उज्जैन। कोरोना के कारण दो साल देरी से हुए नगर निगम के चुनाव जीतने के बाद भी सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक के पार्षदों के पास नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी मांग को पूरा करने के लिए कोई संसाधन नहीं है। जवाब के नाम पर फिर नगर निगम की कंगाली का हवाला दिया जा रहा है। चुनाव जीतने के बाद भी पार्षद अपने वार्ड में छोटे-छोटे काम तक नहीं करा पा रहे हैं।
कोरोना महामारी के कारण नगर निगम लगभग दो साल तक जनप्रतिनिधि विहीन रहा। इस अवधि में पूरे देश में दो बार बड़ा लॉकडाउन लगा। सभी व्यवसाय ठप रहे। राज्य शासन के पास भी उज्जैन नगर निगम को दिए जाने वाले अनुदान राशि के खजाने खाली हो गए थे। ऐसे में करीब दो साल तक नगर निगम का संचालन अधिकारी संपत्ति व अन्य कर से प्राप्त राशि से ही चलाते रहे। इधर खस्ताहाल होने के बाद नगर निगम से जुड़े ठेकेदारों की करोड़ों की देनदारी बढ़ती गई। यही कारण रहा कि नगर निगम के कई बड़े प्रोजेक्ट तो दूर गली-मोहल्लों में होने वाले नाली निर्माण, गड्ढे भराव जैसे काम भी ठेकेदारों ने बंद कर दिए थे। इसके बाद हालात सामान्य होने लगे फिर भी नगर निगम के खजाने में आय नहीं बढ़ी। कुछ माह पहले नगरीय निकाय चुनाव भी हो गए। लोगों की उम्मीद थी कि क्षेत्र के जीते हुए पार्षद वार्डों में दो साल से रूके हुए काम तेजी से कराएंगे, लेकिन स्थिति वैसी ही है जो चुनाव के पहले थी।
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