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    विस से पहले बचेगा मंडी चुनाव का बिगुल!

  • June 29, 2023

    • सरकार का दावा दो सप्ताह में शुरू होगी चुनावी प्रक्रिया

    भोपाल। किसानों को उपज का उचित दाम दिलाने व शासन की किसान हितैषी योजनाओं का लाभ मिल सके, इसके लिए सरकार द्वारा प्रदेश में मंडी समितियों की व्यवस्था बनाई गई है। लेकिन मंडी की इन समितियों का 5 साल का कार्यकाल समाप्त हुए करीब 5 साल का समय हो चुका है, लेकिन अब तक इनके निर्वाचन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। इस मामले में हाईकोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार ने दावा किया है कि मंडियों में चुनाव की प्रक्रिया दो सप्ताह में प्रारंभ हो जाएगी।
    मप्र में कृषि उपज मंडी का कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद भी नए चुनाव नहीं करवाए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ को बताया गया कि वोटर लिस्ट बनाने की प्रकिया प्रारंभ कर दी गई है। दो सप्ताह में मंडी चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी। युगलपीठ ने याचिका पर अगली सुनवाई 23 अगस्त को निर्धारित की है। बता दें कि याचिकाकर्ता मनीष शर्मा, नरसिंहपुर निवासी पवन कौरव, जबलपुर निवासी राजेश कुमार वर्मा सहित अन्य की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि मंडी चुनाव वर्ष 2012 में हुए थे।

    प्रशासनिक अधिकारियों के हवाले मंडियां
    मंडियों के चुनाव नहीं होने की स्थिति में इसका भार प्रशासनिक अधिकारियों के जिम्मे हो गया। जानकारी के अनुसार मंडी चुनाव के समय से अधिक होने के चलते कृषि उपज मंडियों में बनी समितियां 6 जनवरी 2019 को भंग हो गई है। वहीं 7 जनवरी 2019 से मंडियों का कार्यभार प्रशासनिक अधिकारियों के पास आ गया है। 2012 में मंडी चुनाव हुए थे। इस हिसाब से देखा जाए तो पांच साल बाद 2017 में चुनाव होने थे। इसमें मंडी समिति का कार्यकाल 6-6 माह की अवधि के लिए दो बार बढ़ा दिया गया था। कार्यकाल के एक साल बढऩे के बाद 2018 में मंडी चुनाव होने के कयास लगाए जा रहे थे। तय समय से अधिक होने के चलते 6 जनवरी 2019 को मंडियों में बनी समितियां भंग हो गई। वहीं मंडी का कार्यभार जब तक चुनाव नहीं होते है तब तक प्रशासनिक अधिकारियों के पास आ गया। अब उनकी निगरानी और देखरेख में ही मंडी से जुड़े निर्णय और कामकाज हो रहे हैं।


    अधिनियम में यह है प्रावधान
    मंडी बोर्ड अधिनियम में प्रावधान है कि कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व यानी पांच साल से पहले नए चुनाव होने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। आवेदकों का कहना है कि सिर्फ विशेष परिस्थितियों में कार्यकाल को तीन साल या फिर साढ़े तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन चार साल से अधिक का समय गुजर जाने के बावजूद भी चुनावी प्रकिया प्रारंभ नहीं की गई, जो अवैधानिक है। चुनाव न कराना मतदाताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। अंतिम अवसर दिए जाने के बावजूद भी जवाब पेश नहीं करने पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर दस हजार रुपये की कॉस्ट लगाई थी। याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से उक्त जानकारी पेश की गई। सरकार की तरफ से मंडी चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिए दो सप्ताह का समय प्रदान करने का आग्रह किया गया था। युगलपीठ ने आग्रह को स्वीकार करने हुए सरकार के जवाब को रिकॉड पर लेने के निर्देश जारी किए हैं। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता दिनेष उपाध्याय ने पैरवी की।

    क्या है समिति का काम
    मंडी में बनी समितियों का प्रमुख काम समिति की बैठक कर उचित निर्णय लेना है। इसी के साथ व्यापारियों के किसी तरह की गड़बड़ी करने की जानकारी सामने आती है तो उन पर कार्रवाई कराते हुए किसानों को सुविधा उपलब्ध कराने के लिए संसाधन जुटाए जाना होता है। मंडी की व्यवस्था के अन्य काम भी समिति से जुड़े हुए है। चार साल से चुनाव नहीं होने के कारण इन पदों पर प्रशासक बैठे हैं। इससे कई आवश्यक कार्यों को पूरा करने में कठिनाई हो रही है। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव के बाद अब इन संस्थाओं के चुनाव होने की उम्मीद की जा रही थी। लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत संस्थाओं में चुनाव होना आवश्यक होता है। इसमें कई संस्थाएं पीछे हैं। इनमें कृषि उपज मंडी भी प्रमुख है। लेकिन पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के चार साल बाद भी नई बॉडी का निर्वाचन नहीं हुआ है।

    प्रभावित हो रहे कामकाज
    जानकारी के अनुसार मंडियों के निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल 6-6 माह के लिए तीन बार बढ़ाया गया। वर्ष 2019 में अध्यक्ष की जगह प्रशासक की नियुक्ति की गई, तब से अभी तक अलग-अलग प्रशासक मंडी की कमान संभाल रहे हैं। लम्बा वक्त होने के कारण प्रशासक भी इन संस्थाओं को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं। इससे कामकाज प्रभावित हो रहा है। 12 सदस्यीय कार्यकारिणी मंडी चुनाव भी अन्य निकाय चुनावों की तरह होते हैं। इनकी अपनी मतदाता सूची होती है। परिसीमन भी होता है। एक मंडी में 10 वार्ड होते हैं। इन्हीं वार्डों से किसान प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ते हैं। दो प्रत्याशियों का चुनाव हम्माल और व्यापारी करते हैं। कार्यकारिणी से ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन होता है।

    किसान हो रहे परेशान
    कृषि उपज मंडी में समय पर चुनाव होना आवश्यक है। निर्वाचित कार्यकारिणी कई तरह के निर्णय लेने में सक्षम होती है। इसके अभाव में मंडी की कई कमियां दूर नहीं हो पा रही हैं। प्रदेश की कृषि उपज मंडियों में कार्यकाल बीत जाने के बाद भी चुनाव ना करवाए जाने पर किसान काफी परेशान हैं। बता दें कि 2018 में प्रदेश की सभी मंडियों का कार्यकाल खत्म हों चुका है। लेकिन अभी तक चुनाव नहीं कराए गए हैं। ऐसे में किसानों की समस्याओं को देखतें हुए चुनाव आयोग को कलेक्शन करवा लेना चाहिए था, जबकि विशेष हालातों में सिर्फ 3.5 वर्ष ही कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है, पर मंडी समितियों का कार्यकाल खत्म हुए साढ़े चार साल बीत चुके है।

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