उज्जैन। खटारा सिटी बसों को सुधारने के लिए आयशर कंपनी की एक टीम वर्कशॉप एवं डिपो में काम कर रही है लेकिन इसे लेकर जो तथ्य छुपाए जा रहे हैं उससे लगता है कि फर्जी बिल बनाकर भ्रष्टाचार किया जाएगा। वर्कशॉप इंजीनियर विजय गोयल और प्रभारी सुनील जैन के बयानों में ही अंतर है। ऐसे में बसों के चलाने के मामले में लाखों के भ्रष्टाचार का अंदेशा नजर आ रहा है।
89 सिटी बसों में से 25 सिटी बसों को चलने लायक स्थिति में लाने के लिए कितना खर्च आएगा, इसके लिए वर्कशॉप इंजीनियर विजय गोयल ने बताया कि पिछले 3 दिनों से आयशर कंपनी से मेकेनिकल सर्वे की 5 सदस्यीय टीम आई हुई है और सिटी बसों का सर्वे चल रहा है। वर्तमान में यह 25 बसें अभी चलने की स्थिति में नहीं हैं एवं मक्सी रोड स्थित वर्कशॉप में पड़ी हुई है। सर्वे के बाद पता चल पाएगा कि नगर निगम को चालू हालत में विनायक ट्रैवल्स को सिटी बस सौंपने पर कितना खर्चा आएगा।
खंडवा से आयशर कंपनी के मैकेनिकल सर्वे टीम के बारे में जब हमने वर्कशॉप प्रभारी सुनील जैन से जानकारी मांगी तो उनका कहना है कि सिटी बस के मेंटेनेंस सर्वे के लिए खंडवा से ऐसी कोई टीम नहीं आई है और नाही टीम के बारे में मुझे कोई जानकारी है। खंडवा से आयशर कंपनी के मैकेनिकल सर्वे टीम के आने को लेकर दोनों निगम अधिकारी अलग-अलग बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि नगर निगम के दोनों जिम्मेदार अधिकारी सिटी बस सर्वे टीम के लिए अलग-अलग बयान दे रहे हैं, वे ऐसा वह क्यों कर रहे हैं और इन दोनों में से किसका कथन सत्य है यह एक जांच का विषय है। इस संदर्भ में जब हमने नवागत नगर निगम कमिश्नर अंशुल गुप्ता से बात की तो उन्होंने बताया कि मामला संज्ञान में लाया गया है मैं इसको दिखवाता हूं। ज्ञात रहे कि नगर निगम ने सिटी बस आयशर कंपनी इंदौर से खरीदी है लेकिन मैकेनिकल सर्वे टीम आयशर कंपनी इंदौर से ना बुलाकर खंडवा से निगम अधिकारियों द्वारा बुलवाई है। निगम अधिकारियों ने ऐसा क्यों किया है, यह भी एक जांच का विषय है। इस संबंध में हमने नगर निगम वर्कशॉप इंजीनियर विजय गोयल से बात की तब उन्होंने बताया कि इंदौर की अपेक्षा खंडवा का इंस्ट््रूमेंट हमको कम का प्रतीत होता है, इसलिए इंदौर की बजाए खंडवा से मैकेनिकल टीम को बुलवाया गया है।
25 बसों का टेंडर होने से निगम को लाखों का घाटा होगा
लगभग 35 करोड़ से अधिक की बसों को निगम के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा भंगार कर दिया गया है। वर्कशॉप में रखी बसें पूरी तरह से भंगार हो चुकी हैं। पूर्व वर्कशॉप अधिकारी राजेंद्र मिश्रा ने टेंडर होने से पूर्व बताया था कि अगर इन 25 बसों का टेंडर हो जाता है, ऐसी परिस्थिति में एक बस चलने लायक स्थिति में लाने के लिए लगभग 2 से ढाई लाख रुपए का खर्च आएगा। अर्थात 25 सिटी बसों को चलने लायक स्थिति में लाने के लिए निगम को लगभग 60 लाख रुपए का खर्च वहन करना होगा। विनायक ट्रैवल्स को नगर निगम ने 84 रुपए प्रतिदिन अर्थात 2500 रुपए प्रतिमाह हर बस के लिए दिया है। इसके मुताबिक एक बस पर नगर निगम को 30000 प्रति वर्ष मिलेंगे लेकिन नगर निगम ने एक बस को चलने लायक बनाने में दो से ढाई लाख रुपए खर्च किए। ऐसे में 30 हजार प्रति साल की दर से नगर निगम को बस मेंटेनेंस खर्च ढाई लाख रुपए वसूलना भी संभव नहीं होगा। ऐसे में नगर निगम अधिकारियों द्वारा इस घाटे के टेंडर को दिए जाने पर भी कई सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।
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