डेस्क: वह दिन दूर नहीं, जब आप सुनेंगे कि इंसान ने पूरी तरह इंसान जैसा दिखने वाला रोबोट बना दिया है. अभी तक बने सभी रोबोट अलग-अलग मेटल से बने हैं और उनमें अलग-अलग सॉफ्टवेयर डाले जाते हैं. इन्हीं सॉफ्टवेयर्स के हिसाब से ये काम करते हैं. ऐसे रोबोट इंसान की बराबरी नहीं कर पाते. मगर ये खबर आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि जल्दी ही एकदम रियल इंसानी रोबोट बन सकते हैं. खबर ये है कि चीनी वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रोबोट बनाया है जो छोटे से इंसानी दिमाग से चलता है. इस दिमाग इंसान के दिमाग की तरह डेवपल होगा और काम भी करेगा. वैज्ञानिकों का यह प्रयास अगर पूरी तरह सफल हुआ तो इंसानी जीवन पूरी तरह बदल जाएगा.
वैज्ञानिकों ने ऑर्गेनॉइड नामक सेल्स के समूह के माध्यम से लैब में दिमाग तैयार किया गया है, जिसे कि एक रोबोट में लगाया गया है. इसमें एक कंप्यूटर चिप भी लगी है, जो दिमाग के नर्वस सिस्टम को सिग्नल भेजती है. इन्हीं सिग्नलों के हिसाब से यह रोबोट काम करता है. इसे ‘ब्रेन ऑन अ चिप’ बताया गया है. इसे पूरा करने में समस्या ये आ रही है कि इस दिमाग को पोषक तत्वों (फाइबर, मिनरल) की सप्लाई नहीं हो पा रही. यह होने लगी तो पूरी दुनिया ही बदल जाएगी. ये बदलाव हालांकि पॉजिटिव ही होगा.
यह रोबोट सेंसर और एआई का उपयोग करके चल सकता है, चीजें पकड़ सकता है और आने वाली बाधाओं से बच सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह मस्तिष्क इंसान की तरह बुद्धिमत्ता दिखाता है और अपने अंगों को खुद से हिला-डुला सकता है. इसका फायदा यह बताया गया है कि आने वाले समय में इंसान के मस्तिष्क को हुए नुकसान की मरम्मत की जा सकेगी. यही नहीं अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के इलाज के नए तरीके भी बनाए जा सकते हैं.
इसी तरह की सिस्टम का उपयोग एलन मस्क के न्यूरालिंक चिप में किया गया है, जिसे एक इंसान (रोगी) के मस्तिष्क में लगाया गया है. वह अपने दिमाग से कंप्यूटर को नियंत्रित कर सकता है. न्यूरोलिंक के डिवाइस में एक कस्टम चिप लगी है, जो सिग्नलों को प्रोसेस करके ब्लूटूथ के जरिए कंप्यूटर को भेजती है. हालांकि चीनी रिसर्चर्स ने एक बेहद अहम विषय पर पर्दा नहीं हटाया है कि आखिर कैसे वे ऑर्गानॉइड को सिग्नल ट्रांसफर करेंगे. बहुत सी जानकारियां दी गई हैं, मगर इस विषय पर कोई प्रकाश नहीं डाला गया.
इस स्टडी के मुख्य लेखक ने बताया कि इस ‘जीवित मशीन’ को बनाने के लिए, वैज्ञानिकों ने प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल्स का उपयोग किया है. ये सेल शुरुआती भ्रूण विकास में पाए जाते हैं. इन स्टेम सेल्स को विकसित करके ऑर्गनॉइड्स बनाए गए, जो मस्तिष्क में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के सेल्स में विभाजित हो गए, जिसमें टिशूज़ भी शामिल हैं. ऑर्गनॉइड्स स्टेम सेल से बने बहुत छोटे और अपने आप ऑर्गेनाइज होने वाले थ्री-डायमेंशनल टिशू होते हैं. वैज्ञानिकों ने इन स्टेम सेल्स को लगभग एक महीने तक विकसित किया, जब तक कि उनमें न्यूरॉन जैसी विशेषताएं नहीं देखी गईं.
चीनी वैज्ञानिकों ने यह भी नहीं बताया कि उन्होंने ऑर्गनॉइड को कैसे प्रशिक्षित किया कि रोबोट को कब कौन-सा कार्य करना है. टीम ने कहा कि यह तकनीक अब भी ‘विकास की अपरिपक्वता और पोषक तत्वों की आपूर्ति की कमी’ जैसी समस्याओं का सामना कर रही है, जिसमें आमतौर पर एंटी-ऑक्सीडेंट्स, फाइबर और मिनरल्स को शामिल किया जाता है. जब ऑर्गनॉइड्स को मस्तिष्क में प्रतिरोपित किया गया, तो एक ऐसा फंक्शनल कनेक्शन स्थापित हुआ जो कम तीव्रता वाले अल्ट्रासाउंड से इलाज किए जाने पर होता है. कम तीव्रता वाले अल्ट्रासाउंड स्टिमुलेशन से इंसानी टिशू फिर से विकसित होते हैं, ताकि न्यूरॉन्स बन सकें. यही न्यूरॉन मस्तिष्क से संदेश भेजकर रोबोट को चलने को कहते हैं.
वैज्ञानिकों ने बताया कि इस रोबोट की आंखें नहीं हैं और यह केवल न्यूरॉन्स द्वारा भेजे गए इलेक्ट्रिकल और सेंसर सिग्नल्स के जरिये प्रतिक्रिया करता है. टीम ने स्पष्ट किया कि रोबोट के कंधों पर दिखने वाला गुलाबी हिस्सा केवल सजावट के लिए है, जो यह बता रहा है कि मस्तिष्क कैसा दिखेगा. यह वास्तविक टिशूज़ नहीं हैं, जो अब भी प्रोटोटाइप में उपयोग किए जा रहे हैं.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, अध्ययन में कहा गया है, ‘ब्रेन ऑर्गनॉइड ट्रांसप्लांट को मस्तिष्क की काम करने की क्षमता को बहाल करने हेतु एक संभावित रणनीति माना जाता है, जिससे खोए हुए न्यूरॉन्स को बदलने और न्यूरल सर्किट्स को फिर से बनाने का प्रयास किया जाता है.’ हालांकि, यह रिसर्च अभी शुरुआती चरण में है, और यह स्पष्ट नहीं है कि भविष्य में कभी ऑर्गनॉइड्स का इस्तेमाल मस्तिष्क के टिशूज़ की मरम्मत या फिर से बनाने के लिए हो सकेगा.
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