कैमूर: मां भवानी के मंदिर में किसी बकरे की बलि दी जाए, इसमें आपकी नजरों के सामने बकरे की मौत हो, लेकिन थोड़ी ही देर में बकरा उठकर चलने लगे तो आप क्या सोचेंगे? अब इसे आश्चर्य कहिए या श्रद्धा, बिहार के कैमूर जिले में पंवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी भवानी के मंदिर में ऐसा ही होता है. यहां मां भवानी कभी रक्त की बलि नहीं लेती. बल्कि उन्हें बलि चढ़ाने का तरीका भी अनोखा है. यहां बकरे की बलि चढ़ाने के लिए किसी तलवार-चाकू का इस्तेमाल नहीं होता. यहां तो माता के दरबार में अक्षत फेंकते ही बकरे की मौत होती है और दोबारा अक्षत डाला जाता है तो बकरा जिंदा भी हो जाता है.
इस मंदिर और इस स्थान का विवरण दुर्गा मार्कंडेय पुराण के सप्तशती खंड में मिलता है. इस महान ग्रंथ के मुताबिक एक समय में यहां चंड और मुंड नामक दो दैत्य रहा करते थे. इन दैत्यों का अत्याचार इतना हो गया कि मां भवानी को यहां आना पड़ा था. महिष पर सवार भवानी ने जब चंड का वध कर दिया तो मुंड पंवरा की पहाड़ी पर आकर छुप गया. हालांकि भवानी ने उसे तलाश कर वध कर दिया. उसके बाद माता उसी रूप में यहां विराजमान हैं. कहा जाता है कि माता की मूर्ति में इतना तेज है कि कोई भी व्यक्ति ज्यादा समय तक मूर्ति पर अपनी नजर नहीं टिका पाता.
मंदिर के पुजारी के मुताबिक इस मंदिर की ख्याति दूर दूर तक है. पूरे साल भर लोग यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं और मनौती मांगते हैं. लोगों की मनौतियां पूरी होने पर वह माता का अभार प्रकट करने आते हैं और माता को बलि चढ़ाते हैं. पुजारी के मुताबिक माता को बकरे की बलि चढ़ाने की परंपरा है, लेकिन यहां कभी रक्तपात नहीं होता. दरअसल, माता के सामने बलि का बकरा लाया जाता है और मंत्र पढ़ने के साथ पुजारी बकरे पर अक्षत फेंकते हैं.
इस अक्षत के प्रभाव से बकरा तुरंत अचेत होकर जमीन पर गिर जाता है और उसकी सांसे थम जाती हैं. इसके बाद पूजन की बाकी प्रक्रिया पूरी होती है और फिर आखिर में फिर से बकरे के ऊपर अक्षत डाला जाता है. इस बार अक्षत के प्रभाव से बकरा उठता है और लड़खड़ाते हुए बाहर की ओर चला जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक बलि तो कुछेक लोग ही चढ़ाते हैं, लेकिन बलि की इस परंपरा को देखने के लिए रोजाना हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
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