जबलपुर। जिले में सर्दी का मौसम आते ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बंदरों का डेरा बन जाता है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों से बंदरों के आंतक व धमाचौकड़ी की खबरें सामने आती है। बंदर वैसे तो अपनी चंचलता के मशहूर है लेकिन जब कोई बंदर हिंसक हो जाए तो स्थिति चिंताजनक हो जाती है। ऐसा ही एक मामला शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर ग्राम घाना में सामने आया है। जहां एक लाल मुंह का बंदर अचानक हिंसक हो गया और पिछले तीन दिनों से वह इसी अवस्था में है। ग्रामीणों का कहना है कि राह चलते लोगों को बेवजह की दौड़ा रहा है। हालांकि उसने अभी तक किसी को काटा नहीं है। कुछ लोगों का कहना है कि बंदर बीमार है। इस संबंध में ग्राम घाना के सरपंच ने एंटी पोचिंग स्कॉट को भी सूचना दी है। लेकिन तीन दिन बीत गए अब तक एस्कॉर्ट मौके पर नहीं पहुंचा है। इन विषम परिस्थितियों के बीच क्षेत्र के नागरिक घरों से भी निकलने में डर रहे हैं।
एस्कॉर्ट के पास वाहन की कमी
एक ग्रामीण ने बताया कि सरपंच ने पहले दिन ही वन्य प्राणी सुरक्षा दल को शिकायत की थी तो उनका कहना था कि उनके पास पर्याप्त वाहनों की कमी है इसलिए वह बहुत जल्दी वहां नहीं पहुंच सकते। लेकिन तीन दिन बीत गए अभी तक वन विभाग का यह अमला मौके पर बंदर को पकडऩे में सफल नहीं हो पाया है।
वेटरनरी अस्पताल ले जाने में असफल
ग्रामीणों बंदर की हालत देखकर उसे वेटरनरी अस्पताल ले जाने की चर्चा तो कर रहे हैं लेकिन हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है। सभी को डर है कि बंदर के पास जाने में वह हिंसक न हो जाये। ऐसी अवस्था में सिर्फ वन विभाग का दल ही इसे पकड़ सकता है, लेकिन उनके पास समय नहीं है ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायत घाना में दहशत है। ग्राम पंचायत के सीमा सड़क पर सैकड़ों बंदरों का रहवास है और सुबह होते ही यह रोड पर भोजन के लिए आ जाते हैं।
खाना देना भी हो गया दुश्वार
बताया जाता है कि जो भी व्यक्ति लाल मुंह के बंदर को खाना देने जाता है उसे भी खदेड़ देता है। रविवार की सुबह उसे धूप तापते हुए देखा गया है। इस बंदर के साथी उसके पास नहीं जा रहे हैं वह अकेला गुमसुम बैठा है कुछ लोगों का कहना है कि बंदर किसी रोग से ग्रसित हो गया है।
दो पहिया तथा चार पहिया वाहनों के लोग देते हैं खाना
बताया जाता है कि लंबी दूरी में जाने वाले लोग इस सड़क से निकलते हैं तो वह वाहनों की खिड़की से ही बंदरों को बिस्किट, ब्रेड, केला, चना, आलू इत्यादि भोजन देते हैं। यह लंबे अरसे से चल रहा है। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर बंदर को कब वन विभाग अपनी कैद में लेगा तथा उसका उपचार करेगा।
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