नई दिल्ली। तमिलनाडु के क्षेत्रीय दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) और प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन अब राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने की तैयारी में दिख रहे हैं। इसका एक संकेत राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में पार्टी के भव्य कार्यालय के निर्धारित उद्घाटन कार्यक्रम से भी मिल रहा है। 2 अप्रैल को होने वाले उद्घाटन समारोह के लिए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं को निमंत्रण दिया गया है। इस कार्यक्रम में स्टालिन भी मौजूद रहेंगे। इस पूरी कवायद को विभिन्न दलों के राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ उनकी तालमेल बनाने के रूप में देखा जा रहा है।
फिर कमंडल के खिलाफ खड़ा होगा मंडल?
वैसे भी स्टालिन की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं रह गई हैं। तमिलनाडु के सीएम 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ एक क्षेत्रीय गठबंधन का नेतृत्व करने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने इसे ‘सामाजिक न्याय मोर्चा’ नाम दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में कम-से-कम उत्तर भारत में हिंदूत्व की विचाराधारा के जरिए कमंडल की राजनीति को आगे बढ़ाया जा रहा है तो मुकाबले में सामाजिक न्याय मोर्चा के बहाने मंडल राजनीति को बढ़ाना फायदेमंद होगा? ध्यान रहे कि 1990 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति से पूरा देश प्रभावित हुआ था।
मायावती के कमजोर होने से जगी उम्मीद
राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि डीएमके और स्टालिन मंडल राजनीति के बड़े चेहरे मायावती की कमजोरी में बड़ा मौका दिख रहा है। स्टालिन को लगता है कि वो हिंदुत्व के खिलाफ सामाजिक न्याय का नारा बुलंद करके देश में बीजेपी का विकल्प बन सकते हैं। यह अलग प्रश्न है कि दक्षिण में सामाजिक न्याय की राजनीति को तेजी से आगे बढ़ा रहे स्टालिन कोउत्तर भारत में उस स्तर का समर्थन हासिल हो सकेगा? सवाल यह है कि क्या यूपी-बिहार जैसे राज्यों में सामाजिक न्याय की राजनीति फिर से प्रखर हो सकेगी? डीएमके का कांग्रेस के साथ गठबंधन है, वहीं कुछ नेता कांग्रेस के बैगर बीजेपी विरोधी मोर्चा तैयार करने में जुटे हैं। इस कारण भी स्टालिन की चुनौती बड़ी है।
दोनों राष्ट्रीय गठबंधनों का हिस्सा रह चुकी है DMK
बहरहाल, डीएमके संसदीय दलके नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री टीआर बालू समेत द्रमुक के शीर्ष नेता स्टालिन की महत्वकांक्षओं को पर लगाने में जुटे हैं। स्टालिन के पिता और तमिलनाडु के दिवंगत मुख्यमंत्री के करुणानिधि ने एनडीए और यूपीए, दोनों के साथ गठबंधन किया था। दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के वक्त डीएमके एनडीए में और सरकार में भी शामिल रहा था। अब पार्टी कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) का हिस्सा है। यह देखना होगा कि स्टालिन को एक वैकल्पिक क्षेत्रीय नेता के रूप में आगे बढ़ाने के लिए द्रमुक किस तरह सफल होती है क्योंकि कई अन्य खिलाड़ी राष्ट्रीय भूमिका के लिए इच्छुक हैं।
लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है डीएमके
ध्यान रहे कि डीएमके 23 सांसदों के साथ लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस (TMC) और आंध्र प्रदेश की वाईएसआरसीपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में 22-22 सीटें मिली थीं और वो डीएमके के पीछे रही थीं। इस तरह, डीएमके को देश के दो विशालतम दलों बीजेपी (303 सीटें) और कांग्रेस (52 सीटें) के बाद सबसे ज्यादा सीटें जीतने का गौरव प्राप्त हुआ है।
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