ग्वालियर। झील में उठती लहरों की मानिद अठखेलियाँ (naughty aches) करतीं सरोद एवं सितार से निकली मीठी-मीठी धुनें (sweet tunes), बुलंद और सुरीली आवाज में घरानेदार गायकी (Gharedar singing)। साथ ही भारतीय राग-रागनियों के साथ समागम करती इजरायली म्यूजिक की धुनें। यहां बात हो रही है भारतीय शास्त्रीय संगीत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव “तानसेन समारोह” के तहत बुधवार को सजी प्रात:कालीन सभा की. जिसमें संगीत मनीषियों ने अपने गायन-वादन से रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
ध्रुपद केन्द्र की प्रस्तुति से शुरू हुई सभा
तानसेन समारोह में बुधवार की सभा की शुरुआत पारंपरिक ढंग से ध्रुपद केन्द्र ग्वालियर के आचार्यों और विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत ध्रुपद गायन से हुई। ध्रुपद गुरु अभिजीत सुखदाणे के कुशल मार्गदर्शन में राग “अहीर भैरव” में अलापचारी के बाद धमार पेश किया। ध्रुपद रचना के बोल थे “चलो सखी बृजराज”। इसके बाद जलत सूल ताल में बंदिश “दुर्गे भवानी” की मनोहारी प्रस्तुति दी। इसमें यखलेश बघेल और अनुज प्रताप शामिल थे। पखावज पर अनुज प्रताप ने संगत की।
संगीत सम्राट तानसेन की याद में राष्ट्रीय संगीत महोत्सव के मंच पर नई पीढ़ी के श्रेष्ठ शास्त्रीय संगीत गायकों में शुमार रमाकांत गायकवाड़ का ख्याल गायन हुआ। उन्होंने ऐसा झूम के गाया कि रसिक सुर सरिता में गोते लगाते नज़र आए।
मुंबई से पधारे रमाकांत ने अपने गायन का आगाज़ राग “तोड़ी” से किया। विलंबित एक ताल में बड़ा ख्याल के बोल थे “अब मोरे राम”। इसके बाद दो छोटे ख्यालों का गायन किया। तीन ताल मध्यलय में निबद्ध प्रसिद्ध बंदिश के बोल थे “गरवा में का संग लागी” और द्रुत लय में निबद्ध बंदिश “अब मोरी नैया पार करो रे”। दोनों ही बंदिशों को गाने में रमाकांत गायकवाड़ ने जो कमाल दिखाया वो काबिले तारीफ रहा । उनके सुर लगाने का ढंग ही निराला था।
किराना और पटियाला घराने की सभी विशेषताएं अपने गायन में समेटे हुए रमाकांत गायकवाड़ ने जब राग का विस्तार किया तो सुरों के फूल खिलते चले गए। उन्होंने विलंबित खयाल में लय को बढ़ाते हुए बहलावों की शानदार प्रस्तुति दी।इसके बाद विविधता पूर्ण तानों ने रसिकों को रस विभोर कर दिया।
उन्होंने अपने गायन का समापन प्रसिद्ध ठुमरी “मोरे नैन लगेगी बरसात, बलम मोहि छोड़ न जाना” के सुमधुर गायन के साथ किया। मीठे मीठे सुरों में पगी यह प्रस्तुति रसिकों को विभोर कर गई। उनके साथ तबले पर अनिल मोघे और हारमोनियम पर महेश दत्त पांडेय ने गायन के अनुरूप कुशल संगत की।
शिराज अली के सरोद वादन से रसिकों के कानों में घुली मिसुरी….
तानसेन समारोह के भव्य मंच पर कोलकाता से पधारे प्रसिद्ध मैहर सांगीतिक घराने के सुयोग्य प्रतिनिधि उस्ताद शिराज अली खां ने सरोद से जमकर सुरवर्षा की। शिराज अली महान संगीतज्ञ बाबा अलाउद्दीन खां के पड़पोते हैं। उन्होंने अपने गायन के लिए राग “विलाशखानी तोड़ी” को चुना। इस राग में उन्होंने अलाप जोड़ झाला के बाद विलंबित गत की मनोहारी प्रस्तुति दी।सरोद के सुरों के जबरदस्त उतार-चढाव के बीच शिराज अली ने राग-रचनाओं की सृष्टि कर सुर और लय को इस तरह निबद्ध किया कि सम्पूर्ण प्रांगण सुरों के माधुर्य से भर गया। उन्होंने एक मधुर धुन निकालकर रसिकों के कानों में मिसुरी घोल दी। इसी के साथ अपने गायन को विराम दिया।
सभा में दूसरे कलाकार के रूप में शिराज अली की प्रस्तुति हुई। उनके साथ तबले पर सुप्रसिद्ध तबला वादक हितेन्द्र दीक्षित, पखावज पर मैनक विश्वास व सरोद पर दिप्त नील भट्टाचार्य ने संगत की।
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