पटना। लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) और भतीजे चिराग पासवान (Chirag Paswan) के बीच की अदावत अब भी जारी है। पार्टी में दो गुट बंट चुके हैं और एक के नेता पारस हैं तो एक के चिराग। पार्टी पर अधिकार किसका है, यह मामला अब चुनाव आयोग के पास है। इस पर चुनाव आयोग का क्या निर्णय आता है, यह देखना बिहार की सियासत के लिहाज से बेहद दिलचस्प रहेगा।
वजह यह है कि चिराग पासवान ने सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर लोजपा में हुई टूट के लिए मास्टरप्लान बनाने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर राजद नेता तेजस्वी यादव (RJD leader Tejaswi Yadav) ने चिराग को अपने साथ आने का ऑफर दे दिया है। कांग्रेस ने भी चिराग पासवान को बड़ा नेता बताते हुए अपने साथ आने का ऑफर दिया है। हालांकि, इन सबमें सबकी नजर तेजस्वी के ऑफर पर आ टिकी है और यह देखना है कि आखिर चिराग पासवान का इस पर क्या रुख होता है?
बता दें कि बुधवार को करीब दो महीने बाद बिहार लौटे नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने लोजपा सांसद चिराग पासवान को राजद के साथ महागठबंधन में आने का निमंत्रण दिया। उन्होंने चिराग पासवान को भाई संबोधित करते हुए कहा कि चिराग भाई को तय करना है कि बंच ऑफ थॉट्स के पुर्जे के साथ रहेंगे या बाबा साहेब ने जो संविधान लिखा उसका साथ देंगे। चिराग किसके साथ रहना पसंद करेंगे ये उन्हीं को तय करना है। जाहिर है इसी के साथ ही बिहार की सियासत में यह सवाल उठने लगा है कि क्या चिराग-तेजस्वी साथ आ सकते हैं? अगर ऐसा हुआ तो आने वाली सियासत पर क्या असर हो सकता है? क्या भाजपा-जदयू की जोड़ी को चिराग-तेजस्वी मिलकर मात दे सकते हैं?
चिराग-तेजस्वी की जोड़ी बदल देगी बिहार की सियासत
जाहिर है लोजपा में टूट के बाद चिराग पासवान के राजनीतिक भविष्य को लेकर बिहार में सियासी कयासबाजियों का दौर जारी है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि इसकी पीछे जमीनी स्तर की वह राजनीति है, जिसमें पशुपति कुमार पारस भले ही अपने जनाधार का दावा करते हैं, लेकिन वास्तविक समर्थन चिराग पासवान के पक्ष में नजर आता है। इसका कनेक्शन वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव से भी जुड़ता है, क्योंकि सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के गठबंधन के खिलाफ जाकर भी चिराग ने अपने दम पर लोजपा को लगभग 26 लाख वोट दिलाया था। यह कुल वोट का 6 प्रतिशत होता है जो बिहार की सियासत में सत्ता समीकरण को उलट-पलट करने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।
तेजस्वी ने इन आंकड़ों का किया है गहन अध्ययन!
बीते 2020 विधानसभा चुनाव में वोटों के समीकरण को आंकड़ों में देखें तो साफ नजर आता है कि चिराग फैक्टर बहुत बड़ा अंतर ला सकता है। दरअसल, एनडीए के खाते में 1 करोड़ 57 लाख 01 हजार 226 वोट पड़े थे, जबकि महागठबंधन के खाते में 1 करोड़ 56 लाख 88 हजार 458 वोट पड़े। अगर इसे प्रतिशत के लिहाज से देखें तो एनडीए को 37।26% वोट मिले जबकि महागठबंधन को 37।23 % वोट मिले। महागठबंधन और एनडीए की जीत में फैसला केवल लगभग 12000 वोट का था।
एनडीए के लिए बड़ा झटका होगा चिराग-तेजस्वी का साथ
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि तेजस्वी की नजर अब चिराग के उस 6 प्रतिशत वोट पर आ टिकी है। इसकी वजह यह भी है कि तेजस्वी और चिराग दोनों यह बात मानते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह आखिरी कार्यकाल है और 2025 का विधानसभा चुनाव में वे नहीं होगे। ऐसे में अगर बिहार के लोगों के पास दो युवा नेताओं का विकल्प रहेगा तो सियासत कोई भी करवट ले सकता है। वहीं, दोनों अगर साथ आ जाते हैं तो राजद का पुराना समीकरण काफी हद तक फिर से जीवित हो जाएगा जो एनडीए की राजनीति के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
ऐसा हुआ तो बिहार की दलित सियासत भी पलट जाएगी
दरअसल तेजस्वी यादव अभी से ही 2024 लोकसभा और 2025 विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। जाहिर है अगर महागठबंधन के खाते में चिराग पासवान के यह 6 प्रतिशत वोट जोड़ दिए जाएं तो 43 प्रतिशत वोट के साथ तेजस्वी के लिए बड़ा बूस्ट साबित होगा। इसके साथ ही राजद की कोशिश है कि रामविलास पासवान के उत्तराधिकारी को अपने साथ ले आएं तो दलित सियासत के लिहाज से एक बड़े वर्ग की 16 प्रतिशत आबादी की मानसिकता पर भी असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि आज भी राम विलास पासवान को ही बिहार का सबसे दलित नेता माना जाता है।
बिहार में लिखी जा सकती है सियासी बदलाव की कहानी
बीते चुनाव में वोटों के समीकरण के आधार पर रवि उपाध्याय कहते हैं कि 2020 चुनाव में यह साबित हो गया कि मुस्लिम और यादव मतदाता अभी भी आरजेडी के साथ खड़े हैं। आरजेडी के पास आज भी 17 प्रतिशत मुस्लिम और 16 प्रतिशत यादव वोट बैंक है। ऐसे में अगर चिराग पासवान महागठबंधन में शामिल हो जाते हैं तो उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। तेजस्वी इसे लालू के वोट बैंक को री स्टोर करने के लिहाज से भी देख रहे हैं जो बिहार की सियासत में सत्ता के बदलाव की कहानी लिख सकती है।
2024 और 2025 पर टिकी तेजस्वी यादव की नजर
रवि उपाध्याय इसे वोटों के बिखराव और एका से जोड़ते हुए कहते हैं कि अगर ऐसी संभावना बनती तो 1.6 प्रतिशत पासवान वोट बैंक तेजस्वी के साथ सीधा आ जाएगा और महागठबंधन का वोट शेयर डायरेक्ट 39 प्रतिशत हो जाएगा। वहीं, चिराग पासवान को मिले कुल छह प्रतिशत वोट जोड़ दिए जाएं तो उनका वोट प्रतिशत करीब 43 प्रतिशत हो जाएगा। ऐसे में चिराग पासवान अगर तेजस्वी के साथ आते हैं तो 2024 लोकसभा चुनाव और आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव में वह बिहार में एनडीए को हरा सकते हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved