इंदौर। आज की युवा पीढ़ी को अपने तौर-तरीके से जीना पसंद है। कपड़े भी अपनी मनमर्जी से पहनने को नहीं मिले तो घर टूटने की नौबत आ जाती है। ऐसा ही मामला वन स्टॉप सेंटर पहुंचा। एक युवती अपनी ससुराल में साड़ी नहीं पहनना चाहती थी। विवाद इतना बढ़ा कि नौबत तलाक और बच्चा गिराने तक आ गई, लेकिन परिवार की और खासकर सास-बहू की काफी काउंसलिंग की गई, तब जाकर बहू फिर ससुराल गई।
लगभग तीन साल पहले एक महिला अर्षिता (परिवर्तित नाम) का अंतरजातीय प्रेम विवाह हुआ था। शुरू से ही घर में अपनी-अपनी संस्कृति व रहन-सहन को लेकर पति-पत्नी और सास के मध्य अनबन हुआ करती थी। बात इतनी बढ़ गई कि तलाक तक की नौबत आ गई। पति आकाश और सास का कहना था कि बहू घर में साड़ी पहने, लेकिन अर्षिता को यह पसंद नहीं था। इसी को लेकर काफी बार वाद-विवाद हुआ। परिवार काफी अच्छे घर का है। पति अपने पुश्तैनी व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाता है। पिता भी उसे खर्च के लिए 15 हजार रुपए तक देते हैं, लेकिन अर्षिता चाहती थी कि उसे भी घर खर्च के लिए रुपए दिए जाएं। इसको लेकर भी दोनों में अनबन हुई।
वन स्टॉप सेंटर की संचालक डॉ. वंचना सिंह परिहार ने बताया कि अर्षिता गत माह की शुरुआत में हमारे पास आई थी। इसके बाद पति-पत्नी दोनों को काउंसलिंग के लिए बुलाया गया। काउंसलिंग चल ही रही थी कि अर्षिता ने घर छोड़ दिया और मायके चली गई। वहां जाकर उसे पता चला की वह प्रेग्नेंट है तो उसने अबॉर्शन की भी ठान ली, लेकिन फिर एक बार दोनों को बुलाया गया और अच्छे से समझाइश दी गई। दोनों के मध्य विवाद का मुख्य मुद्दा संस्कृति व रहन-सहन को लेकर था, जिसे सुलझाने का प्रयास किया गया। काफी लंबी चली काउंसलिंग के बाद पति-पत्नी साथ रहने को तैयार हुए। अर्षिता भी ससुराल वालों के साथ रहना चाहती है। पति ने भी माना कि वह भी अपना पति धर्म निभाएगा और उसकी सभी इच्छाओं को पूरा करेगा। वह अर्षिता को अलग से उसके खर्च के लिए राशि भी देगा। सास ने भी उसे साड़ी सिर्फ ससुर के सामने पहनने को कहा, बाकी समय वह अपनी मर्जी के कपड़े पहन सकती है। इस केस को सुलझाने में काउंलर सीमा राजपूत, केस वर्कर माया पट्टा की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
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