उज्जैन। आम दिनों में गौरेया की तरह कौवे भी शहर में नजर नहीं आते। पिछले कुछ सालों से कौवों की प्रजाति लुप्त सी हो गई है लेकिन श्राद्ध पक्ष के दिनों में कौवों की मौजूदगी नजर आने लगी है और घाटों पर भी यह दिखाई देने लगे हैं।
बदलते पर्यावरण और लगातार बढ़ते प्रदूषण के चलते शहरी क्षेत्र से गौरेया चिडिय़ा सबसे पहले गायब हुई, उसके बाद पिछले एक दशक से शहरी क्षेत्र में घर की छत और मुंडेर पर कौवों की कांव-कांव भी नहीं सुनाई देती। कौवों की प्रजाति भी शहरी क्षेत्र से लुप्त जैसी हो गई है। परंतु 16 श्राद्ध के दिनों में लोग पूर्वजों के निमित्त गाय और कुत्ते के अलावा कौवे के लिए भी भोजन प्रसादी रखते हैं। घाटों पर भी श्राद्ध कर्म करवाया जाता है तो यहाँ भी कौवों को भोजन डालने की परम्परा है। श्राद्ध के दिनों में एक बार फिर कौवे नजर आने लगे हैं।
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