मुंबई: साल 1973 में ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया की फिल्म ‘बॉबी’ रिलीज हुई थी. ये अपने दौर से आगे की फिल्म थी. लेकिन उसी साल मुंबई के नरीमन पॉइंट पर एक ऐसी बिल्डिंग बनकर तैयार हुई, जो सच में फ्यूचर की कई टेक्नोलॉजी को अपने साथ लाई थी. आज हम मेट्रो से मॉल तक बिजली से चलने वाली जिन सीढ़ियों यानी ‘एस्कलेटर’ को देखते हैं, देश में पहली बार वो इसी बिल्डिंग में लगे थे.
यहां बात हो रही है एअर इंडिया की नरीमन पॉइंट वाली 23 मंजिला इमारत की. जल्द ही ये इमारत महाराष्ट्र सरकार खरीद सकती है. इसकी कीमत करीब 1,600 करोड़ रुपये आंकी गई है जो जल्द ही महाराष्ट्र सरकार के ‘मंत्रालय’ (राज्य सरकार के सचिवालय) के एक्सटेंशन के तौर पर पहचानी जाएगी. पर इसकी लीगेसी और इतिहास अपने आप में खास है.
जेआरडी टाटा का सपना
एअर इंडिया का सपना 1932 में जेआरडी टाटा ने देखा था. बाद में जब एअर इंडिया सरकार के हाथ में चली गई, तब भी इसकी कमान उन्हीं के हाथ में रही. उन्होंने एअर इंडिया को अपने बच्चे की तरह ही पाला पोसा. उनके समय में एअर इंडिया दुनिया की सबसे बेहतरीन एयरलाइंस होती थी. कई और देश एअर इंडिया की सफलता के बारे में जानने को उत्सुक रहा करते थे. नरीमन पॉइंट की ये बिल्डिंग भी उनके इसी वर्ल्ड क्लास एयरलाइंस बनाने के सपने का हिस्सा थी.
एअर इंडिया के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और ‘The Descent of Air India’ के लेखक जीतेंद्र भार्गव का कहना है कि ये इमारत अपने दौर से काफी आगे की थी, जो जेआरडी टाटा की दूरदृष्टि को दिखाती है. बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक इस बिल्डिंग को अमेरिकी आर्किटेक्ट जॉन बरगी ने डिजाइन किया था.
जब सिर्फ ‘एस्क्लेटर’ घूमने आते थे लोग
इस बिल्डिंग में देश का पहला एस्क्लेटर लगा था. ये ग्राउंड फ्लाेर से फर्स्ट फ्लोर तक जाता था, जहां एअर इंडिया का बुकिंग ऑफिस बना था. एक दौर ऐसा था जब कई लोग इस बिल्डिंग में सिर्फ इस एस्क्लेटर की राइड का आनंद उठाने आते थे. इतना ही नहीं इस बिल्डिंग में सबसे छोटी लिफ्ट भी लगाई गई थी. ये सिर्फ 22वीं से 23वीं मंजिल पर आने जाने के लिए इस्तेमाल होती थी. तब 23वीं मंजिल पर कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का मीटिंग रूम हुआ करता था.
मुंबई के मरीन ड्राइव की पहचान
एअर इंडिया की ये इमारत मुंबई की शुरुआती हाईराइज बिल्डिंग्स में एक है. मरीन ड्राइव पर घूमते वक्त इसे दूर से ही पहचाना जा सकता है, क्योंकि इसके टॉप पर एअर इंडिया का घूमता हुआ लोगो ‘Centaur’ लगा है, जिसे चौपाटी से लेकर मालाबार हिल से भी देखा जा सकता है. इसके पड़ोस में ही एक्सप्रेस टॉवर्स और ओबेरॉय शेरेटन हैं.
बम फटा, फिर भी नींव मजबूत रही
1993 में जब मुंबई में बम ब्लास्ट हुए तब इसके बेसमेंट में ही एक कार बम फटा था. इसके बावजूद बिल्डिंग नींव पर कोई असर नहीं हुआ. इसी तरह 2008 में मुंबई में हुए 26/11 आतंकवादी हमले के दौरान ये ट्राइडेंट होटल में फंसे लोगों के रेस्क्यू में काम आई. जबकि 2016 में जब पड़ोस की एक्सप्रेस बिल्डिंग में आग लगी, तब इसी बिल्डिंग के लोगों ने अपनी खिड़कियां खोल दीं और आग बुझाने में मदद की.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved