भोपाल। प्रदेश में वर्तमान में थर्मल बिजली उत्पादन गृहों में क्षमता रेट (पीएलएफ) 40 फीसदी से भी नीचे है, जबकि राष्ट्रीय औसत 70 फीसदी से ऊपर है। इस कदर हालत बिगडऩे का कारण इन सरकारी ताप बिजली उत्पादन गृहों में प्रति यूनिट बिजली उत्पादन में कोयला, तेल, फ्यूल आदि 20 फीसदी से भी ज्यादा लग रहे हैं। कमजोर उत्पादन होने से महंगी बिजली निजी प्लांट से खरीदनी पड़ती है जिसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है।
उत्पादन बंद होना वजह
मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी की इकाईयों से बड़ा हिस्सा जरूरत की बिजली का उत्पादन किया जाता है। बीते साल मप्र पॉवर जनरेशन की इकाईयों में तकनीकी खराबी सामने आई। इस वजह से उत्पादन भी प्रभावित हुआ। इसमें श्री सिंगाजी पॉवर प्लांट की दो इकाई 660-660 मेगावाट की बंद हुई। सिर्फ एक इकाई से बिजली का उत्पादन किया गया। इसके अलावा हाइड्रल के गांधीसागर, पेंच के प्लांट में भी तकनीकी खराबी की वजह से उत्पादन प्रभावित हुआ।
बंद पर भी खर्च उठाती है कंपनियां
बिजली कंपनियों को पॉवर प्लांट बंद होने के बावजूद फिक्स जार्च और फ्यूल कॉस्ट एडजस्टमेंट का भुगतान करना होता है। ये खर्च एक तरह से आम उपभोक्ताओं से ही लिया जाता है यानि बंद प्लांट का खामियाजा बिजली उपभोक्ता ही आखिरी में भरते हैं।
पॉवर प्लांट औसत वार्षिक क्षमता
बढ़ रहा है बिजली का दाम
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ.पीजी नाजपांडे ने मप्र विद्युत नियामक आयोग को इस मामले में शिकायत दी है जिसके आधार उन्होंने आरोप लगाया कि उत्पादन कम होने के कारण प्लांट में कोयला, तेल आदि की मात्रा ज्यादा खर्च हो रही है जिसका भुगतान एफसीए के जरिए आम उपभोक्ताओं से लिया जाता है। उन्होंने पूरे मामले की जांच करवाने की मांग की है।
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