टिकट बंटवारे को लेकर दोनों नेताओं के बीच मतभेद की खबरें
इंदौर। एक सप्ताह पहले जिस तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी (State Congress President Jitu Patwari) और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार (Leader of Opposition Umang Singhar) की राजनीतिक केमेस्ट्री देखी जा रही थी, वह अब नहीं दिखाई दे रही है। दोनों के बीच टिकट बंटवारे को लेकर मतभेद की खबरें आ रही हैं, जिस कारण चुनाव प्रचार से सिंघार ने दूरी बना रखी है।
पटवारी के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही दोनों नेताओं के बीच राजनीतिक समझ परवान चढ़ रही थी। दोनों ही नेताओं की केमेस्ट्री को देखकर लग रहा था कि प्रदेश में तो कांग्रेस कम से कम युवा हो ही जाएगी, लेकिन पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से दोनों नेताओं में नहीं बन रही है। कुछ समय पहले तक दोनों ही नेता कांग्रेस के प्रत्याशियों का नामांकन भरवाने और जिलों में दौरा करने के लिए साथ-साथ घूम रहे थे। उसके बाद पटवारी की अरुण यादव से नजदीकियां बढ़ीं और अब ज्यादातर अरुण यादव पटवारी के साथ नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि विदिशा लोकसभा सीट पर सिंघार कांग्रेस प्रत्याशी अपने मनमाफिक चाह रहे थे, लेकिन पटवारी ने उनकी बात नहीं मानी। अब यही पेंच मुरैना सीट पर फंसा है, जहां सिंघार अपना उम्मीदवार चाह रहे हैं। पटवारी यहां भी अपने नाम को लेकर अड़े हुए हंै और इसी चक्कर में दोनों के बीच खाई बढ़ गई है। इससे एक बार फिर कांग्रेस में चल रही अंदरूनी गुटबाजी सामने आ रही है। पटवारी लगातार दौरे कर कांग्रेस को एकजुुट करने में लगे हुए हैं, लेकिन बड़े नेता ही उनसे दूर होते जा रहे हैं। ये उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो रही है। कांग्रेस का आलाकमान भी इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहा है और लगातार कांग्रेस नेता पार्टी छोडक़र भाजपा में जाते जा रहे हैं। आज पटवारी इंदौर में हैं, लेकिन सिंघार उनके साथ नजर नहीं आए हैं। सिंघार ने अपने आपको अपने ही क्षेत्र में सीमित कर लिया है। विदित है कि कांग्रेस ने अभी तक मुरैना, ग्वालियर और खंडवा में अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है।
अपनी ही कांग्रेस में घिरा गए पटवारी, बड़े नेता फेल करने में लगे
कांग्रेस में अभी जो हालात नजर आ रहे हैं, उसमें स्पष्ट नजर आ रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी अपनी ही पार्टी में घिरा गए हैं। कमलनाथ जैसे नेता से पंगा लेना उन्हें यहां महंगा पड़ता नजर आ रहा है। कमलनाथ तो उनसे नाराज हैं ही, वहीं दिग्विजयसिंह जैसे नेता भी खुलकर उनके साथ नहीं हैं। एक तरह से काग्रेस में चल रही वर्चस्व की लड़ाई में पटवारी को फेल करने में कई नेता लगे हुए हैं और बता रहे हैं कि पटवारी का नेतृत्व उन्हें मंजूर नहीं है।
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