नई दिल्ली। अफगानिस्तान (Afghanistan) में अब तालिबान का राज (Taliban Government) आ गया है। अमेरिका(US) के समर्थन वाली सरकार सत्ता से बेदखल हो चुकी है। भारत (India) का भी अफगानिस्तान (Afghanistan) में बहुत कुछ दांव पर लगा है। उसने पड़ोसी देश में अरबों डॉलर का निवेश(Investment) किया हुआ है। अब तक उसके संबंध भी इस पड़ोसी के साथ बेहद अच्छे रहे हैं। हालांकि, बंदूक के जोर पर सत्ता में आई तालिबान(Taliban) की ‘नई अफगान’ सरकार(Taliban Govenment) के साथ उसके ताल्लुकात कैसे रहते हैं, यह पूरी तरह वहां के नेतृत्व पर निर्भर करेगा। पाकिस्तान और चीन से भारत के रिश्तों में पहले से खटास है। फिलहाल, बहुत आशंकाएं और सवाल हैं। आइए, यहां ऐसे कुछ पॉइंट्स को समझते हैं जहां भारत के सामने मुश्किलें आ सकती हैं।
भारतीयों की सुरक्षित वापसी, वहां भारतीय मूल के हिंदुओं और सिखों की सुरक्षा
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के प्रमुख मनजिंदर सिंह सिरसा ने दावा किया कि अफगानिस्तान में बदले सुरक्षा हालात के बाद कई हिंदुओं और सिखों ने काबुल के करते परवान गुरुद्वारे में शरण ली हुई है। हिंदुओं और सिखों सहित अफगानिस्तान में मौजूद अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होने के कारण वह काबुल गुरुद्वारा समिति के अध्यक्ष के संपर्क में हैं। बताया गया है कि मौजूदा हालात के मद्देनजर 50 हिंदुओं और 270 से ज्यादा सिखों सहित 320 से ज्यादा लोगों ने काबुल के करते परवान गुरुद्वारे में शरण ली हुई है। तालिबान नेताओं ने उनसे मुलाकात की है और उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया है। सिरसा ने उम्मीद जताई कि अफगानिस्तान में राजनीतिक और सैन्य बदलावों के बावजूद हिंदू और सिख वहां सुरक्षित जीवन जी सकेंगे। अफगानिस्तान के ताजा घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हम अफगान सिख और हिंदू समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ लगातार संपर्क में हैं। हम उन लोगों की भारत वापसी के लिए सुविधा मुहैया कराएंगे जो अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं।’
तालिबान के साथ पाकिस्तान और चीन, अब कैसे निपटेगा भारत
पाकिस्तान और चीन तालिबान को मदद देते रहे हैं। दोनों ही देश तालिबान के लगातार संपर्क में भी हैं। इस तरह तालिबान के साथ पाकिस्तान और चीन दोनों हैं। वहीं, भारत का रुख इस मामले में थोड़ा उलट रहा है। हाल में मोदी सरकार ने ऐलान किया था कि वह अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देगी। यही रुख अमेरिका और कई यूरोपीय देशों का भी है। वैसे तालिबान कहता रहा है कि पहले की तरह वह भारत के साथ संबंध बनाए रखने का इच्छुक है। हाल के कुछ समय में पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंध काफी खट्टे रहे हैं। इन दोनों के साथ ‘हमारे एक दोस्त’ मुल्क का खड़ा हो जाना निश्चित ही भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। भारत कभी नहीं चाहेगा कि वह क्षेत्र में अपने एक सहयोगी को गंवा दे। भारत सहित कई देश तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर इतनी जल्दी काबिज होने से चकित हैं।
कश्मीर को लेकर चिंताएं
विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) रह चुके अनिल वाधवा का कहना है कि काबुल पर तालिबान का नियंत्रण भारत के लिए सामरिक दृष्टि से ‘झटका’ है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत को फिलहाल ‘प्रतीक्षा करने और नजर बनाए रखने’ की रणनीति पर अमल करना चाहिए। वाधवा के मुताबिक, शुरुआती संकेतों से लगता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई इस वक्त हक्कानी नेटवर्क के जरिये तालिबान पर नियंत्रण किए हुए है। भारत का आगे का कदम इस बात पर निर्भर करेगा कि तालिबान भविष्य में कैसे व्यवहार करेगा और क्या वह आतंकी हमलों के लिए अफगानिस्तान का उपयोग करेगा। वाधवा ने यह भी कहा कि आने वाले समय में भारत को संवाद का रास्ता भी खोलना होगा। हालांकि, फिलहाल प्राथमिकता भारतीय नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकालने पर होनी चाहिए। भारत ने दो साल पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म किया था। पाकिस्तान लगातार इसका विरोध करता रहा है। वह अपने यहां से आतंकियों को भी भारत भेजने की कोशिश करता रहा है।
तालिबान के साथ संबंध कैसे होंगे
काबुल पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित हो जाने के बाद अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर अस्थिरता के बादल मंडरा रहे हैं। अब तक भारत और अफगानिस्तान के संबंध बेहद अच्छे रहे हैं। यही कारण है कि भारत ने दिल खोलकर वहां निवेश किया है। कई सड़क, पुल, इमारतों सहित देश की बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भारत ने अरबों डॉलर लगाए हैं।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति पर उच्च स्तर पर लगातार नजर रखी जा रही है। सरकार अफगानिस्तान में भारतीय नागरिकों और अपने हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाएगी। पिछले कुछ दिनों के दौरान काबुल में सुरक्षा स्थिति काफी खराब हो गई है। इसमें तेजी से बदलाव हो रहा है। कई ऐसे अफगान हैं जो पारस्परिक विकास, शैक्षिक और लोगों से लोगों के बीच के संपर्क के प्रयासों को बढ़ावा देने में भारत के सहयोगी रहे हैं।
आतंकियों की पनाहगाह बना तो क्या होगा रुख
तालिबान बंदूक के बल पर सत्ता में लौटे हैं। लिहाजा, इस बात की आशंका है कि अफगानिस्तान कहीं आतंकियों की पनाहगाह न बन जाए। तालिबान के अलकायदा के सरगनाओं को शरण देने के कारण दो दशक पहले अमेरिका ने तालिबान पर हमला किया था। विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान और अलकायदा का गठबंधन बना हुआ है। दूसरे हिंसक समूहों को भी नए शासन के तहत सुरक्षित पनाहगाह मिल सकती है। कुछ जानकारों का अब मानना है कि अलकायदा जैसे आतंकी समूह उम्मीद से कहीं ज्यादा तेजी से अपने पांव पसार सकते हैं। अगर ऐसा होगा तो भारत को अपना रुख बिल्कुल स्पष्ट करना होगा। वह ऐसे किसी देश के साथ खुद को नहीं खड़ा कर सकता है जो दुनियाभर में आतंकियों की सप्लाई करने वाला हो।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved