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    भारत के युवाओं में बढ़ रहा इस गंभीर बीमारी का खतरा, जानें लक्षण व कारण

    October 31, 2021

    युवा व्यस्कों के बीच पिछले दो दशकों में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, और कोरोना महामारी ने इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की दुर्दशा को खराब किया है। डॉक्टरों का कहना है कि लक्षणों के दिखाई देने पर स्क्रीनिंग में देरी भी इन मामलों को बदतर कर रही है, और महामारी के दौरान बहुत सारे मरीजों की बीमारियां घर में रहने के कारण एडवांस चरण में हो गईं।

    कोलोरेक्टल कैंसर (colorectal cancer) को पेट का कैंसर या बड़ी आंत का कैंसर भी कहा जाता है। हमारी पाचन प्रणाली भोजन को पचाती है और उसमें से पोषक तत्वों को अवशोषित करती है। ग्रासनली, पेट, छोटी आंत और बड़ी आंत मिलकर पाचन तंत्र (Digestive System) बनाते हैं। बड़ी आंत, कोलन से शुरू होती है, जो लगभग 5 फीट लंबा होता है। कैंसर तब होता है जब शरीर में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं। कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआत बड़ी आंत की दीवार के सबसे भीतरी परत में होती है।

    कोलोरेक्टल कैंसर की दर व्यस्कों के बीच पिछले दो दशकों में उनके 20 से 40 के दशक में बढ़ रही है। 20 से 40 साल की उम्र का पड़ाव जिंदगी में महत्वपूर्ण होता है। इस उम्र में लोग एक्टिव रहते हैं, परिवार और कैरियर बनाते हैं। इसलिए इन मरीजों को इलाज के बाद जिंदगी की क्वालिटी को सुनिश्चित करना जरूरी है।



    कोलोरेक्टल कैंसर होने का कारण
    कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम बढ़ाने में उम्र, डायबिटीज, मोटापा, सिगरेट और अल्कोहल (Obesity, Cigarettes and Alcohol) का अधिक सेवन, सुस्त लाइफस्टाइल जैसे कुछ फैक्टर शामिल हैं। 50 वर्ष से ज्यादा की उम्र वाले को कोलोरेक्टल कैंसर पीड़ित होने का ज्यादा रिस्क फैक्टर होता है। डायबिटीज के मरीजों और बहुत ज्यादा अल्कहोल या सिगरेट पीनेवालों को भी इस स्थिति के विकसित होने का अधिक खतरा रहता है। सुस्त लाइफस्टाइल या शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहने वाले लोगों में बीमारी बहुत आसानी से विकसित हो सकती है।

    दुर्लभ और अप्रत्याशित लक्षण
    कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआत कोलन या रेक्टम में होती है। इन दिनों ये स्थिति बहुत आम है, लेकिन समय पर इलाज छोड़ना घातक भी हो सकता है। जरूरी है कि इसके साइलेंट लक्षणों को समझा जाए। सुरक्षित रहने के लिए आपको कुछ अप्रत्याशित लक्षणों को देखना होगा। क्रोनिक पेट दर्द, अत्यधिक थकान, मलाशय में दर्द, मल के रंग में बदलाव, मल में ब्लड जैसे लक्षणों को तलाश करना चाहिए।

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