– उमाशंकर पाण्डेय
जल में ही सारी सिद्धियां हैं। जल में ही शक्ति है। जल में समृद्धि है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले का अभावग्रस्त जखनी गांव यह सिद्ध कर चुका है। यहां वर्षा जल बूंदों को रोकने की पुरखों की मेड़बंदी विधि को अपनाकर समृद्धि लाई गई है। अब देश ने मेड़बंदी का महत्व समझा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जखनी के सामुदायिक प्रयास के इस अभियान को जन अभियान बना दिया है। जल शक्ति मंत्रालय और नीति आयोग के सहयोग से हजारों गांव परंपरागत समुदाय आधारित जल संरक्षण के गुण जखनी के किसानों से बगैर पैसे के सीख रहे हैं। जखनी ने जल संरक्षण के मंत्र खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ को अपनाकर देश-दुनिया को नया रास्ता दिखाया है। सूखा और अकाल के लिए मशहूर रहे बुंदेलखंड में पानीदार बने इस गांव की कहानी पर वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मेड़बंदी के माध्यम से भू-जल रोकने के लिए देशभर के प्रधानों को पत्र लिख चुके हैं। इसलिए पानी जहां गिरे, उसे वहीं रोका जाए। जिस खेत में जितना पानी होगा, वह उतना अधिक उपजाऊ होगा। मेड़ खेत को पानी देती है। खेत पानी पीकर पड़ोसी खेत को देता है। फिर खेत तालाब को पानी देता है। तालाब से कुआं, कुआं से गांव, गांव से नाली, नाली से बड़े नाला, इस नाले से नदी, नदी से समुद्र, समुद्र से सूर्य, सूर्य से बादल और बादल से खेत को पानी मिलने की यह प्राकृतिक प्रक्रिया है। मानव जीवन की सभी आवश्यकताएं जल पर निर्भर हैं। तभी जल को जीवन कहा गया है। मौसम के परंपरागत वैज्ञानिक लोककवि घाघ ने पानी रोकने के लिए मेड़बंदी को उपयुक्त माना है।
मेड़बंदी से खेत में वर्षा का जल रुकता है। भू-जल संचय होता है। भू-जलस्तर बढ़ता है। विश्व में हमारी आबादी 16 प्रतिशत और जल संसाधन मात्र दो फीसदी है। देश में बड़ी संख्या में नहर, तालाब, कुओं, निजी ट्यूबवेल और सिंचाई संसाधन होने के बावजूद कई करोड़ हेक्टर भूमि की खेती वर्षा जल पर निर्भर है। 1801 से 2016 तक 47 बार सूखा पड़ चुका है। मेड़बंदी आसान तकनीक है। खेत पर तीन फीट चौड़ी और तीन फीट ऊंची मेड़ बनानी होती है। मेड़ पर औषधीय पेड़ लगाकर इस प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है। मेड़बंदी से जल रोकने का उल्लेख मत्स्य पुराण, जल संहिता, आदित्य स्त्रोत के अलावा ऋग्वेद में भी है। जल क्रांति के लिए मेड़बंदी आवश्यक है। सौराष्ट्र के कच्छ क्षेत्र में 1205 फीट गहराई तक पानी नहीं है। राजस्थान के कई जिलों में मालगाड़ी से पानी जाता है। खेत में पानी रोकने से गांवों का भू-जलस्तर बढ़ेगा। यह प्रयोग बुंदेलखंड के कई जिलों में सफल रहा है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय पूरे देश के सूखा प्रभावित गांवों को खेतों में मेड़ बनाओ। हर गांव को जलग्राम बनाने का संदेश दे चुके हैं। अनपढ़ बालक, वृद्ध नौजवान अपने खेत में मेड़बंदी कर सकते हैं। एक व्यक्ति को जीवन में 70 हजार लीटर पीने का पानी लगता है। संपूर्ण शरीर में लगभग 80 फीसदी पानी होता है। पानी से बिजली बनती है। पानी से अमृत। पानी में देवताओं का वास है। जन्म से मृत्यु तक जल ही असली साथी है। इसलिए जल बचाएं। पानी बनाया नहीं, केवल बचाया जा सकता है।
भारतीय संस्कृति पूजा प्रधान है। पूजा पवित्रता के लिए जल आवश्यक है। जल में आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं। दुनिया की सभी पुरानी सभ्यताओं का जन्म जल के समीप अर्थात नदियों के किनारे हुआ है। दुनिया के जितने पुराने नगर हैं वे सब नदियों किनारे बसे हैं। दुनिया के सामने जल संकट है। इस समस्या से कैसे निपटा जाए। क्या रणनीति बने। सबको सोचना होगा। दुनिया में 200 करोड़ लोगों के सामने पेयजल संकट है। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार जितने लोगों के पास मोबाइल फोन है उतने लीटर पानी उपलब्ध नहीं है। भारत में 1959 में अमेरिकी सरकार की मदद से भू-जल की खोज शुरू की गई थी। आज के युग का सर्वाधिक चर्चित शब्द जल है। जल राष्ट्रीय संपदा है। पानी हमें प्रकृति ने निशुल्क उपहार के रूप में दिया है। पानी के बिना सब सून है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में कहा है- क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, पांच तत्व मिल रचा शरीरा। इसलिए जखनी के जलमंत्र मेड़बंदी को अपनाना समय की जरूरत है। सरकार के आग्रह को कर्तव्य समझकर मानने की जरूरत है।
(लेखक, जलग्राम जखनी बुंदेलखंड के संयोजक और जल शक्ति मंत्रालय के पहले जलयोद्धा सम्मान से अलंकृत हैं।)
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