संक्रमण की तीसरे स्टेन के लिए नहीं बनी है किट… लक्षण आने पर पता चलता है बढ़ चुकी है बीमारी
इन्दौर। बढ़ती बीमारी… गंभीर मरीज (patient) और फिसलती जिंदगियों के बीच का सबसे बड़ा कारण यह है कि आटीपीसीआर की जो जांच किट है वो नए संक्रमण (infection) को पकड़ नहीं पा रही है… टेस्ट करने के बाद मरीज निगेटिव निकलता है और इस रिपोर्ट को स्वास्थ्य विभाग ( health department) की क्लीन चिट मानकर मरीज बुखार-खांसी को अन्य साधारण बीमारी की तरह समझने लगता है, लेकिन हकीकत यह है कि आरटीपीसीआर (Rtpcr) की प्रचलित किट नए संक्रमण को पकड़ नहीं पा रही है और मरीज को निगेटिव (negative) बता रही है…
दरअसल जैसे ही मरीज बुखार की गिरफ्त में आता है वैसे ही साधारण उपचार में लग जाता है, लेकिन बुखार जब एक-दो दिन नहीं उतरता है और खांसी का दौर भी शुरू होने लगता है तब वह कोविड टेस्ट के लिए जाता है… लेकिन कोरोना का नया संक्रमण (infection) एक ऐसा तीसरा स्टेन लेकर आया है जिसकी पकड़ में प्रचलित आरटीपीसीआर (Rtpcr) की टेस्ट किट नाकाम है… जांच के बाद मरीज निगेटिव रिपोर्ट लेकर स्वयं को अन्य बीमारियों का शिकार मानकर साधारण सर्दी-खांसी की दवाई लेना शुरू कर देता है, लेकिन बीमारी बढ़ते हुए जब फेफड़ों तक जा पहुंचती है और खांसी के साथ सांस की दिक्कत महसूस होने लगती है तब पता चलता है कि वह न केवल खुद कोरोना संक्रमित था, बल्कि अपने घर से लेकर सम्पर्क में आने वाले कई लोगों को संक्रमित कर चुका है… संक्रमण (infection) की यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब दो ही दिन में संक्रमण (infection) का स्तर चरम पर पहुंच जाता है… जीवन रक्षक दवाइयों से लेकर साधन-संसाधन और अस्पताल समय पर नहीं मिलते… उस स्थिति तक पहुंचने से बचने के लिए जरूरी है कि बीमारी को गंभीरता से लेते हुए केवल कोविड टेस्ट की रिपोर्ट पर भरोसा न करें…
कोविड टेस्ट से ज्यादा सीटी चेस्ट कराना जरूरी
अरविंदो हॉस्पिटल के संचालक डॉ. विनोद भंडारी ने जहां इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि प्रचलित आरपीटीसीआर (Rtpcr) किट जांच के स्तर में नाकाम हो रही है, वहीं अस्पताल के चिकित्सक डॉ. रवि डोशी ने कहा कि जब भी खांसी का स्तर बढ़ता नजर आए वैसे ही अपना सीटी चेस्ट कराए… यह सीटी चेस्ट भी यदि निगेटिव आता है और खांसी कम नहीं होती है या सांस लेने में तकलीफ होती है तो दोबारा टेस्ट कराएं… क्योंकि संक्रमण (infection) की स्थिति दो दिन बाद शुरू होकर 24 घंटों में ही फेफड़ों को गिरफ्त में ले लेती है… सही समय पर इस संक्रमण को रोके जाने के प्रयास से किसी गंभीर स्थिति में जाने से बचा सकता हैं…
सीटी चेस्ट मशीनों के भी संक्रमित होने का खतरा
बढ़ती बीमारी, बढ़ते मरीजों के कारण शहर के किसी भी अस्पताल में मौजूद सीटी चेस्ट मशीनें दिन-रात काम में लगी हुई है… आलम यह है कि एक मरीज उठता है और दूसरा लेटता है… मुसीबत यह है कि लगातार मरीजों की जांच के चलते सीटी स्केन मशीन भी सेनेटाइज नहीं हो पा रही है… ऐसे में पॉजिटिव मरीज की जांच के बाद यदि कोई निगेटिव मरीज जांच कराता है तो उसे भी संक्रमित होने का खतरा रहता है… इसलिए जांच से पहले टेक्निशियन को मशीन सेनेटाइज करने के लिए जरूर कहें और मशीन पर भी मास्क लगाकर ही जांच कराएं…
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