– गांधीवादी कांग्रेस या गांधीगादी कांग्रेस
वजूद खोते जा रहे गांधी परिवार के सामने अब स्वयं अपने अस्तित्व का संकट खड़ा हो चुका है… सोनिया बूढ़ी हो चली हैं… राहुल का बचपना जा नहीं रहा है और प्रियंका अब गांधी नहीं रहीं… लेकिन कभी गांधीवादी रही कांग्रेस में शुरू हुई गांधीगादी की परम्परा समाप्त होने का नाम नहीं ले रही…जो मुंह खोले वो अपराधी माना जाए और चुप रहे तो अपना राजनीतिक जीवन मिटाए…बड़ी मुश्किल से कांग्रेस के दिग्गजों ने हिम्मत जुटाई…नेतृत्व के लिए आवाज उठाई तो अपनी पारी खेल चुके कांग्रेस के बूढ़ों ने सोनिया को लाठी बनाया और अपनी बची-खुची उम्र को महफूज बनाया…राहुल ने भी सहानुभूति का स्वांग रचाया…सोनिया की बीमारी को ढाल बनाया और हिम्मत करने वाले नेताओं को निशाना बनाया…एक बार फिर अपना बचपना दिखाया और पूरी जिंदगी कांग्रेस के लिए खपाने वाले नेताओं पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाया…राहुल भी यह अच्छी तरह जानते हैं और सोनिया भी यह सच मानती हैं कि अब गांधी परिवार अपना जनाधार खो चुका है… राहुल आगे आते हैं तो लोग वोट नहीं चोट देते हैं…जिस इलाके में सभाएं लें उस नेता के वोट घट जाते हैं…चुनाव लडऩे वाले गांधी परिवार से केवल टिकट तक का नाता रखना चाहते हैं… उनके चेहरे को वो हरालू मानते हैं…उनकी निर्णय क्षमता पर सवाल खड़े हो जाते हैं…वो सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि मिटाने के लिए जाने जाते हैं…राहुल के रहते मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार ढह गई…न तो वो अपने मित्र सिंधिया के हितों की रक्षा कर पाए…न उन्हें विश्वास दिला पाए और न उनका अपमान करने वाले नेताओं को रोक पाए…यही हाल राजस्थान में नजर आया…सचिन पायलट ने आधा महीने तक छकाया…वो तो गेहलोत ने सरकार को बचाया और पायलट को झुकाया, वरना राहुल यहां भी सरकार गुल कर देते…इन्हीं हालातों को देखते हुए कांग्रेस के 29 कद््दावर नेताओं ने मुंह खोलने का साहस दिखाया…सक्षम और नेतृत्व की आवाज को उठाया…आज भले ही कांग्रेस के बूढ़ों ने उनकी आवाज को दबाया, लेकिन यह तय है कि अब कांग्रेस का पंजा जख्मी हो चुका है…जिस दिन यह जख्म नासुर बनेगा उस दिन गांधीगादी का पतन दिखेगा…
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