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    तानाशाह है कि मानता नहीं !

  • March 17, 2021

    – डॉ. प्रभात ओझा

    तनाव और तल्खियों के भी रस्म बन जाने की परंपरा अमेरिका और उत्तर कोरिया के रिश्तों में देखी जा सकती है। उत्तर कोरिया ने एकबार फिर अमेरिका को चेतावनी दी है। इसे रस्म इसलिए कहा जाना चाहिए कि जब भी अमेरिका और दक्षिण कोरिया संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं, ठीक उस समय उत्तर कोरिया के तेवर तीखे हो जाते हैं। हालांकि 2019 में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब सात दशक से भी पुरानी दुश्मनी के बीच किसी पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने उत्तर कोरिया की धरती पर कदम रखे थे। उस समय दोनों देशों के शीर्ष नेताओं डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग-उन के बीच दो बार बातचीत भी हुई थी। उत्तर कोरिया की उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने भी बातचीत के लिए दक्षिण कोरिया की यात्रा की। ऐसे में उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच सिर्फ मील भर की दुनिया की सबसे तनावपूर्ण सीमा पर भी शांति कायम होने की क्षीण-सी आशा दिखी। इसके साथ ही विश्व पर परमाणु और बैलेस्टिक दबाव के भी कम होने की उम्मीद बढ़ी थी। दरअसल, दुनिया में निरस्त्रीकरण के मकसद से अमेरिका इस देश पर दबाव बनाये रहता है। दूसरी ओर दक्षिण कोरिया का साथ दे रहा अमेरिका, उत्तर कोरिया को अपना दुश्मन दिखाई देता है।

    इतिहास गवाह है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के साथ ही जापान की गुलामी से कोरिया स्वाधीन हुआ। साथ ही स्वाधीनता के लिए लड़ने वालों के आंतरिक विवाद से उसके दो टुकड़े भी हो गये। दक्षिण कोरिया समय के साथ लोकतांत्रिक हो गया, तो शुरू में किम उल सुंग के दौरान उत्तर कोरिया सोवियत संघ के प्रभाव में कम्युनिस्ट शासन प्रणाली अपनाता रहा। संयुक्त कोरिया और बाद में उत्तर कोरिया के नायक माने जाने वाले किम उल सुंग के पौत्र किम जोंग-उन ने तो दिसंबर, 2011 आते-आते अपने को देश का शासक ही घोषित कर दिया। दक्षिण कोरिया से खराब होते रिश्तों के बीच दुनिया का सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न शासक बनने की उत्तर कोरियाई तानाशाह की भूख बढ़ती गयी। इसी भूख के वशीभूत दक्षिण कोरिया के साथ उसने अमेरिका को भी दुश्मन नंबर एक मान लिया है। करीब 38 साल का यह तानाशाह और अपने तीन भाइयों में दूसरे नंबर है। वह शासन के मामले में अपनी एकमात्र बहन पर ही भरोसा करता है। अमेरिका के विरुद्ध ताजा बयान उसकी बहन किम यो-जोंग ने ही दिया है।

    दोनों देशों के बीच इसबार तीखापन इसलिए भी कुछ अधिक महसूस किया जा रहा है कि अमेरिका में जो बाइडेन के कुर्सी संभालते ही उन्हें चार साल तक की चिंता करने को कहा गया है। याद करना होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का ही हुआ करता है। जो बाइडेन ने अभी उत्तर कोरिया के प्रति अपनी नीति की घोषणा नहीं की है। इसी बीच अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन के दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल पहुंचने का कार्यक्रम था। स्वाभाविक है कि उत्तर कोरिया को लगा कि ट्रंप के दौर में जो अमेरिका बातचीत की मेज तक आने को तैयार था, वह फिर से दक्षिण कोरिया के करीब जा रहा है।

    उत्तर कोरिया का तानाशाह शासक किम जोंग-उन हर उस वक्त सख्त हो जाया करता है, जब अमेरिका की ओर से उसके पड़ोसी दक्षिण कोरिया के प्रति दोस्ताना और अधिक मजबूत होता दिखता है।अमेरिका दुनिया में परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम पर नियंत्रण के अपने लक्ष्य पर चलते रहना चाहता है। इधर उत्तर कोरिया है कि वह इसपर किसी की नहीं सुनता। आमतौर पर वह अमेरिका और दक्षिण कोरिया सैन्य अभ्यास के जवाब में किसी नए बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण करता है अथवा अमेरिका के प्रति पहले से भी तीखे तेवर दिखाता है। फिलहाल किसी प्रक्षेपास्त्र के परीक्षण की खबर तो नहीं है, पर उत्तर कोरिया का बयान बताता है कि वह किसी भी हाल में अमेरिका के मन की नहीं होने देना चाहता। आज उत्तर कोरिया के पास इतने अस्त्र-शस्त्र हैं कि उसके एक-दो मिसाइलों की जद में अमेरिका के कुछ शहरों के होने की भी आशंका जतायी गयी है। दोनों के बीच कई बार तनाव इस सीमा तक जा पहुंचे हैं कि उनकी ओर से परमाणु-बटन दबाने तक की चेतावनी दे डाली गयी। इस चेतावनी के अंजाम तक पहुंचने की कल्पना भर से दुनिया में सिहरन फैल जाती है। ऐसा होने पर स्थिति किन्हीं दो देशों के बीच का मामला नहीं रह सकता।

    कामना करें कि जो बाइडेन उत्तर और दक्षिण, दोनों कोरिया के बीच समन्वय की दिशा में कुछ आगे बढ़ें। खबर है कि परोक्ष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति के बदलाव के साथ ही उत्तर कोरिया के साथ फिर से बातचीत की कोशिशें की गयीं। कोशिश का अनुकूल असर नहीं दिखा है और सैन्य अभ्यास के साथ तानाशाह की बहन पहले से भी सख्त हो चली है। उसने अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच सैन्य अभ्यास को उत्तर कोरिया पर हमले की तैयारी बताया है और चेतावनी दे डाली है कि अमेरिका चार साल तक शांति से सोना चाहता है तो उत्तर कोरिया के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे।

    (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के न्यूज एडिटर हैं।)

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