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    प्रदेश के बस संचालकों ने सरकार से की 280 करोड़ का टैक्स माफ करने की मांग, नहीं तो करेंगे हड़ताल

  • August 30, 2021

    जबलपुर हाईकोर्ट में टैक्स माफी के लिए याचिका भी दायर की, तर्क दिया कि पहले लॉकडाउन में सरकार ने टैक्स माफ किया तो दूसरे लॉकडाउन का क्यों नहीं माफ किया जाए
    इंदौर। प्रदेश (State) के बस संचालकों (Bus Operators) द्वारा सरकार से चार माह का टैक्स माफ (Tax Waiver) करने की मांग सरकार के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। बस संचालकों द्वारा टैक्स माफी की मांग के आंकड़ों को देखें तो यह मांग 280 करोड़ रुपए माफ करने की है। बस संचालकों (Bus Operators) ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि बसें नहीं चलने पर भी टैक्स मांगा जा रहा है। अगर इसे माफ नहीं किया जाता है तो बस संचालक अनिश्चितकालीन हड़ताल (indefinite strike) पर उतरेंगे।
    उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी (Corona Epidemic)  के चलते सरकार ने 25 मार्च 2020 से बसों के संचालन पर रोक लगा दी थी। इस पर बस संचालकों ने टैक्स माफी की मांग की थी। लॉकडाउन (lockdown)  खुलने पर भी जब सरकार ने टैक्स माफ नहीं किया तो बस संचालकों (Bus Operators) ने बसों का संचालन शुरू नहीं किया। कई दिनों तक चली खींचतान के बाद सरकार ने 165 दिनों का टैक्स माफ किया था और सितंबर से बसों का संचालन शुरू हो सका था, वहीं इस साल एक बार फिर अप्रैल से दूसरा लॉकडाउन (lockdown)  लगाया गया था। हालांकि इस दौरान सरकार ने बसों के संचालन पर रोक नहीं लगाई थी, लेकिन लॉकडाउन (lockdown) के कारण यात्री ना मिलने पर ज्यादातर बसों का संचालन बंद ही रहा। इसके चलते बस संचालकों द्वारा सरकार से अप्रैल से जुलाई तक का चार माह का टैक्स माफ करने की मांग की गई है, लेकिन सरकार द्वारा इस पर कोई जवाब नहीं दिया है।


    प्रदेश की 35 हजार बसों का चार माह का टैक्स 280 करोड़ रुपए
    प्राइम रूट बस ऑनर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने बताया कि प्रदेश में स्टेज कैरेज परमिट (रूट परमिट) लेकर 35 हजार से ज्यादा बसें चलती हैं। एक का औसत एक माह का टैक्स 20 हजार होता है। चार माह लॉकडाउन (lockdown)  के कारण बसें बंद होने से एक बस पर टैक्स की राशि 80 हजार होती है। प्रदेश की 35 हजार बसों के हिसाब से यह राशि जोड़ी जाए तो कुल राशि 280 करोड़ होती है। उनका कहना है कि लॉकडाउन (lockdown)  में बसें चलीं ही नहीं तो टैक्स लेने का सरकार को कोई हक नहीं है।
    बस संचालकों ने परमिट सरेंडर किए, लेकिन स्वीकारेें नहीं आवेदन
    शर्मा ने बताया कि इस दौरान परिवहन विभाग के नियमों के तहत फार्म ‘के’ और ‘ओ’ के माध्यम से बस संचालकों (Bus Operators) ने अस्थायी तौर पर बसों के परमिट सरेंडर करने के आवेदन भी किए, ताकि उन्हें बेवजह टैक्स ना चुकाना पड़े, लेकिन विभाग ने अप्रैल और मई में तो ऑफिस बंद होने से ये आवेदन स्वीकार नहीं किए और जून में यह कहते हुए आवेदन स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि जून में अप्रैल से परमिट सरेंडर के आवेदन स्वीकार नहीं किए जा सकते। इसके कारण बस संचालकों (Bus Operators) के प्रयास के बाद भी विभाग ने परमिट वापस नहीं लिए और बसों के चले बिना भी टैक्स थोप दिया।


    पहले लॉकडाउन में 385 करोड़ का टैक्स किया था माफ
    शर्मा के मुताबिक पहले लॉकडाउन (lockdown) के समय बस संचालकों की हड़ताल के बाद सरकार ने साढ़े पांच माह का करीब 385 करोड़ रुपए का टैक्स माफ किया था। इसे देखते हुए सरकार ने इस बार चालाकी करते हुए अपने स्तर पर बसों पर रोक नहीं लगाई, ताकि बस संचालक (Bus Operator) टैक्स माफी की मांग ना कर सकें, लेकिन बसों का संचालन बंद होने से संचालक खड़ी बसों का टैक्स क्यों भरेंगे?

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