लखनऊ । मध्यप्रदेश सहित तीन राज्यों में (In Three States including Madhya Pradesh) विधानसभा चुनाव में मिली हार (The Defeat in the Assembly Elections) ने इंडिया गंठबंधन में (In the India Alliance) कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं (Has Increased the Problems of Congress) । इंडिया गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में खुद को स्थापित करने में लगी कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में मिली हार से बड़ा झटका लगा है। इससे उसकी मोलभाव करने की क्षमता घटी है, जिससे सहयोगी दल ज्यादा हिस्सेदारी की मांग कर सकते हैं।
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि मध्यप्रदेश में बुरी तरह हारने व राजस्थान व छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवा देने से कांग्रेस के लिए इंडिया गठबंधन में माहौल भी बदला हुआ दिखेगा। इसकी शुरुआत भी बिहार, बंगाल और महाराष्ट्र से हो गई है। उत्तर प्रदेश में भी लोग दबे स्वर में कांग्रेस के नेतृत्व को ही दोषी ठहराने में जुटे हैं। सपा सांसद एसटी हसन ने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए कहा है कि कांग्रेस ने अखिलेश यादव का अपमान किया। अब अखिलेश यूपी में सीटों का अपने हिसाब से बंटवारा करेंगे। हालांकि कांग्रेस अभी खामोश है और वह होने वाली बैठक में ही कुछ निर्णय लेती दिखाई देगी।
समाजवादी पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है कि कांग्रेस के लोगों ने मध्यप्रदेश में हमारे साथ बहुत खराब व्यवहार किया है, जिसका नतीजा सामने है। अगर वो हमारे साथ मिलकर लड़ते तो शायद यह नुकसान न होता। हमारी ताकत बंट गई, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला । अब आगे भी जो समझौता होगा, उसमें निश्चित तौर पर जो दल जहां जितना मजबूत होगा, उसी हिसाब से सीटें मांगेगा। यूपी में कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं, लिहाजा उन्हें उसी हिसाब से ही सीटें मिलेंगी। अगर इन्होंने बड़ा दिल दिखाया होता तो आज हालात ये न होते। प्रदेश में सपा भले ही एक भी सीट जीत न पाई हो, लेकिन उसने कांग्रेस को हरा जरूर दिया है। जतारा भी ऐसी सीट है, जहां कांग्रेस जितने मतों से भाजपा से हारी है, उससे ज्यादा वोट सपा को मिले हैं।
दरअसल, विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर कलह खुलकर सामने आई थी। सपा को सीट बंटवारे में नजरअंदाज किए जाने से नाराज अखिलेश यादव ने कांग्रेस और मध्य प्रदेश के नेताओं को आड़े हाथों लिया था। साथ ही उन्होंने कांग्रेस को इंडिया गठबंधन’ के तहत लोकसभा चुनाव के लिए बनी एकता पर भी सवाल उठाया था। चुनावी आंकड़ों की मानें तो कांग्रेस को यहां 40.40 प्रतिशत वोट मिला है। जबकि सपा ने यहां अपना खराब प्रदर्शन करते हुए महज 0.45 फीसदी वोट मिले। अधिकतर उम्मीदवारों की जमानत भी नहीं बची।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल ने बताया कि तीन राज्यों में हार के बाद कांग्रेस पर क्षेत्रीय दल दबाव बनाएंगे। जहां कांग्रेस नहीं है, वहां क्षेत्रीय दल हावी होंगे। पहले कांग्रेस ही इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की सोच रही थी। लेकिन अब स्थानीय दल इस पर दबाव डालेंगे।
वरिष्ठ राजनीतिक जानकर वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि तीन हिंदी पट्टी में कांग्रेस को मिली पराजय के बाद निश्चित तौर उसके सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं। अब उसे गठबंधन में शामिल सभी दलों का दबाव मानना पड़ेगा। जैसा की नतीजों के बाद बिहार, बंगाल, यूपी, जम्मू और महाराष्ट्र से कांग्रेस के खिलाफ आवाज उठ चुकी है। अगर गठबंधन को बचा कर चलना है इन्हें, सभी क्षेत्रीय दलों की बात सुननी पड़ेगी। अगर सपा की दी हुई सीटों पर कांग्रेस राजी नहीं हुई तो अखिलेश छोटे दलों के सहयोग से चुनाव लड़ने की योजना भी पर काम कर रहे हैं।
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