नई दिल्ली। अखबार के बारे में तो हर कोई जानता है। रोजाना सुबह-सुबह हर किसी के घर में भी आता है, लेकिन इस अखबार की चर्चा उस वक्त शुरू हुई, जब इसकी कहानी सात समंदर पार 72 एमएम के पर्दे पर उतरी। दरअसल, हम बात कर रहे हैं खबर लहरिया अखबार की, जो देश का अकेला ऐसा अखबार रहा, जिसे दलित महिलाएं चलाती थीं।
मसला यूं है कि खबर लहरिया अखबार पर एक डॉक्युमेंट्री बनी और यह अब ऑस्कर अवॉर्ड 2022 में नॉमिनेट हो गई है, जिसके बाद खबर लहरिया अखबार का नाम पूरे देश में बच्चे-बच्चे की जुबां पर आ गया। कैसा था यह अखबार? कैसे होता था प्रकाशित और क्यों हो गया बंद? पूरी कहानी से रूबरू होते हैं इस रिपोर्ट में…
बुंदेलखंड में प्रकाशित एक अखबार खबर लहरिया भारत का एक मात्र अखबार था, जिसे सिर्फ दलित महिलाएं संचालित करती थीं। आठ पन्नों के अखबार खबर लहरिया में महिला रिपोर्टर बदलते समाज, भ्रष्टाचार, सरकार के अधूरे वादों, गरीबों और महिलाओं की कहानियां सुनाती थीं।
खबर लहरिया नामक अखबार बुंदेलखंडी भाषा में 2002 से चित्रकूट समेत बुंदेलखंड के कई जिलों से प्रकाशित होता था। हालांकि, 2015 में यह बंद हो गया। तब से लेकर अब तक मोबाइल पोर्टल पर खबर लहरिया संचालित है। इस पूरी टीम में महिलाएं ही काम करती हैं। खबर लहरिया के लिए इसके संस्थापक एनजीओ निरंतर को यूनेस्को किंग सेजोंग लिट्रेसी सम्मान 2009 से सम्मानित किया गया था।
ऐसे शुरू हुआ था खबर लहरिया
चित्रकूट के कुंजनपुर्वा गांव के एक दलित मध्यमवर्गीय परिवार की कविता (30) की शादी 12 साल की उम्र में हो गई थी। वह ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाई थीं। बाद में उन्होंने एक एनजीओ की मदद से पढ़ाई शुरू की। साल 2002 में उन्होंने एनजीओ द्वारा शुरू किए गए अखबार खबर लहरिया में बतौर पत्रकार के रूप में काम शुरू किया। धीरे-धीरे अखबार का प्रसार बढ़ने लगा।
कोई नाम न जाने, इसलिए नहीं छापते थे बाईलाइन
कविता का कहना है कि हम पर दवाब डाला जाता था कि महिला होकर हमारे खिलाफ खबर छापती हो। बड़े अखबारों ने हमारे खिलाफ कुछ नहीं निकाला तो आपने कैसे निकाला। शायद इसीलिए अखबारों में बाईलाइन खबरें नहीं दी जाती थीं, जिससे खबर के लेखक के बारे में पता न चल सके।
थॉमस और सुष्मित घोष द्वारा निर्देशित “राइटिंग विद फायर” दलित महिलाओं द्वारा संचालित भारत के एकमात्र समाचार पत्र ‘खबर लहरिया’ की कहानी है। इस डॉक्युमेंट्री में मुख्य रिपोर्टर मीरा के नेतृत्व वाले दलित महिलाओं के महत्वाकांक्षी समूह की कहानी को दिखाया गया है, जो प्रासंगिक बने रहने के लिए प्रिंट से डिजिटल माध्यम में स्विच करती हैं।
स्मार्टफोन और उन्हें परिभाषित करने वाले साहस और दृढ़ विश्वास के साथ, खबर लहरिया के पत्रकार अपने क्षेत्र में अन्याय की जांच और दस्तावेजीकरण करते हैं। वे स्थानीय पुलिस बल की अक्षमता पर सवाल उठाते हैं, जाति और लिंग हिंसा के शिकार लोगों की सुनते हैं और उनके साथ खड़े होते हैं। धमकी का सामना करते हैं और अपने समाज के मानदंडों को चुनौती देते हैं जो उनकी यात्रा में अन्याय को कायम रखते हैं।
संस्थान की कविता देवी ने बताया कि अवध क्षेत्र में भी इसका प्रकाशन किया जाता था। इसका उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर और जागरूक बनाना है। कंपनी ने इस पर आधारित फिल्म का निर्माण दिल्ली की ब्लैक टिकट कंपनी ने किया है। इसकी शूटिंग चित्रकूट बांदा और बुंदेलखंड के कई जिलों में हुई है। इस संस्थान से जुड़ी महिला कर्मचारियों का कहना है कि फिल्म के बजट और अन्य बातों की जानकारी फिल्म निर्माता कंपनी ब्लैक टिकट के कर्मचारी दे सकते हैं।
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