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25 साल के बेटे को 75 वर्षीय पिता कंधे पर लादकर पहुंचा, लेकिन भूखे पेट खाली हाथ

September 18, 2022

  • प्रधानमंत्री को जन्मदिवस पर इंदौर ने दिया अव्यवस्थाओं का तोहफा
  • क्षमता से अधिक दिव्यांग पहुंचे तो सांसें फूलीं, इन्वेस्टर्स मीट, प्रवासी भारतीयों को कैसे संभालेंगे

इंदौर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस से शुरू हुई जनसेवा यात्रा दिव्यांगों के लिए कठिन डगर साबित हुई। 25 साल के बेटे को 75 वर्षीय पिता कंधे पर लादकर लाभ लेने पहुंच तो गया, लेकिन भूखे पेट खाली हाथ लौटना पड़ा। हजार दिव्यांगों बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था का दावा करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों की सांसें अधिक संख्या में पहुंचे दिव्यांगों को देखकर फूल गईं।

जन सहयोग शिविर के माध्यम से लाभ लेने पहुंचे 1500 से अधिक दिव्यांग और उनके परिजनों को खाली हाथ लौटना पड़ा। 25 साल के बेटे सतीश के 75 वर्षीय पिता राधेश्याम कोली ने बताया कि जन्म से ही मंदबुद्धि और अस्थि विकलांग बेटे को पाल रहे हैं। लोधिया गांव से बेटे को कंधे पर लाद कर पहुंचे पिता को बेटे के लिए न व्हीलचेयर नसीब हुई न ही भरपेट भोजन। शाम 4 बजे तक भूखे पेट रहने के बाद पिता खाली हाथ बेटे को लेकर लौट गया। प्रशासन द्वारा की गई व्यवस्था उस समय अव्यवस्थाओं में बदल गई, जब उम्मीद से अधिक दिव्यांग कार्यक्रम में पहुंच गए। सामाजिक न्याय एवं निशक्तजन कल्याण विभाग के अधिकारियों की नाकाबिलियत रही कि व्हीलचेयर चलाने से लेकर अन्य व्यवस्थाओं के लिए अपने ही कर्मचारियों के हाथ पैर जोडऩे पड़े।


बच्चे भी भूखे पेट लौटे
सामाजिक न्याया एवं निशक्तजन कल्याण विभाग के बजाए अपने हाथ में व्यवस्था लेने वाले प्रशासन के अधिकारी 1 हजार थाली भोजन व्यवस्था का रोना रोते रहे, लेकिन वास्तविकता यह थी कि कई संस्थाओं के बच्चे भूखे पेट ही लौटे। उनके लिए संस्थाओं को भोजन की व्यवस्था करनी पड़ी। देपालपुर, चोरल, सांवेर जैसे दूरस्थ इलाकों से पहुंचे दिव्यांगों और उनके परिजनों को तो भोजन नसिब ही नहीं हुआ। खाद्य विभाग को सौंपी गई जिम्मेदारी नाकाफी साबित हुई। विभाग के अधिकारी वेन्डरों को खाने के लिए फोन लगाते रह गए।

कलेक्टर की छवि पर धब्बा, पुलिस को संभालनी पड़ी व्यवस्था
प्रशासनिक अधिकारियों की नाकाबिलियत इस बात से साबित हो गई कि हर हफ्ते दो चरणों में दिव्यांगों के लिए मेडिकल कैम्प लगाने का दावा झूठा साबित हुआ। दिव्यांगता प्रमाण पत्र के लिए लगाए गए टेबल नाकाफी साबित हुए, बल्कि ट्रायसिकल, व्हीलचेयर और अन्य उपकरण की बंदरबांट देखने को मिली, जिसे जो उपकरण मिला वह उठाकर चलने लगा। दिव्यांगों की बढ़ती तादाद को देखकर उनके परिजनों को संभालने के लिए पुलिस को कुर्सियों पर चढक़र व्यवस्था संभालनी पड़ी।

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