सीहोर। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत आरटीई में जिले के प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान है। इन विद्यार्थियों की फीस सरकार देती है। इसके तहत जिले में करीब 4268 विद्यार्थियों को प्राइवेट स्कूलों में निशुल्क प्रवेश दिया गया है, लेकिन पालकों को महंगाई की मार सता रही है। वहीं पालकों को प्राइमरी के नर्सरी के बच्चों की किताबों, स्कूल ड्रेस और बस का किराया ही भारी पड़ रहा है। हालत यह है कि उक्त सामग्री स्कूल के हिसाब से औसतन 10 हजार रुपए से 15 हजार रुपए तक पहुंच रही है। इसमें खास बात यह है कि नर्सरी और कक्षा एक के कोर्स की किताब पांच हजार से सात हजार रूपये तक मिल रही हैं। इस साल जिले में 5 हजार 446 विद्यार्थियों ने प्राइवेट स्कूलों में निशुल्क प्रवेश के लिए आवेदन किया था। इसमें से शासन की ओर से 4 हजार 268 सीटें जिले में आवंटित की गई है। उक्त सीटों के लिए जिले के करीब 4 हजार 477 विद्यार्थियों ने सत्यापन कराया था। जिनमें से पात्र छात्रों को प्राइवेट स्कूलों में निशुल्क प्रवेश ले लिया है। जिले के सभी प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत विद्यार्थियों को प्रवेश देने के शासन के निर्देश के अनुसार प्रवेश दिए गए हैं।
महंगी किताबें नहीं खरीद पा रहे पालक
प्राइवेट स्कूलों आरटीई के तहत बच्चों को प्राइमरी स्कूल के नर्सरी, केजी-1, केजी-2 और कक्षा पहली में निशुल्क प्रवेश दिया गया है। आरटीई के नियमानुसार छात्र के रिहायशी क्षेत्र के पास के स्कूल में ही छात्रों को निशुल्क प्रवेश दिया गया है। जहां बच्चे आसानी से स्कूल जा सकें। ऐसे में बच्चों को प्रवेश तो मिल गया है, लेकिन अब बच्चों के पालकों को महंगाई के कारण किताबें खरीदने में हालत खराब हो रही है। कक्षा पहली तक के बच्चों के कोर्स की किताबों की कम से कम कीमत 5 हजार रुपए से 7 हजार रुपए तक है। इसके अलावा स्कूलों की अलग-अलग ड्रेस के साथ ही आयोजनों व अन्य एक्टिविटी की ड्रेस और फीस स्कूलों में ली जा रही है। जिससे पालकों को अभी शुरुआत में ही करीब 15 हजार रुपए तक का खर्च बैठ रहा है।
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