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    राखोड़ीवाला धर्मशाला की बेशकीमती जमीन मिलेगी निगम को

  • November 29, 2023

    • आयुक्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका हाईकोर्ट ने की खारिज, मामला साढ़े 13 हजार स्क्वेयर फीट परदेशीपुरा चौराहा स्थित करोड़ों की जमीन का, जिस पर धर्मशाला व कई दुकानें निर्मित

    इन्दौर। परदेशीपुरा स्थित चर्चित राखोड़ीवाला धर्मशाला की जमीन की लीज नगर निगम ने 30 साल के लिए 10 दिसंबर1979 को दी थी, जिसकी अवधि 28 मार्च 2009 तक थी, लेकिन बाद में इस जमीन को मूल लीजगृहिता द्वारकाप्रसाद अग्रवाल ने अपने पोतों और अन्य के नाम गिफ्ट डीड के रूप में कर दी। तत्पश्चात नामांतरण और लीज नवीनीकरण का आवेदन निगम में लगाया, लेकिन निगम ने लीज नवीनीकरण का आवेदन खारिज कर दिया, जिस पर हाईकोर्ट में याचिका आयुक्त के आदेश के खिलाफ दायर की गई, जिसे अभी हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। यानि निगम अब इस धर्मशाला की जमीन का कब्जा ले सकेगा, जिसकी कीमत करोड़ों में है। ठीक परदेशीपुरा चौराहा पर स्थित इस धर्मशाला में नीचे कई दुकानें, बैंक व अन्य प्रतिष्ठान किराए पर चल रहे हैं और इसे राखोड़ीवाला धर्मशाला के रूप में ही सालों से जाना जाता रहा है। अब देखना यह है कि नगर निगम किस तरह इस जमीन और इस पर बनी धर्मशाला व अन्य निर्माण को अपने कब्जे में कर पाता है?

    कुछ समय पूर्व नगर निगम ने प्राधिकरण की तर्ज पर सम्पदा शाखा का गठन भी किया था। दरअसल शहर के कई इलाकों की जमीनें निगम ने वर्षों पहले लीज पर दी थी, जिनमें से अधिकांश की लीज अवधि समाप्त हो गई है। मगर कोर्ट-कचहरी और राजनीतिक दबाव-प्रभाव के चलते निगम इन जमीनों के कब्जे नहीं ले सका है। जवाहर मार्ग, स्नेहलतागंज, सुभाष मार्ग से लेकर परदेशीपुरा और यहां तक कि रेसकोर्स रोड-पलासिया का भी काफी बड़ा हिस्सा निगम की लीज क्षेत्र के दायरे में आता है। अभी हाईकोर्ट ने परदेशीपुरा की जमीन को लेकर निगम के हक में ही फैसला दिया है। न्यायमूर्ति विवेक रुसिया के समक्ष यह मामला आया और रीट पिटिशन 5007 शम्भूदयाल अग्रवाल की ओर से उनके परिजनों द्वारा दायर की गई। दरअसल निगम ने 13 हजार 440 स्क्वेयर फीट 40/1, परदेशीपुरा स्थित उक्त जमीन को 30 साल की लीज पर दिया था।


    मूलरूप से निगम ने मदनलाल शिवबख्श को इस जमीन की लीज की थी, जो बाद में वीवी देशपांडे और फिर बलदेव प्रसाद के बाद द्वारकादास अग्रवाल के नाम हो गई और 10 दिसंबर 1979 को निगम ने यह लीज दी, जो कि 28 मार्च 2009 तक मान्य थी। पिछले 3 साल से यह याचिका हाईकोर्ट में विचाराधीन थी, जिस पर अब निर्णय आया और हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि लीज अवधि समाप्त होने के बाद गिफ्ट डीड के आधार पर लीज नवीनीकरण का दावा नहीं किया जा सकता। दरअसल उक्त जमीन 1980 में अग्रवाल ने अपने पोते, बेटे व अन्य के नाम कर दी थी और उसके बाद द्वारका प्रसाद जी का निधन भी हो गया। तत्पश्चात 2016 में वारिसों ने शम्भूदयाल अग्रवाल के पक्ष में गिफ्ट डीड निष्पादित करते हुए निगम में नामांतरण व लीज नवीनीकरण का आवेदन लगा दिया, लेकिन निगमायुक्त ने इसे खारिज कर दिया, क्योंकि लीज अवधि 11 साल पहले ही समाप्त हो चुकी थी और निगम लीज नवीनीकरण कर भी नहीं सकता था, क्योंकि शासन ने ये अधिकार अपने पास ले लिए। लिहाजा निगमायुक्त ने जब लीज नवीनीकरण और नामांतरण का आदेश खारिज किया, तो उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर अब फैसला निगम के पक्ष में आया है। निगम की ओर से अभिभाषक प्रद्युम्न कीवे ने पक्ष रखा। याचिकाकर्ताओं की ओर से अभिभाषक नितिन फणके ने अपना पक्ष रखा। निगम का कहना है कि इस आदेश की अधिकृत कॉपी मिलने के बाद आगे की प्रक्रिया की जाएगी। वर्तमान में इस जमीन की कीमत 5 करोड़ रुपए से अधिक बताई जा रही है, जहां पर तमाम व्यावसायिक गतिविधियां भी संचालित होती है।

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