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    शिक्षण व प्रशिक्षण में सामंजस्य

  • August 21, 2020

    – डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

    शिक्षा राष्ट्रीय स्वरूप व परिवेश के अनुकूल होनी चाहिए। परतन्त्रता के दौर में इसका अभाव था। स्वतन्त्र भारत में भी अनेक कारणों से अपेक्षित सुधार नहीं किये गए थे लेकिन वर्तमान सरकार ने इस कमी को दूर किया है। व्यापक विचार-विमर्श के बाद नई शिक्षा नीति लागू की गई है। इसमें भाषा, सभ्यता, संस्कृति, सामाजिक मूल्यों को समुचित स्थान व महत्व मिला है। ऐसी शिक्षा नीति ही राष्ट्रीय स्वाभिमान का जागरण करेगी। नई शिक्षा नीति बहुमुखी व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली है।

    नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वरूप भारतीय है। इसमें भारतीय ज्ञान के साथ-साथ भारतीय आवश्यकताओं और विद्यार्थियों में स्किल विकसित करेगी। इस समय समूचा विश्व भारत की तरफ देख रहा है। ऐसे में हमारे विशिष्ट शैक्षणिक संस्थान जब अपने कैंपस दूसरे देशों में खोलेंगे तो दुनिया के लोग भारतीय ज्ञान की तरफ उन्मुख होंगे। देश के अंदर आत्मनिर्भर और सशक्त भारत की बात हो रही है। ऐसे समय में यह नई शिक्षा नीति क्रांतिकारी कदम है। भारतीय भाषाओं को महत्व देना महत्वपूर्ण निर्णय है। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के पाठ्यक्रमों को कम करके सामान्य ज्ञान और संख्या ज्ञान पर अधिक जोर दिया गया है। शिक्षा की गुणवत्ता हेतु करीब चार सौ संस्थाएं भी संगठित होंगी। यह पूरी तरह से भारत की भारतीय शिक्षा नीति है।

    उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने नई शिक्षा नीति को सराहनीय बताया। उन्होंने उच्च शिक्षा संस्थानों से सामाजिक समस्याओं पर शोध करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान समाज के लिए प्रासंगिक होना चाहिए। मानव जाति को जलवायु परिवर्तन से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। देश की समस्याओं का समाधान खोजकर समाज को प्रभावित करने पर भारतीय संस्थानों को दुनिया के सबसे अच्छे देशों में गिना जाना लगेगा। सामाजिक समस्याओं के समाधान खोजने पर केंद्रित आरएंडडी परियोजनाओं में अधिक निवेश आवश्यक है। अनुसंधान कल्याणकारी होना चाहिए। किसानों और ग्रामीण भारत की समस्याओं पर ध्यान देना होगा। कृषि उत्पादन वृद्धि के साथ पौष्टिक और प्रोटीन युक्त भोजन के उत्पादन पर भी विशेषज्ञ शिक्षाविदों का ध्यान चाहिए। देश की पचास प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है। नई शिक्षा नीति का लाभ इन सभी को मिलना चाहिए। टेक्नोलॉजी के माध्यम से ग्रामीण विकास करना होगा। विगत पांच वर्षों में भारत ने इनोवेशन और उद्यमिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। ग्लोबल इनोवेशन भारत इक्यासीवें स्थान की बावनवें स्थान पर आ गया है। नई शिक्षा नीति में भारत को विश्व में शिक्षा के केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित करना है। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत कम कीमत पर बेहतरीन शिक्षा को सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है। उच्च शिक्षा संस्थानों के मानकों और गुणवत्ता में मौलिक सुधार हो सकेगा। शिक्षण व प्रशिक्षण में सामंजस्य स्थापित किया गया है।

    इसी क्रम में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने प्रशिक्षुता इंटर्नशिप युक्त डिग्री कार्यक्रम के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशानिर्देश का लोकार्पण किया। इसका उद्देश्य सामान्य डिग्री पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों को रोजगार के योग्य बनाना है। स्नातक कार्यक्रम को डिग्री कार्यक्रम के एक भाग के रूप में अप्रेंटिसशिप प्रदान करने के लिए डिजाइन किया जाएगा। पाठ्यक्रम में रोजगार क्षमता सहायता के सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जाएगा। अप्रेंटिसशिप व इंटर्नशिप कार्यक्रम को सम्मिलित रूप में संचालित किया जाएगा। इसका समावेश नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में है। निशंक ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विज़न भारतीय विश्वविद्यालयों के लिए नए आयाम स्थापित कर उन्हें साकार करना होगा। नई शिक्षा नीति न्यू इंडिया बनाने की दिशा में उच्च शिक्षण संस्थानों को उनकी भूमिका फिर से परिभाषित करने की स्वतंत्रता देगी। भारत ने हमेशा से ज्ञान का सही उपयोग किया है। उससे दुनिया को लाभान्वित किया है। राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में उच्च शिक्षा अहम भूमिका निभाती है। भारत में शिक्षा की पुरानी परंपरा रही है। जिसने भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित किया है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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