-सिद्वार्थ शंकर
गृह मंत्रालय ने जम्मू के वायु सेना अड्डे (एयरबेस) पर ड्रोन हमले की जांच एनआईए को सौंप दी है। वहीं, देर रात जम्मू के रत्नूचक इलाके के कुंजवानी में फिर संदिग्ध ड्रोन दिखा है। पिछले दो दिन में यहां तीसरी बार ड्रोन देखा गया है। इधर, जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि एयबेस पर हुए ड्रोन हमले में आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ हो सकता है। दूसरी ओर, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में आतंकी हमले के लिए ड्रोन के इस्तेमाल का मुद्दा उठाया। इस पर गंभीरता से ध्यान देने को कहा है। जब से जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुआ है और उसे केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया है, तबसे वहां सक्रिय चरमपंथी संगठनों की गतिविधियां बढ़ गई हैं।
हालांकि सुरक्षा बलों की मुस्तैदी और सख्त कार्रवाई की वजह से पिछले एक साल में वहां आतंकी हमलों में काफी कमी आई है। पाकिस्तान की तरफ से मिलने वाली मदद और शह भी थम गई है। सीमा पर अब संघर्ष विराम का पालन किया जा रहा है। पर जैसे ही घाटी के प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री के बुलावे को स्वीकार कर लिया, वैसे ही वहां की अलगाववादी ताकतें फिर से हरकत में आ गईं।
खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों को इसकी आशंका पहले से थी, इसलिए जिस दिन घाटी के नेताओं की प्रधानमंत्री के साथ बातचीत होनी थी, उससे पहले ही वहां सुरक्षा इंतजाम बढ़ा दिया गया था। इसके बावजूद आतंकियों ने जम्मू हवाई अड््डे के पास वायु सेना परिसर में ड्रोन से बारूदी विस्फोट कर दिया। अभी तक उस घटना की जिम्मेदारी किसी आतंकी संगठन ने नहीं ली है, पर लश्करे-तैयबा पर शक जाहिर किया जा रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी घटना की जांच कर रही है। इस घटना के एक दिन बाद ही एक विशेष पुलिस अधिकारी के घर में घुस कर आतंकियों ने अधिकारी, उसकी पत्नी और बेटी की हत्या कर दी। उसके बाद भी सीमा पार से हमले की नीयत से आए दो ड्रोन जम्मू के वायु सेना क्षेत्र में देखे गए।
हालांकि इन घटनाओं के बाद यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि जब ऐसी आतंकी हरकतों की आशंका पहले से थी और सुरक्षा बल उन्हें रोकने के लिए सतर्क थे, तब भी चरमपंथी अपने मंसूबे में कामयाब कैसे हो गए। कैसे सुरक्षा उपकरणों को ड्रोन की भनक तक नहीं लग पाई। मगर जिस तरह आतंकी संगठन अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करते और भारतीय सुरक्षा बलों को चकमा और चुनौती देने का लगातार प्रयास करते रहे हैं, उसमें ये हमले करने में भी कामयाब हो गए। अभी घाटी से आतंकियों का पूरी तरह सफाया नहीं हुआ है और जो अब भी बचे-खुचे हैं, वे ऐसी हरकतें करके अपना वजूद जाहिर करते रहते हैं।
पाकिस्तान भी बेशक संघर्ष विराम का पालन करता दिख रहा है, पर सीमा पर उधर के आतंकी घात लगाए रखते हैं। उन्हीं ने ड्रोन हमला और विशेष पुलिस अधिकारी की हत्या की। विशेष पुलिस अधिकारी दरअसल, कश्मीर पुलिस के मुलाजिम तो नहीं होते, पर वे आतंकियों का सुराग जुटाने और उनके सफाए के लिए चलाए जा रहे अभियान में सहायक होते हैं। स्वाभाविक ही ये अधिकारी आतंकियों की आंख की किरकिरी बने रहते हैं।
जब तक जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ था और वहां आजादी की मांग उठाने की संभावना बची हुई थी, तब तक दहशतगर्दों के लिए भी जमीन बची हुई थी। पाकिस्तान से भी उन्हें मदद मिलती थी। मगर अब पाकिस्तान खुद अपने अंदरूनी हालात से परेशान है और ऊपर से आतंकवाद रोकने को लेकर उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव है, इसलिए अब वह कश्मीर मसले पर पहले जैसा उग्र रुख अख्तियार नहीं करता। फिर घाटी में स्थानीय लोगों का समर्थन भी अब दहशतगर्दों को पहले जैसा नहीं मिल पाता। इस तरह स्वाभाविक ही उनमें हताशा दिखाई देने लगी है। अब उन्हें लगने लगा है कि जिस तरह घाटी के राजनीतिक दल लोकतंत्र बहाली की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, उससे अलगाववाद का मुद्दा ही कहीं हाशिए पर चला जाएगा। ये हमले उनकी इसी हताशा का नतीजा हैं।
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