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    नीट-यूजी 2024 परीक्षा संबंधी मामले की 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में फिर होगी सुनवाई

  • July 11, 2024


    नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट में (In the Supreme Court) नीट-यूजी 2024 परीक्षा संबंधी मामले की (The case related to NEET-UG 2024 Exam) 12 जुलाई को (On July 12) फिर सुनवाई होगी (Will be Heard Again) । दरअसल नीट-2024 के पेपर लीक होने और परिणाम में गड़बड़ी की आशंका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई की जा रही है। एक पक्ष परीक्षा को रद्द कर दुबारा करवाने की मांग कर रहा है।


    पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह बात मानी है कि नीट-2024 का पेपर लीक हुआ है। इसका दायरा कितना बढ़ा है, इस पर केंद्र सरकार व एनएटी से जवाब मांगा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अभी परीक्षा को रद्दे करने का फैसला नहीं किया है, लेकिन यह जरूर कहा कि परीक्षा को रद्द करना आखिर उपाय हो सकता है। हालांकि इस विवाद को लेकर 1500 से अधिक बच्चों की दुबारा परीक्षा हो चुकी है और उसका परिणाम भी आ चुका है। विवाद के चलते अभी तक नीट-2024 क्लीयर करने वाले स्टूडेंट्स की काउंसलिंग भी शुरू नहीं हुई है।

    नीट (यूजी), नेट तथा दूसरी परीक्षाओं में गड़बड़ी और कदाचार के आरोपों के बीच केंद्र सरकार ने प्रतियोगिता परीक्षाओं में कदाचार रोकने वाले कानून को लागू कर दिया है। कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय की शुक्रवार रात जारी अधिसूचना में कहा गया है कि लोक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) अधिनियम, 2024 को 21 जून 2024 से लागू कर दिया गया है।

    इससे संबंधित विधेयक इस साल 5 फरवरी को लोकसभा में पेश किया गया था। यह 6 फरवरी को लोकसभा और 9 फरवरी को राज्यसभा में पारित हुआ था।इस कानून के दायरे में केंद्रीय एजेंसियों संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड, आईबीपीएस और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा आयोजित परीक्षाओं के अलावा केंद्र सरकार के किसी भी मंत्रालय या विभाग, और उनके अधीनस्थ या संबद्ध कार्यालयों द्वारा कर्मचारियों की भर्ती के लिए आयोजित परीक्षाएं शामिल हैं।

    कानून के तहत पेपर लीक, उत्तर पत्र या ओएमआर शीट के साथ छेड़छाड़, परीक्षा के दौरान कदाचार या चीटिंग कराने, कंप्यूटर सिस्टम के साथ छेड़छाड़, परीक्षा से जुड़े अधिकारियों को धमकी देने के साथ उम्मीदवारों को ठगने के लिए फर्जी वेबसाइट बनाने आदि के लिए सजा का प्रावधान है।इस कानून के तहत आने वाले सभी अपराधों को संज्ञेय, गैर-जमानती और नॉन-कंपाउंडेबल की श्रेणी में रखा गया है।

    कानून के तहत कदाचार साबित होने पर कम से कम तीन साल और अधिक से अधिक पांच साल की कैद और 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है। जुर्माना न देने पर सजा बढ़ाई भी जा सकती है।यदि अपराधी सेवा प्रदाता है – मसलन परीक्षा केंद्र उपलब्ध कराने, ओएमआर शीट की प्रिंटिगं आदि करने वाले – तो उनसे परीक्षा का पूरा खर्च वसूलने के साथ एक करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा उसे चार साल के लिए केंद्र सरकार की किसी भी परीक्षा में सेवा प्रदान करने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।

    परीक्षा के आयोजन से जुड़े किसी वरिष्ठ अधिकारी की मिलीभगत सामने आने पर उसे कम से कम तीन साल और अधिकतम 10 साल की कैद की सजा दी जा सकती है। साथ ही एक करोड़ रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान है। जुर्माना न देने पर कैद की अवधि बढ़ाई जा सकती है।एक समूह बनाकर किये गये कदाचार के लिए कम से कम पांच साल और अधिकतम 10 साल की कैद हो सकती है। इसके लिए न्यूनतम एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।इन मामलों में जांच का अधिकार डीएसपी या एसीपी या इससे ऊपर के रैंक के पुलिस अधिकारी को है। केंद्र सरकार के पास जांच का जिम्मा किसी केंद्रीय एजेंसी को सौंपने का भी अधिकार होगा।

    नीट की परीक्षा नेशनल बोर्ड ऑफ एजुकेशन इन मेडिकल साइंसेज द्वारा कराई जाती है। इस परीक्षा में गड़बड़ियों के विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसके अलावा, शिक्षा मंत्रालय ने एनटीए की परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने और गड़बड़ियां रोकने के लिए 7 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। इस समिति के प्रमुख इसरो के पूर्व चेयरमैन और आईआईटी कानपुर के पूर्व डायरेक्‍टर के. राधाकृष्‍णन होंगे। यह समिति दो महीने में शिक्षा मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस कमेटी के गठन की घोषणा 20 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में की थी। समिति एनटीए के स्ट्रक्चर, फंक्शनिंग, एग्जाम प्रोसेस, ट्रांसपेरेंसी, ट्रांसफर और डेटा, सिक्योरिटी प्रोटोकॉल को सुधारने के लिए सुझाव देगी, ताकि भविष्य में ऐसी गड़बड़ियों को रोका जा सके।

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