इस्लामाबाद। संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी की तरफ से कहा गया है कि अफगानिस्तान के साथ संबंधों को बढ़ाने के लिए कतर में संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में तालिबान के साथ की गई बैठक का मतलब उनकी सरकार को मान्यता देना नहीं है। कतर की राजधानी दोहा में रविवार और सोमवार को लगभग 24 देशों के राजदूतों के साथ बैठक की गई थी। यह पहली बार था जब संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रायोजित बैठक में अफगानिस्तान के तालिबान प्रशासन के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने कहा कि तालिबान को पहली बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था और उन्होंने फरवरी में हुई दूसरी बैठक में हिस्सा लेने के लिए अस्वीकार्य शर्तें रखी थीं जिसमें अफगानिस्तान के नागरिक समाज के सदस्यों को बैठक में नहीं बुलाना और तालिबान को देश की वैध सरकार मानने की शर्तें शामिल थीं। दोहा में हुई बैठक से पहले, अफगानिस्तान की महिलाओं के प्रतिनिधियों को इससे बाहर रखा गया जिससे तालिबान के लिए अपने राजदूत भेजने का रास्ता साफ हो गया। हालांकि, आयोजकों ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि महिलाओं के अधिकारों की आवाज उठाई जाएगी।
संयुक्त राष्ट्र की राजनीतिक एवं शांतिरक्षण मामलों की अधिकारी रोजमेरी ए डिकार्लो ने कहा, ‘‘मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगी कि इस बैठक का मतलब तालिबान सरकार को मान्यता देना नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं आशा करती हूं कि पिछले दो दिनों में विभिन्न मुद्दों पर रचनात्मक आदान-प्रदान से हम उन समस्याओं को हल करने के और करीब पहुंच गए हैं जिनका अफगानिस्तान के लोगों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।’’
दोहा में प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले तालिबान सरकार के मुख्य प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि इस सम्मेलन के बहाने उन्हें विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को निजी क्षेत्र में और मादक पदार्थ के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सहयोग की जरूरत है। मुजाहिद ने कहा, ‘‘अधिकांश देशों ने इन क्षेत्रों में सहयोग की इच्छा प्रकट की है।’’
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