नई दिल्ली। राजनीति के किस्से गजब के रोचक होते हैं। उस पर बात उत्तर प्रदेश की पॉलिटिक्स (Uttar Pradesh politics) की हो तो मामला और भी ज्यादा खास हो जाता है. यूपी के विधानसभा चुनावों (UP assembly elections) के लिए वोटिंग का दौर चल रहा है. कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी इसका फैसला 10 मार्च 2022 होगा. तब तक यूपी के किस्सों, सीटों के गणित, जीत-हार की चर्चाएं जोरों पर रहेंगी। इस दौरान यूपी के पूर्व मुख्यमंत्रियों (Former Chief Ministers of UP) से जुड़े रोचक किस्सों की कड़ी में आज बात करते हैं यूपी के 11वें सीएम रहे बाबू बनारसी दास (Babu Banarasi Das) की। वे राजनीति में अपने बेबाक अंदाज के साथ-साथ अपनी सादगी के लिए भी खासे मशहूर रहे।
15 साल की उम्र में उतर पड़े थे अंग्रेजों के खिलाफ
बाबू बनारसी दास स्वतंत्रता आंदोलन में महज 15 साल की उम्र में कूद पड़े थे. इतनी कम उम्र होने के बावजूद वे ना तो जेल जाने से डरे और ना ही जेल में मिलने वाली भयंकर यातनाओं से। बाबू बनारसी दास ने तो अंग्रेजों की घोर प्रताड़ना के आगे सिर न झुकाने की कसम खाई हुई थी। आलम यह था कि एक ओर जेल में अंग्रेजों की यातनाएं बढ़ती जा रही थी तो बाहर उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी. यही वजह रही कि 1946 के विधानसभा चुनाव में वह बुलंदशहर से निर्विरोध चुन लिए गए. साथ ही बुलंदशहर कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भी बना दिए गए।
जामुन के पेड़ से बांधकर पीटते थे अंग्रेज
1930 से 1942 के बीच बाबू बनारसी दास 4 बार जेल गए. यहां तक कि एक बार तो उन्हें खतरनाक मानते हुए बुलंदशहर जेल में नजरबंद कर दिया गया। उन्हें खूब यातनाएं दी गईं. 1943 की एक रात तो उन्हें बैरक से बाहर निकालकर जामुन के पेड़ से बांध दिया गया. फिर उन्हें इतना पीटा कि वह बेहोश हो गए।
सीएम बनने के बाद भी रहे निजी मकान में
बाबू बनारसी दास बेहद सादगी पसंद थे। वे मुख्यमंत्री, मंत्रियों पर होने वाले बेवजह के खर्च को लेकर अक्सर नाराजगी व्यक्त करते रहते थे. वे खुद भी इसे अपने जीवन में उतारते थे. यही वजह है कि 28 फरवरी, 1979 से लेकर 17 फरवरी, 1980 तक सीएम रहने के दौरान वे आलीशान सरकारी कोठी में रहने की बजाय अपने निजी घर में ही रहे. वे हमेशा कोशिश करते थे कि आम आदमी उनसे आसानी से मिल सके।
बने थे राष्ट्रपति के अनुवादक
वैसे तो बाबू बनारसी दास की स्कूली शिक्षा बहुत ज्यादा नहीं हुई थी लेकिन उनकी हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी पर मजबूत पकड़ थी। इस बात को लेकर भी उनका एक किस्सा मशहूर है। एक बार तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन कहीं पर अंग्रेजी में भाषण दे रहे थे पर वहां उसका अनुवाद करने वाला कोई मौजूद नहीं था. तक बाबू बनारसी दास ने उसका अनुवाद किया और राष्ट्रपति की प्रशंसा भी पाई। सीएम रहने के अलावा सूचना, सहकारिता, श्रम, बिजली, सिंचाई के अलावा संसदीय कार्य मंत्री पद पर रहे बाबू बनारसी दास जब 1980 के विधानसभा चुनाव में हार गए तो उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया. इसके बाद 3 अगस्त, 1985 में उनका निधन हो गया था।
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