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    पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की रिट याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया तेलंगाना हाईकोर्ट ने

  • June 28, 2024


    हैदराबाद । तेलंगाना हाईकोर्ट (Telangana High Court) ने शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (Former Chief Minister K.Chandrashekhar Rao) की रिट याचिका पर (On the Writ Petition) अपना आदेश सुरक्षित रख लिया (Reserved its Order) । याचिका में जस्टिस एल नरसिम्हा रेड्डी आयोग द्वारा बीआरएस सरकार के दौरान छत्तीसगढ़ के साथ किए गए बिजली खरीद समझौते और भद्राद्री तथा यदाद्री थर्मल पावर प्लांट के निर्माण की जांच पर रोक लगाने की मांग की गई है।


    चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस अनिल कुमार जुकांति की डिवीजन बेंच ने महाधिवक्ता ए. सुदर्शन रेड्डी की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया। भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख ने हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग गठित करने के सरकारी आदेश को रद्द करने की मांग की है। कोर्ट ने गुरुवार को केसीआर के वकील की दलीलें सुनी थी और शुक्रवार को मामले में आगे सुनवाई शुरू हुई। महाधिवक्ता ने याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि आयोग ने एकतरफा कार्रवाई की है। इससे पहले, हाई कोर्ट रजिस्ट्री ने हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस को व्यक्तिगत रूप से पक्षकार बनाने पर आपत्ति जताते हुए याचिका को नंबर आवंटित करने से इनकार कर दिया था।

    केसीआर के वकील आदित्य सोंधी ने दलील दी थी कि जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी को प्रतिवादी के तौर पर नामित करना जरूरी है। उन्होंने दलील दी कि जस्टिस रेड्डी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और निष्कर्ष निकाला कि पिछली सरकार ने अनियमितताएं की जिससे राज्य के खजाने को 250 करोड़ से 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जबकि केसीआर को आयोग के सामने अपनी दलीलें पेश करने का मौका नहीं दिया गया।

    सोंधी ने कहा कि जस्टिस रेड्डी का प्रेस कॉन्फ्रेंस करना अनुचित था क्योंकि आयोग का एकमात्र कर्तव्य सरकार को रिपोर्ट सौंपना था। हाई कोर्ट ने रजिस्ट्री की आपत्तियों को खारिज करते हुए याचिका को एक नंबर आवंटित करने का आदेश दिया। बाद में बेंच ने सुनवाई की कि क्या केसीआर की याचिका को स्वीकार किया जाना चाहिए। केसीआर के वकील ने यह भी कहा कि जांच आयोग गठित करने का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर था। इस संबंध में शर्तें तेलंगाना और छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत विनियामक आयोगों द्वारा फैसले के अधीन थी।

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