नई दिल्ली: सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की स्थिति बीते सालों में खराब हुई है. भारत के पर्यावरण की हालत पर CSE यानी Centre for state and Environment ने एक रिपोर्ट पेश की है. इस रिपोर्ट में कई मानक शामिल हैं. गरीबी के मानक बता रहे हैं कि भारत में गरीबी बढ़ी है. भारत के गांवों में रहने वाले 33% लोग यानी हर तीसरा आदमी बेहद गरीब है. जबकि शहरों में 8% लोग गरीब हैं. यहां गरीबी को पैसों के आधार पर नहीं आंका गया है. बल्कि उनका खान पान कैसा है? स्कूल कितना जा पा रहे हैं? बिजली सप्लाई है या नहीं? शिशु और मां की सेहत, पानी की सुविधा, बैंक अकाउंट है या नहीं? इस आधार पर गरीबी को आंका गया है. इसे Multi dimensional poverty कहा गया है. इस आधार पर भारत की 25% आबादी गरीब है.
राज्यों की बात करें तो बिहार में 52% और झारखंड की 42% आबादी गरीब है. इसके बाद मध्य प्रदेश जहां 36% लोग सुविधाएं ना होने की वजह से गरीब हैं. देश की राजधानी दिल्ली में भी तकरीबन 5% लोग इन सुविधाओं से महरुम होने की वजह से गरीब हैं. हाल ही में जारी हुए भारत के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के हिसाब से भी तस्वीर कुछ ऐसी ही है. तेज गर्मी ने पंखों की सेल बढ़ाई है. लेकिन एसी और कूलर जैसी चीजें अभी भी गांवों की पहुंच से बाहर हैं. 2005 में गांव में 38% परिवारों के पास पंखे की सुविधा थी, जबकि शहरों में तकरीबन 85% घरों में पंखा होता था. 2021 में शहरों में 96% परिवारों के पास पंखा है, गांवो में भी अब 84% परिवारों के पास पंखा है. कुल मिलाकर अब 89 प्रतिशत घरों में पंखे की सुविधा मौजूद है. लेकिन एसी और कूलर के मामले में ऐसा नहीं है. 2015 में 33% शहरी परिवारों के पास एसी या कूलर आ चुके थे. जबकि 2015 तक गांव के केवल 10% घर ऐसे थे जहां एसी या कूलर की सुविधा मौजूद थी. 2021 तक भारत के 40% शहरी परिवारों के पास एसी पहुंचा है. गांव में अभी भी 16%से भी कम घर ऐसे हैं जहां एसी या कूलर लगे हैं.
इसी तरह फ्रिज और वॉशिंग मशीन अभी गांवों के परिवारों के लिए सपना ही है. गांव के 1 चौथाई से कम परिवारों के पास ऐसी सुविधाएं मौजूद हैं. 2005 में शहरों में 34% के पास फ्रिज था, लेकिन गांव में 6% लोगों के पास ही फ्रिज था. 2021 आते-आते यानी 15 वर्षों में ये तस्वीर बदली तो है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं. अब शहरों में 64% लोगों के पास फ्रिज है, जबकि गांव में अभी भी केवल 25 प्रतिशत लोगों के पास ही फ्रिज है. यानी केवल एक चौथाई लोगों के पास ही फ्रिज है. भारत के शहरों में 36% और गांव में केवल 9% लोगों के पास ही वॉशिंग मशीन है.
दिल्ली में देश की सबसे ज्यादा गाड़ियां हैं लेकिन दिल्ली का हाल और पूरे भारत का हाल बिल्कुल अलग है. आधा भारत अभी भी दोपहिए की सवारी करता है. 2005 में 30.5% लोगों के पास शहरों में स्कूटर या कोई और टू व्हीलर होता था और गांवों में केवल 10% लोग ही ऐसे थे, जिनके पास दोपहिया सवारी थी. लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के लेटेस्ट डाटा के मुताबिक शहरों में 60% और गावों में 44% लोगों के पास दोपहिया यानी स्कूटर या बाइक या स्कूटी जैसा कोई वाहन मौजूद है. जबकि शहरों में 60% और गांवों में 44% लोगों के पास टूव्हीलर यानी स्कूटर या बाइक या स्कूटी जैसा कोई वाहन मौजूद है. 2005 में केवल 6% लोगों के पास शहरों में कार होती थी. गांव में केवल 1% परिवार ही कार की सवारी करते थे. इसीलिए गांव में पहले कोई कार आती थी तो लोग हैरानी से उसे देखते थे, बच्चे कारों के पीछे भागते थे. ये तस्वीर थोड़ी बदल गई है. 2021 के डाटा के मुताबिक शहरों में 14% से भी कम परिवारों के पास ही कार है. गांव में केवल 4.4% परिवारों को ही कार नसीब है.
भारत में लैंडलाइन फोन की जगह अब मोबाइल फोन ले चुके हैं. 31 जुलाई 1995 को कांग्रेस सरकार में टेलीकॉम मिनिस्टर सुखराम ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु को पहली मोबाइल फोन कॉल की थी. उस समय 8 रुपए प्रति मिनट की एक कॉल थी. दोनों फोन नोकिया कंपनी के थे. उसके बाद भारत में मोबाइल फोन और फिर स्मार्ट फोन का दौर आया. भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की स्पीड जितनी तेजी से बढ़ी, उतनी ही तेजी से लैंडलाइन फोन भी गायब हो गया.
2005 आते-आते भारत में केवल 15 प्रतिशत लोगों के पास लैंडलाइन फोन रह गया था. 2022 में भारत में केवल 2 प्रतिशत लोग लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करते हैं. 2005 में 10 में से केवल 2 भारतीयों के पास एक मोबाइल फोन होता था. भारत में 75 करोड़ लोगों के पास आज कम से कम एक स्मार्टफोन है, यानी हर 10 में से 6 लोगों के पास एक स्मार्टफोन है. अगर बेसिक फोन को मिला लें तो भारत में 95% लोगों के पास एक मोबाइल फोन है. डेलॉइट कंपनी के अनुमान के मुताबिक 2026 तक भारत में 100 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन होगा. लेकिन भारत और इंडिया का फर्क आप मोबाइल फोन यूजर्स के आंकड़ों से ही समझ जाएंगे.
2005 में भारत में 36 प्रतिशत शहरी लोगों के पास मोबाइल फोन था. जबकि गांव के 7 प्रतिशत लोगों के पास मोबाइल फोन था. 2015 में 96 प्रतिशत शहरी लोग मोबाइल फोन यूजर्स हो गए. गांव में भी 87 प्रतिशत लोगों के पास मोबाइल फोन पहुंच गया. 2021 में शहरों में मोबाइल फोन यूज करने वालों की संख्या से ज्यादा बदलाव गांव में आया. 2021 में शहरों में 96.7 % और गांवों में 91.5% लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं.
स्मार्टफोन ने कंप्यूटर की सेल पर भी असर डाला है. आज पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन से लेकर एक्सेल शीट तक लगभग सभी काम आपका स्मार्ट फोन कर सकता है. नतीजा आपके सामने है. भारत में 2005 में शहरों में 8% लोग कंप्यूटर यूजर्स थे. जबकि गांव में 0.6 प्रतिशत जबकि 2021 आते-आते शहरों में कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या 19.5% तक ही पहुंची. जबकि ग्रामीण इलाकों में आज भी केवल 4.4% लोग ही कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं. यानी 15 वर्षों में कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या में केवल 9% ही बढ़े हैं.
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