बेंगलुरु। फूड डिलीवरी कंपनी के कर्मचारियों का काम काफी मुश्किल होता है। खासकर डिलीवरी एजेंट्स के लिए तो समय पर उपभोक्ता तक पहुंचने के मायने सबसे ज्यादा होते हैं। फिर चाहे मौसम खराब हो या सड़कों पर जबरदस्त ट्रैफिक हो।
अनुशासन से खाना पहुंचाना और फाइव स्टार रेटिंग हासिल करना इन डिलीवरी एजेंट्स की सबसे अहम जरूरत है। इस बीच कर्नाटक के बेंगलुरु में स्विगी से खाना मंगाने वाले एक उपभोक्ता ने अपने साथ हुए एक वाकये को सोशल मीडिया पर साझा किया है। अपने काम के प्रति एक डिलीवरी एजेंट के समर्पण को बताती यह कहानी पूरे देश में काफी वायरल हुई है।
बेंगलुरु के जिस व्यक्ति ने यह कहानी साझा की है, उसका नाम रोहित कुमार सिंह बताया गया है। उन्होंने लिंक्डइन पर पूरी पोस्ट डाली है, जिसमें डिलीवरी एग्जीक्यूटिव कृष्णप्पा राठौड़ के मुश्किलों का सामना करते हुए डिलीवरी पूरी करने की घटना का जिक्र है।
रोहित कुमार के पोस्ट में क्या?
रोहित कुमार ने अपने पोस्ट में लिखा- स्विगी पर उन्होंने जो ऑर्डर किया था, वह लगातार लेट होता जा रहा था। इसके बाद उन्होंने डिलीवरी एजेंट को फोन किया, ताकि उसके आने का सही समय पता चल सके। रोहित के मुताबिक, डिलीवरी एजेंट ने उन्हें जल्द से जल्द ऑर्डर डिलीवर करने की बात कही। हालांकि, जब कुछ और मिनट गुजर जाने के बाद डिलीवरी नहीं मिली तो रोहित ने फिर उसे फोन लगाया। इस बार कृष्णप्पा ने घर तक पहुंचने के लिए पांच और मिनट का समय मांगा।
रोहित ने पोस्ट में लिखा, “आखिरकार 5-10 मिनट बाद उनके घर की घंटी बजी और वे तुरंत ही दरवाजे पर पहुंचे। रोहित ने कहा कि वे डिलीवरी एजेंट से ऑर्डर पहुंचाने में इतनी देरी के लिए निराशा जाहिर करने वाले थे। हालांकि, कृष्णप्पा को देखते ही उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।
बेंगलुरु के इस व्यक्ति ने बताया- “दरवाजा खोलने के बाद मैंने देखा कि एक 40 साल के करीब का एक व्यक्ति खुद को बैसाखी के सहारे संभालने की कोशिश कर रहा था।” रोहित ने कहा कि डिलीवरी एजेंट को देखने के बाद उन्हें यह लगा कि उसे घर तक ऑर्डर लाने में कितनी दिक्कत हुई होगी। इसलिए मैंने तुरंत ही कृष्णप्पा से माफी मांगी और बातचीत की कोशिश की।
रोहित ने बताया कि बातचीत के दौरान उन्हें पता चला कि कृष्णप्पा ने कोरोनावायरस महामारी के दौरान कैफे में मिली नौकरी गंवा दी थी। इसके बाद से ही वह शांत तरह से डिलीवरी का काम कर रहे हैं। कृष्णप्पा के तीन बच्चे हैं, जिन्हें खराब वित्तीय स्थितियों की वजह से वे शिक्षा के लिए बेंगलुरु नहीं ला पाए हैं।
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