-मुकुल व्यास
पृथ्वी का गर्म होना भविष्य के लिए अच्छी खबर नहीं है हालांकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अभी से दिखने लगे हैं। आने वाले समय में इन प्रभावों में और वृद्धि होगी। पृथ्वी के गर्म होने पर समस्त पर्यावरण और जानवरों के पर्यावास पर भी असर पड़ेगा। जंगली जानवर अपने आवास के लिए उन स्थानों की तरफ पलायन करेंगे जहां मनुष्यों की बड़ी आबादी रहती है। मनुष्य के निकट जानवरों के पहुंचने पर मनुष्यों में वायरसों के जंप करने का खतरा बहुत बढ़ जाएगा। यह स्थिति अगली महामारी को जन्म दे सकती है।
अमेरिका के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय रिसर्चरों ने जलवायु परिवर्तन के साथ वायरस के प्रसार के संबंध का गहन अध्ययन किया है। अपने अध्ययन में रिसर्चरों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन से दुनिया के स्तनपायी जीवों में रहने वाले वायरसों में क्या-क्या परिवर्तन होंगे। उन्होंने इस बात पर गौर किया कि जानवरों की प्रजातियां अपने आवास को नए क्षेत्रों में ले जाने के लिए लंबी यात्राएं करेंगी। ऐसा करते हुए उनका सामना पहली बार दूसरे स्तनपायी जीवों से होगा और वे हजारों वायरस आपस में साझा करेंगे।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह के स्थान परिवर्तनों से इबोला और कोरोना वायरसों जैसे वायरसों को नए क्षेत्रों में प्रकट होने के ज्यादा अवसर मिल जाएंगे और इनका पता लगाना मुश्किल हो जाएगा। ये वायरस जानवरों की नई प्रजातियों में दाखिल होंगे जहां से उनके लिए मनुष्यों में प्रविष्ट करना आसान हो जाएगा।
नए अध्ययन के प्रमुख लेखक कोलिन कार्लसन ने कहा कि दुनिया जंगली जानवरों के व्यापार से जुड़े खतरे देख चुकी है और उसके परिणाम भी भुगत चुकी है। जानवरों की मंडियों में अस्वस्थ जानवर लाने से वायरसों के उदय के अवसर यकायक बढ़ जाते हैं। उदाहरण के तौर पर सार्स वायरस चमगादड़ों से सिवेट बिल्लियों में पहुंचा और सिवेट से मनुष्यों में पहुंच गया। जलवायु परिवर्तन के बाद इस तरह की प्रक्रिया सर्वत्र दिखेगी।
चिंता की बात यह है कि जानवरों के आवास असंगत रूप से मानव बस्तियों की तरफ बढ़ेंगे। इससे वायरस के जंप करने के नए हॉट स्पॉट बनेंगे। वैसे इस समय यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी होगी क्योंकि आज दुनिया 1.2 डिग्री ज्यादा गर्म हो चुकी है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जनों को कम करने के प्रयासों के बावजूद नए वायरसों के उभरने की प्रक्रिया को रोक पाना संभव नहीं होगा। नए अध्ययन में एक और महत्वपूर्ण बात यह सामने आई कि बढ़ते हुए तापमान से चमगादड़ों की आबादियों पर गहरा असर पड़ेगा। चमगादड़ वायरस के सबसे बड़े कुंड या वाहक माने जाते हैं। उड़ने में सक्षम होने के कारण वे लंबी दूरियों की यात्रा कर सकते हैं और अपने अधिकांश वायरस साझा कर सकते हैं। वायरस के उदय में उनकी केंद्रीय भूमिका को देखते हुए सर्वाधिक प्रभाव दक्षिण-पूर्वी एशिया में पड़ेगा जो चमगादड़ों की विविधता का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है।
अध्ययन के लेखकों का कहना है कि हमने कई वर्षों तक अलग-अलग डेटा के साथ अपने नतीजों को बार-बार चेक किया और दिलचस्प बात यह है कि हमारे मॉडलों ने हमेशा वही निष्कर्ष निकाले। उनका मानना है कि यदि वायरस मेजबान प्रजातियों में अप्रत्याशित दर से जंप करने लगे तो वन्य जीव संरक्षण और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव चौंकाने वाले होंगे।
इस अध्ययन के सह-लेखक ग्रेगरी एलबेरी का कहना है कि यह स्पष्ट नहीं है कि ये नए वायरस किस प्रकार संबद्ध प्रजातियों को प्रभावित करेंगे लेकिन इस बात की संभावना प्रबल है कि इनमें से कई वायरस मनुष्यों में नई महामारियों को जन्म दे सकते हैं। इस अध्ययन का मुख्य निष्कर्ष यह है कि जलवायु परिवर्तन से नई बीमारियों के उदय का सबसे बड़ा खतरा है। इस अध्ययन के लेखकों का कहना है कि इसका समाधान खोजने के लिए वन्य जीवों में होने वाली बीमारियों पर नजर रखने के साथ-साथ पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों का निरंतर अध्ययन करना पड़ेगा। हमें वास्तविक समय में यह पता लगाना पड़ेगा कि कौन-कौन सी मेजबान प्रजातियों से वायरस मनुष्यों में जंप कर रहा है। तभी हम इस प्रक्रिया को महामारी का रूप लेने से रोक पाएंगे।
इस अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिक कार्लसन ने कहा कि हम अगली महामारी का पूर्वानुमान लगाने और उसे रोकने के काफी करीब पहुंच गए हैं। यह पूर्वानुमान की दिशा में बड़ा कदम है। अब हमें इस समस्या के असली कारणों के निवारण की दिशा में काम करना चाहिए। अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन के एक कार्यक्रम निदेशक सेम शाइनर का कहना है कि कोविड महामारी और सार्स, इबोला और जीका वायरसों से फैली पिछली महामारियों से स्पष्ट है कि जानवरों से मनुष्यों में जंप करने वाले किसी वायरस का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। इन वायरसों के जानवरों से मनुष्यों में जंप करने का पूर्वानुमान लगाने से पहले हमें यह मालूम होना चाहिए कि ये वायरस दूसरे जानवरों में किस हद तक फैले हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस रिसर्च से पता चलता है कि जानवरों के आवागमन और गर्म जलवायु में उनके मेलजोल से किस प्रकार प्रजातियों के बीच वायरसों के जंप करने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
कुछ वैज्ञानिकों ने चेताया है कि तापमान बढ़ने से आर्कटिक की स्थायी तुषार भूमि अथवा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से अतीत की भयंकर बीमारियां लौट सकती हैं। अभी यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि वायरस और दूसरे जीवाणु कितने समय तक तुषार भूमि में प्रसुप्त अवस्था में रह सकते हैं। इस संबंध में अभी और गहन अनुसंधान की आवश्यकता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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