नई दिल्ली । मेंगलुरु ब्लास्ट केस (mangaluru blast case) में अब पीएफआई (PFI) और आईएसआईएस (ISIS) कनेक्शन की बात सामने आ रही है. मोदी सरकार द्वारा पीएफआई के खिलाफ की गई कार्रवाई का बदला लेने के लिए मेंगलुरु में हमला करने की प्लानिंग थी. जांच के दौरान खुलासा हुआ है कि मैंगलोर धमाके में गिरफ्तार शख्स शारिक (Sharik) को चैटिंग ऐप (chatting app) के जरिए हुआ रेडिकलाइज यानी कि कट्टरपंथी बनाया गया था. शारिक के पास क्रिप्टो के माध्यम से पैसे मिलने के भी सबूत मिले हैं. जांच एजेंसी को इस बात की भी जानकारी मिली है कि पिछले 2 महीनों से शारिक विदेश में बैठे आईएसआईएस हैंडलर के संपर्क में था.
एनआईए की नजर कई लोगों पर
इस मामले की तफ्तीश के दौरान अब ये पता लगाया जा रहा है कि और कितने युवाओं को अपने खतरनाक मंसूबों में जोड़ने के लिए आतंकवादी संगठनों द्वारा संपर्क किया गया है. कर्नाटक पुलिस और एनआईए की जांच के दायरे में शिवमोगा, मैंगलोर के आधा दर्जन युवा हैं, जिनपर शक है कि वो आईएसआईएस के लिए काम करते हैं. उनकी संलिप्तता पिछले आतंकी धमाकों में भी है और अभी उनके लोकेशन की सूचना पुलिस के पास नहीं है.
सीक्रेट चैटिंग ऐप से हो रही है बात
जांच एजेंसिया मानकर चल रही हैं कि यही लोग विदेश में बैठे आईएसआईएस हैंडलर के जरिए कर्नाटक के युवाओं को रेडिकलाइज कर रहे हैं. इन दिनों रेडिकलाइजेशन का मुख्य जरिया चैटिंग ऐप और डार्क वेब बना हुआ है. 2020 से आधा दर्जन आरोपी आईएसआईएस काडर लापता हैं, इनमें से प्रमुख नाम है मुसबिर हुसैन, अब्दुल मतीन ताहा और अराफात अली.
जांच के दौरान यह भी बात सामने आई है कि तीन अन्य मैंगलोर के लोकल हैं जिन लोगों ने शारिक की मदद की. पहले एक बार रेकी करने में और फिर धमाके के दिन 19 नवंबर को आईईडी प्लांट करने में मदद की गई. जांच एजेंसी सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तार शारिक बहुत ज्यादा रेडिकलाइज था और उसमें बदले की भावना बहुत ज्यादा थी.
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