उज्जैन। वैसे तो भारत से तपेदिक यानी टीबी की बीमारी का लगभग सफाया हो चुका है, लेकिन यदि यह बीमारी अब भी भारी है तो उन लोगों की लापरवाही पर जो चलते इलाज को बीच में छोड़ देते हैं और यह लापरवाही खुद उन पर ही नहीं, बल्कि सरकार पर भी कई गुना भारी पड़ती है । जो टीबी की बीमारी महज 5 हजार रुपये में ठीक हो जाती है, वही मरीज द्वारा दवाइयां लेने में की जा रही लापरवाही के चलते मरीज गंभीर टीबी के संक्रमण का शिकार हो जाता है और उसके इलाज पर सरकार को 2 लाख से लेकर 15 लाख रुपये तक खर्च करना पड़ते हैं, क्योंकि टीबी के मरीजों का इलाज सरकारी खर्च पर होता है, लेकिन महंगे इलाज के बावजूद कई बार लापरवाही का हर्जाना मरीज को अपनी जान तक गंवाकर चुकाना पड़ता है। यह खुलासा टीबी मरीजों के इलाज के दौरान हुई मेडिकल जांचों व दी जाने वाली दवाइयों की कीमतों से हुआ है।
टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनिता परमार के अनुसार टीबी के मरीजों को अपना इलाज निरंतर करना आवश्यक होता है। सामान्य टीबी का इलाज लगातार 6 माह तक किया जाता है, लेकिन मरीज एक माह तक दवाइयां लेने के बाद स्वयं को स्वस्थ महसूस करने लगता है और डोज पूरा नहीं करते हुए या तो इलाज को छोड़ देता है या लापरवाही करते हुए कभी दवाइयां लेता है और कभी नहीं। मरीज की इस लापरवाही के कारण टीबी का संक्रमण और गंभीर होकर उभरता है, जिसके इलाज में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं। सरकार सारे देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त करना चाहती है। इसके लिए हर साल टीबी मरीजों की नि:शुल्क मेडिकल जांचों व दवाइयों पर करोड़ो रुपये खर्च किए जा रहे हैं। टीबी मरीज को इस बीमारी से मुक्त होने के लिए नियमित मेडिकल जांच कराना पड़ती है तो वहीं डाक्टर की सलाह मानते हुए हर रोज दवाइयों का डोज लेना पड़ता है। इसके अलावा सिगरेट, बीड़ी, शराब, गांजा, भांग सहित हर नशे से दूर रहना पड़ता है।
इलाज कभी अधूरा न छोड़े
कई दिनों तक लगातार खांसी व बार-बार बुखार आने के लक्षण महसूस होते ही तुरन्त डाक्टर की सलाह ले कर अपने बलगम यानी खखार की जांच व सीने का एक्सरे कराएं। जांच से टीबी साबित होते ही 6 माह तक हर रोज नियमित दवाइया लेते रहें। भूल कर भी इलाज अधूरा न छोड़ें। वरना जिंदगी खतरे में पड़ सकती है।
दो प्रकार की होती है टीबी बीमारी
टीबी विशेषज्ञ डाक्टरों के अनुसार टीबी की बीमारी दो प्रकार की होती है। एक साधारण टीबी, दूसरी जानलेवा एमडीआर टीबी । मरीज को लगातार खांसी चलने, बार-बार बुखार आने पर इस बीमारी के लक्षण उभरते हैं। इसके बाद मरीज के खखार व छाती की जांच की जाती है। इन जांचों से बीमारी की गंभीरता का पता चलता है, जिसमें साधारण टीबी से लेकर गंभीर बीमारी के रूप में मल्टी ड्रग रेजीटेन्स का पता चलता है। सामान्य टीबी का मरीज नियमित जांचें व इलाज सहित बताए गए परहेज कर सिर्फ 6 माह में इस बीमारी से निजात पा सकता है । मगर कई बार मरीजों की मनमानी व अधूरा इलाज के चलते उनकी यही साधारण टीबी, जानलेवा एमडीआर टीबी में तब्दील हो जाती है।
उज्जैन जिले में हर साल 30 से 40 मौत
किस शहर व जिले में दोनों प्रकार की टीबी के कितने मरीज है। कितने ठीक हो चुके हैं। कितनों की इलाज के दौरान मृत्यु हुई। इसका सारा रिकार्ड सरकार सम्हाल कर रखती है। डाक्टरों के अनुसार सरकारी व निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले टीबी मरीजों की संख्या लगभग 5 हजार है। हर साल जिले में लगभग 30 से 40 टीबी मरीजों की मौत हो जाती है।
टीबी मरीज शराब भूलकर भी न पीएं
टीबी मरीजों के लिए शराब जहर से ज्यादा खतरनाक साबित होती है। डाक्टरों का कहना है कि मरीजों को इलाज के दौरान जो दवाइयां दी जाती हंै, वह बेहद गर्म होती है, जो मरीज के लीवर सहित अन्य अंगों पर अत्यधिक प्रभाव डालती है। शराब पीने से टीबी के मरीज को पीलिया हो जाता है, जिसके कारण लीवर डैमेज हो जाता है, फिर मरीज की मृत्यु हो जाती है।
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