नई दिल्ली । कांग्रेस अध्यक्ष पद (congress president post) के चुनाव पर कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्ष की नजर होगी। इसके अलावा देश की सबसे पुरानी पार्टी में गांधी परिवार (Gandhi family) से इतर कांग्रेस अध्यक्ष बनने की संभावना बढ़ गई है। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने एक प्रतिनिधि के जरिये नामांकन पत्र मंगवाया है। खबर है कि थरूर 30 सितंबर को नामांकन दाखिल कर सकते हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर का मुकाबला राजस्थान के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Rajasthan) अशोक गहलोत से हो सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) जैसे मंझे राजनेता से शशि थरूर पार पा सकेंगे। संगठन से लेकर सरकार में काम करने तक, राजनीति नेतृ्त्व से लेकर कार्यकर्ताओं से संपर्क तक सभी मामलों में गहलोत के मुकाबले थरूर कमतर ही हैं।
‘हमें मजबूत महासचिव नहीं चाहिए’
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव (Secretary General of the United Nations) कोफी अन्नान का कार्यकाल पूरा होने का बाद इस पद के लिए चुनाव हो रहा था। भारत की तरफ थरूर का मुकाबला दक्षिण कोरिया के बान की मून से था। थरूर इससे पहले कोफी अन्नान के अंडर में काम कर चुके थे। शायद यही वजह थी कि कई देश उन्हें कोफी अन्नान का ही आदमी मान रहे थे। ऐसे में अमेरिका नहीं चाहता था कि थरूर जैसे आजाद ख्यालों वाला आदमी संयुक्त राष्ट्र का महासचिव बने। इस बात की पुष्टि बाद में अमेरिकी राजदूत जॉन बोल्टन (US Ambassador John Bolton) की तरफ से हुई थी। जॉन बोल्टन के अनुसार, तत्कालीन अमेरिकी रक्षा मंत्री कोंडोलिजा राइस ने साफ तौर पर बोल दिया था कि हमें किसी भी सूरत में मजबूत महासचिव नहीं चाहिए। दरअसल, अमेरिका थरूर में भी कोफी अन्नान का अक्स ही देखता था। आखिरी दौर में बान की मून इसलिए चुनाव जीत गए थे कि किसी ने उनके खिलाफ वीटो नहीं किया था।
गांधी परिवार का भरोसा जीत पाएंगे थरूर
एक बार के लिए यह मान लिया जाए कि शशि थरूर किसी तरह चुनाव जीत जाते हैं तो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या वह गांधी परिवार का भरोसा जीत पाएंगे। ऐसा करने में असफल रहने पर वह कांग्रेस में अध्यक्ष के रूप में कितने प्रभावी रहेंगे। किस तरह के मजबूत फैसले ले पाएंगे। इसके उलट गहलोत को जिस तरह से गांधी परिवार का आशीर्वाद प्राप्त है, वह किसी से छुपा नहीं है। जिस थरूर को लेकर अमेरिका ने वीटो लगा दिया उस थरूर के लिए राहुल और सोनिया गांधी कैसे सहमति दे पाएंगे।
जी-23 का हिस्सा रहे हैं थरूर
शशि थरूर कांग्रेस में सुधारों की बात करने वाले कथित रूप से बागी जी-23 गुट के नेता हैं। जी-23 के बड़े नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। ऐसे में अब अगर थरूर के समर्थन में बड़े नेताओं को गिनने बैठेंगे तो 10 की गिनती भी पूरी नहीं होगी। मौजूदा समय में शशि थरूर के समर्थन में जो नेता हैं उनमें आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, पृथ्वीराज चव्हाण, सलमान सोज, संदीप दीक्षित और अखिलेश प्रसाद जैसे नाम हैं। वहीं, गहलोत के समर्थन में गांधी परिवार से इतर जयराम रमेश, रणदीप सिंह सुरजेवाला, केसी वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी, कुमार सैलजा से लेकर कमलनाथ जैसे बड़े नाम शामिल हैं। ये लोग आंख मूंद कर भी गांधी परिवार से भरोसेमंद अशोक गहलोत का विरोध नहीं करेंगे। इसके उलट थरूर को उनके गृह राज्य में ही पार्टी से समर्थन नहीं मिल रहा है। दरअसल केरल के कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष देखना चाहते हैं। केपीसीसी मुखिया के सुरेश ने कहा था कि थरूर को अध्यक्ष पद चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। वह एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति हैं।
ट्विटर किंग के साथ जुड़े हैं कई विवाद
शशि थरूर को ट्विटर किंग के रूप में भी जाना जाता है। ट्विटर पर उनके 83 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं। पीएम मोदी से पहले ट्विटर पर सबसे अधिक फॉलोवर शशि थरूर के ही थे। शशि थरूर से कई विवाद भी जुड़े हैं। मंत्री के रूप में सरकारी आवास के बदले फाइव स्टार होटल में रहना, इकोनॉमी क्लास को कैटल क्लास कहने के साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच सऊदी अरब की मध्यस्थता को लेकर दिए बयान पर खूब हो हल्ला मचा था। कोच्चि की आईपीएल टीम से जुड़े विवाद के अलावा अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में भी आरोपी रहे थे। हालांकि, बाद में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था।
करीब 3 दशक तक यूएन में किया काम
शशि थरूर ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। इसके अलावा उन्होंने अमेरिका के फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी से डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की है। थरूर ने 1978 से 2007 तक संयुक्त राष्ट्र में अलग-अलग पदों पर काम किया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद का चुनाव हारने के बाद साल 2007 में वे भारत लौट आए। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा। साल 2009 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। थरूर ने पहली बार तिरुवनंतपुरम से लोकसभा चुनाव लड़ा। इसके बाद से वह लगातार तीन बार यहां से सांसद हैं। 2009 से 2010 में उन्होंने विदेश राज्य मंत्री के रूप में काम किया। 2012 से 2014 के बीच थरूर मानव संसाधन विकास मंत्री भी रहे हैं।
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