नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की पांच सदस्यीय संविधान पीठ (Five Member Constitution Bench) ने सोमवार को कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में (In Corruption Cases) गिरफ्तारी के खिलाफ (Against Arrest) वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों (Senior Government Officials) को दी गई छूट खत्म करने वाला (To End Exemption Granted) फैसला (Decision) पूर्व प्रभाव से लागू होगा (Will be Applicable with Retrospective Effect) ।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ द्वारा लिखे गए सर्वसम्मत फैसले में कहा गया है कि रद्द प्रावधान, जिसके तहत केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत आरोपी संयुक्त सचिव स्तर या उससे ऊपर के अधिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए केंद्र से अनिवार्य अनुमोदन प्राप्त करना जरूरी था, सिर्फ एक प्रक्रिया का हिस्सा था और कोई नया अपराध इसमें शामिल नहीं था।
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एस.के. कौल, संजीव खन्ना, अभय एस. ओका और जे.के. माहेश्वरी भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6ए (1) को हटाने के उसके पहले के फैसले का संविधान के अनुच्छेद 20 पर कोई असर नहीं होगा। संविधान के अनुच्छेद 20(1) में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति पर जिस अपराध का आरोप लगाया गया है उसके होने के समय लागू कानून के उल्लंघन के अलावा उसे किसी अन्य अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
सरल शब्दों में, इसका मतलब यह है कि यदि कोई कार्य अपने घटित होने की तिथि पर अपराध नहीं है, तो उसके घटित होने के बाद की किसी तिथि पर वह अपराध नहीं हो सकता है। 2014 में पांच जजों की संविधान पीठ ने समानता के अधिकार को ठेस पहुंचाने वाली इस धारा 6ए (1) को रद्द कर दिया था। फैसले में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया था कि क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला भ्रष्टाचार के उन मामलों पर लागू होगा जो छूट देने वाले प्रावधान को रद्द किए जाने से पहले वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज किए गए थे।
भ्रष्टाचार के आरोपों के संबंध में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों को गिरफ्तारी के खिलाफ दी गई छूट को छीनने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्व प्रभाव से अनुप्रयोग की जांच करने के लिए 2016 में दो-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा एक बड़ी पीठ को एक संदर्भ दिया गया था। अब, संविधान पीठ ने व्यवस्था दी है कि दिल्ली पुलिस विशेष स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6ए(1) उस समय से लागू नहीं मानी जाएगी जब इसे 2003 में क़ानून में शामिल किया गया था।
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