नई दिल्ली । तमिलनाडु (Tamil Nadu)की डीएमके सरकार(DMK Government) ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए 10 विधेयकों (बिल) को बिना राज्यपाल या राष्ट्रपति (Governor or President)की औपचारिक सहमति(Formal consent) के अधिनियम (एक्ट) के रूप में अधिसूचित कर दिया है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद उठाया गया, जिसमें इन विधेयकों को स्वतः स्वीकृत माना गया। यह भारत में पहली बार है जब किसी राज्य ने बिना राज्यपाल या राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के विधेयकों को लागू किया है। इसे राज्य सरकार की स्वायत्तता और संघीय ढांचे की जीत के रूप में देखा जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को तमिलनाडु सरकार बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजने को “असंवैधानिक” और “गैरकानूनी” करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि राज्यपाल द्वारा दोबारा पारित विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि विधानसभा द्वारा 18 नवम्बर 2023 को पुनः पारित विधेयकों को उसी दिन से राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त मान लिया जाएगा। ये विधेयक जनवरी 2020 से अगस्त 2023 के बीच राज्य विधानसभा द्वारा पारित किए गए थे। वे काफी समय से लंबित थे। कोर्ट ने कहा कि विधानसभा द्वारा दोबारा पारित किए गए विधेयकों पर राज्यपाल को तुरंत सहमति देनी थी, और राष्ट्रपति को भेजने का उनका कदम गलत था।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए इन 10 विधेयकों को 18 नवंबर 2023 को स्वीकृत मान लिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति द्वारा इन विधेयकों पर की गई कोई भी कार्रवाई, जिसमें सात को अस्वीकार करना और दो पर विचार न करना शामिल है, कानूनी रूप से अमान्य है।
क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुसार, राज्य विधानसभा में पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल उसे मंजूरी दे सकते हैं, अस्वीकार कर सकते हैं, या संशोधन के लिए लौटा सकते हैं। लेकिन यदि विधानसभा उसे दोबारा पारित करती है, तो राज्यपाल उस पर पुनः विचार करने या राष्ट्रपति को भेजने का अधिकार नहीं रखते- उन्हें अनिवार्य रूप से मंजूरी देनी होती है।
गवर्नर की कार्रवाई ‘गैरकानूनी’
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क रखा कि राज्यपाल द्वारा दोबारा पारित बिलों को राष्ट्रपति के पास भेजना न केवल अवैध है बल्कि राज्य सरकार के अधिकारों में हस्तक्षेप भी है। कोर्ट ने यह स्वीकारते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा बाद में किए गए सभी कार्य “non est in law” यानी कानून की दृष्टि से अस्तित्वहीन माने जाएंगे।
क्या हैं ये 10 अधिनियम?
ये अधिनियम मुख्य रूप से राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति और प्रशासनिक शक्तियों से संबंधित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अधिनियम हैं:
तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2020: इसका नाम बदलकर तमिलनाडु डॉ. जे. जयललिता मत्स्य विश्वविद्यालय किया गया और प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकार को ट्रांसफर किया गया।
तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2020: इसने निरीक्षण और जांच की शक्तियों को राज्यपाल (कुलाधिपति) से राज्य सरकार को ट्रांसफर किया।
तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) अधिनियम, 2022: इसने कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार को दिया।
तमिलनाडु डॉ. अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2022
तमिलनाडु डॉ. एम.जी.आर. चिकित्सा विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2022
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2022
तमिल विश्वविद्यालय (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2022
तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2023
तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2023
तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2022
ये अधिनियम मुख्य रूप से राज्य सरकार को विश्वविद्यालयों के प्रशासन में अधिक नियंत्रण देने और राज्यपाल की भूमिका को कम करने के उद्देश्य से पारित किए गए थे।
राजनैतिक प्रतिक्रियाएं
डीएमके सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने इसे “ऐतिहासिक” क्षण बताते हुए कहा कि अब विश्वविद्यालय “सरकार की चांसलरशिप” के तहत काम करेंगे। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी एक्स (ट्विटर) पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा — “डीएमके का मतलब है इतिहास बनाना।”
राज्यपाल और केंद्र के साथ लंबा विवाद
तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच विधेयकों को लेकर लंबे समय से तनाव चल रहा था। रवि ने इन विधेयकों पर सहमति देने में देरी की और नवंबर 2023 में इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया। तमिलनाडु सरकार ने इसे “पॉकेट वीटो” का इस्तेमाल बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने न केवल राज्यपाल की कार्रवाई को गलत ठहराया, बल्कि राष्ट्रपति के लिए भी तीन महीने की समयसीमा तय की, जिसमें उन्हें विधेयकों पर निर्णय लेना होगा।
विवाद की शुरुआत 2022 में हुई जब डीएमके सरकार ने राज्यपाल के पास कुलपति नियुक्ति का अधिकार खत्म करने के लिए विधेयक पारित किया। राज्यपाल ने इस पर आपत्ति जताई और यूजीसी प्रतिनिधित्व की मांग की। इसके बाद कुल 10 विधेयकों को मंज़ूरी नहीं दी गई और उन्हें 28 नवम्बर 2023 को राष्ट्रपति के पास भेजा गया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया।
अन्य राज्यों पर प्रभाव
इस फैसले का असर तमिलनाडु तक सीमित नहीं है। केरल, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे अन्य विपक्षी शासित राज्यों में भी राज्यपालों द्वारा विधेयकों को लंबित रखने की शिकायतें हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इन राज्यों के लिए भी एक कानूनी मिसाल साबित हो सकता है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इस फैसले को “लोकतंत्र की जीत” और “राज्यपालों द्वारा विधायिका की शक्तियों के दुरुपयोग के खिलाफ चेतावनी” बताया।
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