हैदराबाद (Hyderabad) । अपने हर मिशन के पहले शुभ मुहूर्त, नाम, वास्तु आदि का ख्याल रखने वाले केसीआर (KCR) को तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (BRS) करना शायद फलित नहीं हुआ। उनकी हार के कई कारण माने जा रहे हैं, लेकिन केसीआर के लिए सबसे सटीक विश्लेषण शायद यही है कि उनके ग्रह प्रतिकूल हो गए। इसलिए उनका हर सियासी तीर निशाने पर लगने के बजाय उनकी ही रणनीति को भेद गया।
हार की बड़ी वजह खुद कमजोर पड़ना
जानकार मानते हैं कि केसीआर की हार की सबसे बड़ी वजह उनका स्वयं कमजोर पड़ना है। उन पर अपने बेटे को प्रदेश की राजनीति में स्थापित करने का दबाव था। बेटे का दखल और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप उनकी जननेता की छवि को कमजोर कर रहे थे। वे खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करना चाहते थे।
कारों के बड़े काफिले और पूरी कैबिनेट के साथ दूसरे राज्यों में प्रचार और राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की कवायद के बीच वे राज्य में ही घिरते रहे। इंडिया गठबंधन से दूरी और बेटी को शराब घोटाले में जेल जाने से बचाने के लिए भाजपा से गुप्त समझौते का संदेश भी उन पर भारी पड़ा।
सत्ता विरोधी लहर भारी पड़ी
आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद तेलंगाना में टीआरएस (अब बीआरएस) ने पहली सरकार बनाई थी। वहीं, 2018 में पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला। दोनों बार पार्टी स्वर्णिम तेलंगाना बनाने के वादे पर राज्य में सत्ता में आई थी। लेकिन, किसानों, युवाओं, दलितों और पिछड़े वर्गों की अपेक्षा को पूरा नहीं कर पाने का नैरेटिव केसीआर पर भारी पड़ा और बीआरएस की पकड़ कमजोर हुई। यह धीरे-धीरे केसीआर के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बनकर उभरी।
कांग्रेस ने केसीआर सरकार के खिलाफ असंतोष का फायदा उठाया
विपक्ष में कांग्रेस ने जनता के बीच केसीआर सरकार के खिलाफ असंतोष का फायदा उठाया। कांग्रेस ने राज्य में बेरोजगारी, कृषि संकट, भ्रष्टाचार, परिवारवाद और विकास की कमी के मुद्दों को जनता के सामने रखा। पिछली बार बुरी तरह हारी कांग्रेस ने इस बार बीआरएस के सामने एक प्रभावी और आक्रामक चुनाव अभियान चलाया।
यहां प्रचार अभियान का नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस इकाई के अध्यक्ष रेवंत रेड्डी, सांसद उत्तम कुमार रेड्डी और के. जना रेड्डी, सीएलपी नेता मल्लू भट्टी विक्रमार्क और सांसद कोमाटी रेड्डी वेंकट रेड्डी जैसे अन्य वरिष्ठ नेताओं ने किया। इसके अलावा, कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सांसद राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी जैसे बड़े नेताओं ने भी राज्य में लगातार चुनावी दौरे किए।
कांग्रेस ने पेशेवर अभियान रणनीतिकार कनुगोलू को शामिल किया
कांग्रेस ने चुनाव के लिए एक पेशेवर अभियान रणनीतिकार सुनील कनुगोलू को शामिल किया। सुनील पहले भाजपा और आम आदमी पार्टी के साथ काम कर चुके हैं। उन्होंने कांग्रेस के लिए एक व्यापक चुनाव अभियान योजना तैयार की, जिसमें रैलियां, रोड शो, घर-घर दौरे, सोशल मीडिया शामिल था। खड़गे ने अपने खास रणनीतिकार गुरदीप सप्पल को भी वहां खास मिशन पर लगाया था।
ये मुद्दे भी पड़े भारी
बेरोजगारी की समस्या भी राज्य में केसीआर सरकार की पकड़ को कमजोर करने की एक बड़ी वजह रही। कांग्रेस ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार बेरोजगारी और पेपर लीक जैसे मुद्दे उठाए। 2014 में पहली बार सत्ता में आने वाली बीआरएस ने युवाओं को रोजगार देने का वादा किया, लेकिन पिछले 10 सालों में अपेक्षित नौकरियां उपलब्ध नहीं करा पाईं।
