इस्लामाबाद. पाकिस्तान (Pakistan) और अफगानिस्तान (Afghanistan) के बीच जारी तनाव के बीच तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के आतंकवादियों ने खैबर पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) के बाजौर जिले के सालारजई इलाके में एक पाकिस्तानी सैन्य अड्डे (Pakistani military bases) पर कब्जा कर लिया है. टीटीपी ने दावा किया है कि उसने 30 दिसंबर, 2024 की सुबह पाकिस्तानी मिलिट्री बेस पर कब्जा कर लिया. बता दें कि इस क्षेत्र में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को निशाना बनाने वाली आतंकवादी गतिविधियों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है. पाकिस्तानी सैन्य चौकी पर टीटीपी का कब्जा इस कड़ी में ताजा और बड़ा हमला है.
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच डूरंड बॉर्डर से टीटीपी आतंकियों द्वारा पाकिस्तानी मिलिट्री बेस पर कब्जे का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. पाकिस्तानी मीडिया ने एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी के हवाले से बताया कि इस मिलिट्री बेस को कुछ समय पहले खाली कर दिया गया था और यहां सेना के जवानों की तैनाती नहीं थी, उन्हें एक नए और मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर में ट्रांसफर कर दिया गया था. पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक यह प्रक्रिया सिर्फ बाजौर तक ही सीमित नहीं थी बल्कि उत्तरी और दक्षिणी वजीरिस्तान में भी कुछ पुराने मिलिट्री बेस को खाली करके, सैनिकों को नए बेस में ट्रांसफर किया गया है.
आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने अफगानिस्तान में टीटीपी ठिकानों पर हवाई हमलों के जवाब में पाकिस्तानी सेना के साथ चौतरफा युद्ध शुरू कर दिया है. बता दें कि अफगानिस्तान के पाक्तिका प्रांत में पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक में 46 लोग मारे गए थे और 6 घायल हो गए. एक वरिष्ठ पाकिस्तानी सुरक्षा सूत्र ने संकेत दिया कि उन्होंने टीटीपी के ठिकानों को निशाना बनाकर हवाई हमले किए थे. हालांकि इस्लामाबाद ने औपचारिक रूप से एयर स्ट्राइक की बात स्वीकार नहीं की है. पाकिस्तानी मीडिया के रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीटीपी ने सिलसिलेवार हमलों में पाकिस्तानी सेना के कई जवानों को मारने का दावा किया है.
टीटीपी के हमलों ने पाकिस्तानी सेना और अफगानिस्तान की सत्तारूढ़ तालिबान सेना के बीच युद्ध जैसी स्थिति भी पैदा कर दी है. दोनों पक्षों ने पाकिस्तान-अफगानिस्तान को बांटने वाली डूरंड लाइन पर भारी हथियार तैनात किए हैं. पाकिस्तानी सेना ने एक बयान में कहा कि उसने 13 टीटीपी आतंकवादियों को मार गिराया है, जबकि उसके कई सैनिक भी मारे गए हैं, जिनमें उत्तरी वजीरिस्तान में मेजर रैंक के अधिकारी भी शामिल हैं. इन आतंकी हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है. लेकिन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी क्या है, इस संगठन का उद्देश्य क्या है और यह अफगान तालिबान से कैसे अलग है, ये तमाम सवाल पाठकों के मन में उठ रहे होंगे. आइए जानते हैं…
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान क्या है?
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) या पाकिस्तानी तालिबान, जैसा कि इसे आमतौर पर कहा जाता है, बैतुल्ला महसूद द्वारा 2007 में स्थापित विभिन्न इस्लामी सशस्त्र आतंकवादी समूहों का एक छत्र संगठन (अम्ब्रेला ऑर्गेनाइजेशन) है. टीटीपी, अफगान तालिबान की एक शाखा है और समान विचारधारा साझा करती है. कथित तौर पर तालिबान ने पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ 2001-2021 के युद्ध में तहरीक-ए-तालिबान की सहायता की थी.
हालांकि, पाकिस्तानी और अफगान तालिबान के अलग-अलग ऑपरेशन और कमांड स्ट्रक्चर हैं. टीटीपी का नेतृत्व वर्तमान में नूर वली महसूद करता है, जिसने सार्वजनिक रूप से अफगान तालिबान उर्फ ’इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान’ के प्रति निष्ठा जाहिर की है. बता दें कि 2021 में अमेरिका सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था. टीटीपी मुख्य रूप से अफगान-पाकिस्तान सीमा पर काम करता है लेकिन उसने पाकिस्तान के लगभग सभी प्रमुख हिस्सों में हमले किए हैं.
तहरीक-ए-तालिबान का उद्देश्य क्या है?
टीटीपी का घोषित उद्देश्य पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ प्रतिरोध करना, पाकिस्तान सरकार को उखाड़ फेंकना और देश में शरिया कानून लागू करना है, जैसा कि अफगान तालिबान ने अपने देश में किया है. टीटीपी की कार्यप्रणाली में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ आतंकवादी अभियान चलाना शामिल है, खासकर अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में. टीटीपी में 30,000 से अधिक सशस्त्र आतंकवादी हैं, जिनमें से अधिकांश सीमावर्ती आदिवासी बेल्ट से भर्ती किए गए हैं.
2019 में, पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने खैबर पख्तूनख्वा में बड़े पैमाने पर आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया, जिसके परिणामस्वरूप कुछ टीटीपी आतंकवादी अफगानिस्तान भाग गए, जहां उनमें से कई इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गए, जबकि अन्य ने टीटीपी के साथ रहना चुना. अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में लगभग 3,000 से 4,000 टीटीपी आतंकवादी हैं. टीटीपी कथित तौर पर अल-कायदा के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है और इस वैश्विक आतंकवादी समूह से वैचारिक मार्गदर्शन प्राप्त करता है.
पिछले कुछ वर्षों में, टीटीपी ने पूरे पाकिस्तान में चर्चों और स्कूलों सहित दर्जनों घातक आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया है, जिसमें उस स्कूल पर 2012 का कुख्यात हमला भी शामिल है जिसमें नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई उस समय पढ़ रही थीं. पाकिस्तानी तालिबान, अफगान तालिबान की तरह, महिलाओं की शिक्षा का कड़ा विरोध करता है और लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने के लिए स्कूलों पर हमले करता है.
पाकिस्तानी सेना की ही देन है टीटीपी
कई विशेषज्ञों ने दावा किया है कि पाकिस्तानी सेना ने ही टीटीपी को जन्म दिया, जो अब उसके लिए ही भस्मासुर बन चुका है. टीटीपी अब एक मजबूत संगठन बन गया है, जिसे पाकिस्तानी सेना रोक पाने में नाकामयाब रही है. ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपने देश की चुनी हुई सरकार को काबू में रखने के लिए टीटीपी को जन्म दिया. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में टीटीपी ने पाकिस्तानी सेना को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन बना लिया है और उसके खिलाफ सशस्त्र आतंकवादी अभियान छेड़ने की कसम खाई है. हाल के वर्षों में, पाकिस्तानी सेना ने टीटीपी को खत्म करने के लिए दो बड़े सैन्य अभियान शुरू किए थे – 2014 में ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब और 2017 में राद उल फसाद. पाकिस्तानी सेना के अभियान शुरू करने के बाद टीटीपी आतंकवादी अफगानिस्तान भाग गए. यहां वे फिर से संगठित हो गए और तब से और मजबूत हो गए हैं, जबसे अफगान तालिबान देश में सत्ता में आया है.
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