होने आए। मगर अगला 2041 का प्लान अधर में ही लटका रहा। पहले 2035 के मान से तैयारी की गई, उसके बाद 2041 के मुताबिक नगर तथा ग्राम निवेश ने प्लान बनाना शुरू किया। इंदौर के इस प्रस्तावित मास्टर प्लान में 79 गांवों की जमीनें शामिल की जा रही है, जिसके चलते यहां आने वाले अधिकांश प्रोजेक्ट अटके भी हैं और धारा 16 में भोपाल से ही अनुमति मिल रही है। विधानसभा चुनाव का चूंकि पिछले 6 महीने से हल्ला चल रहा था, जिसके चलते शासन ने विवादित मामलों से दूरी बना रखी थी, जिसके कारण इंदौर के मास्टर प्लान का प्रारुप भी प्रकाशित नहीं हो सका। मगर अब चूंकि सरकार का गठन 7 साल के लिए हो गया है और लोकसभा चुनाव में भी 6 माह की देरी है।

    ऐसे में नगर तथा ग्राम निवेश ने जो प्रारुप तैयार कर रखा है उसका प्रकाशन अब नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्रालय द्वारा किया जा सकता है। इंदौर सहित अन्य शहरों के मास्टर प्लान के साथ-साथ अन्य नगरीय निकायों से जुड़े मुद्दों पर कल मुख्यमंत्री ने प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई से चर्चा की, जिसमें नगरीय निकायों की आर्थिक सेहत सुधारने से लेकर अन्य लम्बित प्रस्तावों के संबंध में जानकारी ली, जिसमें 30 फीसदी तक कम्पाउंडिंग से लेकर टीडीआर पॉलिसी भी आधी-अधूरी ही लागू की गई। दरअसल अभी तक इंदौर में टीडीआर के लिए रिसीविंग झोन तय नहीं हुए हैं। इसी तरह मेट्रो प्रोजेक्ट अमल में लाया जा रहा है और उसके दोनों तरफ की जमीनें भी टीओडी के तहत विकसित की जाना है। इसी तरह पार्किंग पॉलिसी भी लम्बे समय से अटकी पड़ी है। उस संबंध में भी निर्णय होना है। इंदौर सहित सभी शहरों में निजी वाहनों की संख्या लगातार बढऩे से अब पार्किंग की भीषण समस्या हो गई है। इसके अलावा पशुओं के रजिस्ट्रेशन और नियंत्रण, फायर, सेफ्टी एक्ट सहित अन्य प्रस्ताव भी लम्बित हैं, जिन्हें अब जल्द ही कैबिनेट बैठक में रख मंजूरी दी जा सकती है। वहीं आज शाम मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था को लेकर पुलिस महकमे की क्लास भी लेंगे, जिसमें इंदौर और भोपाल में लागू की गई पुलिस कमिश्नरी सिस्टम पर भी चर्चा होगी, क्योंकि इसका भी कोई अधिक लाभ इन दोनों प्रमुख शहरों को नहीं मिला और अपराध घटने की बजाय लगातार बढ़ते ही रहे हैं।


    मेरे पास काम करने और ना करने वाले अफसरों की सूची
    मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विधानसभा चुनाव में जो संकल्प-पत्र जारी किया था, उसे आला अफसरों को सौंपते हुए उस पर तेजी से अमल करने का रोडमैप बनाने के निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मेरे पास सभी अफसरों का फीडबैक है, जिनमें तेजी से काम करने वाले और काम अटकाने वाले या धीमी गति से निर्णय लेने वाले अफसरों की सूची है। अब ढील-पोल नहीं चलेगी और सख्ती से निर्णयों पर अमल किया जा सके। मुख्यमंत्री ने मोदी के सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के मंत्र को जनता की जिंदगी बदलने के लिए अपनाने की सलाह भी अफसरों को दी और स्पष्ट कहा कि जनकल्याण और विकास के सभी लक्ष्यों की पूर्ति की जाना है।

    सरकार का खजाना खाली… अब राजस्व बढ़ाने पर रहेगा जोर
    प्रदेश सरकार का खजाना खाली तो है ही, वहीं लगभग 4 लाख करोड़ का कर्जा अलग माथे पर हो गया, जिसके चलते वल्लभ भवन के सारे आला अफसर राजस्व बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। मुख्यमंत्री के साथ चर्चा में भी इन अफसरों ने राजस्व के संबंध में सुझाव भी दिए। दरअसल जो संकल्प-पत्र है, उसकी पूर्ति के लिए भी वित्तीय प्रबंध करना पड़ेंगे और आवश्यक बजट प्रावधानों की भी जरूरत है। दूसरी तरफ लाडली बहना सहित अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन लिए जो वित्तीय भार पड़ रहा है, उसके चलते अधिकांश विभागों के कामकाज ठप हो गए हैं, क्योंकि इन विभागों का बजट भी इन योजनाओं में खर्च कर दिया और हर महीने 1600 करोड़ तो लाडली बहनाओं के लिए ही लगते हैं।

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