भर्तियों के मुद्दे पर राज्य में आए दिन बेरोजगार धरना-प्रदर्शन होते रहे। भर्तियों में देरी और इंटर, पीएससी परीक्षाओं का लीक होना और ग्रुप परीक्षाओं का स्थगन बीआरएस को युवाओं से दूर करता गया। पिछले विधानसभा चुनाव में बीआरएस सरकार ने बेरोजगारों को भत्ता देने का ऐलान भी किया गया था, जिसको लागू नहीं करने से युवाओं में गुस्सा देखा गया। यही कारण है कि युवाओं को रिझाने के लिए बीआरएस ने चुनाव से कुछ महीने पहले विद्यार्थी और युवजन जैसे कार्यक्रम शुरू किए, लेकिन यह कारगर नहीं रहा।
अनियमितता की शिकायत
राज्य में केसीआर सरकार ने कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन इनमें अनियमितता की शिकायत रही। सरकार की ओर से एक पोर्टल ‘धरणी’ बनाया गया था, जिसको लेकर आरोप लगाया गया कि पोर्टल के कारण बटाईदार किसानों और काश्तकारों को काफी नुकसान हुआ। लोगों ने शिकायत की कि इससे केवल जमींदारों को लाभ हुआ है। कई स्थानों पर लोगों को वितरित की गई जमीनें असल में जमींदारों के नाम पर भी हैं।
दलितबंधु योजना का दुरुपयोग
केसीआर सरकार ने दलित समाज के लिए दलितबंधु योजना शुरू की थी। आरोप लगाए गए कि योजना का दुरुपयोग किया गया। केवल सत्ताधारी दल से जुड़े लोगों और खासकर विधायकों से जुड़े लोगों को ही दलित बंधु योजना का फायदा मिला है, जिसमें कट-कमीशन के भी आरोप लगे। बीआरएस सरकार के गठन के बाद डबल बेडरूम घर नाम से एक योजना शुरू की गई थी, जो सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है।
आरोप लगे कि सरकार गरीबों और वंचित तबकों को डबल बेडरूम का घर देने में सफल नहीं हो पाई। इसके अलावा महत्वाकांक्षी कालेश्वरम परियोजना में मेदिगड्डा बैराज में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। इसमें गुणवत्ता संबंधी खामियां भी बताई गईं।
तेलंगाना में काम आईं कांग्रेस की गारंटियां
इस चुनाव में राज्य में महिलाओं, आदिवासियों और किसानों से जुड़े मुद्दे भी हावी रहे। इन मुद्दों को लेकर कांग्रेस ने जहां सरकार को घेरा तो वहीं सरकार में आने पर सभी वर्गों के लिए काम करने का वादा किया। खासकर महिला वोटर को साधने के लिए कर्नाटक की तरह तेलंगाना में कांग्रेस ने गारंटियों की बात की।
इसके साथ ही कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में मतदाताओं को लुभाने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं और लोकलुभावन वादे पेश किए। इनमें से महिलाओं के लिए महालक्ष्मी, इंदिरम्मा और गृहज्योति जैसी योजनाएं शुरू करने का वादा किया। इंदिरम्मा गरीबों के लिए 25 लाख सस्ते आवास उपलब्ध कराने की योजना है। गृहज्योति में घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली बिलों पर सब्सिडी देने की गारंटी दी गई है। इसका फायदा मिला।
कांग्रेस की जीत की पांच वजहें
1-प्रभावी घोषणाएं और नेतृत्व के जरिए केसीआर सरकार के खिलाफ कांग्रेस ने खुद को विकल्प के रूप में पेश किया
2-छह गारंटी काम आई
3-रेवंत रेड्डी को प्रदेश की कमान सही समय पर सौंपना
4-राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से इस इलाके में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना
5-पेपर लीक, भ्रष्टाचार के मुद्दे को भुनाया, साथ ही केसीआर के भाजपा से मिले हुए होने का नैरेटिव नीचे तक पहुंचाकर सत्ता विरोधी मतों को बिखरने नहीं दिया।
बीआरएस की हार की पांच वजहें
1-केसीआर के बेटे केटी रामाराव का बढ़ता दखल और केसीआर पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
2-विधायकों के खिलाफ माहौल
3-युवाओं को रोजगार नहीं मिलना और पेपर लीक जैसी घटनाएं
4-बीआरएएस की भाजपा से मिलीभगत की आशंका से मुस्लिम वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया
5-नकदी हस्तांतरण की योजनाओं में भाई-भतीजावाद का आरोप भारी पड़ा
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